Trade War: विनिर्माण बनाम वर्चस्व, ट्रंप ताकतवर हैं, लेकिन बांड बाजार से ज्यादा नहीं, समझिए कैसे....

Trade War: किसी भी युद्ध में - आर्थिक, व्यापार, या सैन्य - विनिर्माण जीतता है। ट्रंप ताकतवर हैं लेकिन बांड बाज़ार से ज़्यादा नहीं ।

manufacturing vs domination
युद्ध के मैदान में भू-राजनीतिक संतुलन- फोटो : Reporter

Trade War: 21वीं सदी में युद्ध सिर्फ गोलियों से नहीं,बल्कि उद्योग, उत्पादन और पूंजी प्रवाह से लड़े जाते हैं और जीते भी जाते हैं।भले ही आज के युद्ध साइबर हमलों, सैटेलाइट निगरानी और ड्रोनों से लड़े जा रहे हों, लेकिन भौतिक संसाधनों का निर्माण और उनकी आपूर्ति आज भी निर्णायक भूमिका निभाती है।

यूक्रेन-रूस युद्ध इसका जीवंत उदाहरण है। रूस के ऊर्जा निर्यात और हथियार निर्माण क्षमता ने उसे पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद टिकाए रखा।चीन ने पिछले दो दशकों में अपनी "दुनिया की फैक्ट्री" वाली पहचान को रणनीतिक संपत्ति में बदला है। उसका रोजमर्रा के उपकरणों से लेकर हाई-टेक चिप्स तक में दबदबा, वैश्विक राजनीति को प्रभावित कर रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप भले ही खुद को "अमेरिका फर्स्ट" के प्रतीक के रूप में पेश करें, लेकिन अमेरिका की भू-राजनीतिक ताकत ट्रंप से कहीं आगे, उसकी आर्थिक नींव और वित्तीय संस्थानों में छिपी है।बांड बाजार अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग और वैश्विक मुद्रा व्यवस्था (डॉलर वर्चस्व) का निर्धारण करता है।अमेरिका दोहरे घाटे से जूझ रहा है। बजट घाटा और व्यापार घाटा; बांड बाज़ार को संदेह होने लगा कि क्या अमेरिका अपना कर्ज चुका पाएगा। यदि बांड बाजार ढह जाता है, तो यह प्रणालीगत विफलता है। बाजार ठप्प हो गए,एटीएम बंद,सरकारें भुगतान नहीं कर सकतीं। जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डिमन को भी ट्रंप को फोन करना पड़ा।अभी कार्रवाई करें। टैरिफ में देरी करें और ट्रम्प ने आत्मसमर्पण कर दिया - स्टॉक के सामने नहीं, बल्कि बांड के सामने। उन्होंने टैरिफ में 90 दिनों की देरी की। क्यों? क्योंकि कोई भी नेता, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, बांड बाजार को नष्ट करने का जोखिम नहीं उठा सकता।

Nsmch

जब अमेरिका कोई भू-राजनीतिक कदम उठाता है — जैसे चीन पर टैरिफ, ईरान पर प्रतिबंध या रूस पर स्विफ्ट से रोक — उसका असर बांड यील्ड्स, डॉलर इंडेक्स और फेड की नीतियों में भी दिखता है। ट्रंप हो या कोई और राष्ट्रपति, बांड बाजार का मूड नीति निर्धारण को प्रभावित करता है। यही कारण है कि अमेरिका में कोई भी नेता फेड को सीधे नियंत्रित नहीं कर सकता।

अर्थशास्त्री डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार भारत को  यह समझना जरूरी है कि सिर्फ सैन्य ताकत या वैश्विक मंचों पर भाषण से नहीं, बल्कि मजबूत विनिर्माण और आर्थिक आत्मनिर्भरता से ही प्रभावी भू-राजनीतिक शक्ति बना जा सकता है।मेक इन इंडिया, सेमीकंडक्टर मिशन, और डिजिटल सार्वजनिक संरचना जैसे कदम इस दिशा में आशाजनक हैं।

डीएवी कॉलेज सीवान के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार भारत को अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा के बीच अपनी उत्पादन शक्ति और बाजार को एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में पेश करना चाहिए।

डॉ पाण्डेय ने कहा कि 21वीं सदी के युद्ध "गोली और बंदूक" से नहीं, बल्कि "गियर, गैजेट और ग्रोथ" से लड़े जा रहे हैं। विनिर्माण वह आधार है जिस पर भू-राजनीतिक शक्ति की दीवार खड़ी होती है। ट्रंप जैसे नेता आ सकते हैं, जा सकते हैं — लेकिन वित्तीय बाजार, विनिर्माण आधार और सप्लाई चेन की पकड़ कहीं अधिक गहरी और दीर्घकालिक होती है। 

डॉ रामानंद पाण्डेय के अनुसार इस युग में केवल वही देश टिकेगा जो चीजें बना सकता है और उन्हें समय पर पहुँचा सकता है।

Editor's Picks