वोटर वेरिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा - आप जो डॉक्यूमेंट मांग रहे हैं वह मेरे पास भी नहीं मिलेगा... चुनाव आयोग को करना होगा यह काम

जस्टिस धुलिया ने की. जस्टिस धूलिया ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आप जो डॉक्यूमेंट मांग रहे हैं, अगर आप मुझसे मांगते हैं, मेरे पास भी नहीं मिलेगा।

Supreme Court
Supreme Court - फोटो : news4nation

Supreme Court : बिहार में चल रहे वोटर वेरिफिकेशन पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को भारत के चुनाव आयोग को चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के अपने कार्य को जारी रखने की अनुमति दे दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रथम दृष्टया उसकी राय है कि न्याय के हित में लेकिन चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूचियों के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र आदि जैसे दस्तावेजों को भी शामिल करने पर विचार करना चाहिए. 


वहीं सुनवाई के दौरान एक तल्ख टिप्पणी जस्टिस धुलिया ने की. जस्टिस धूलिया ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि आप जो डॉक्यूमेंट मांग रहे हैं, अगर आप मुझसे मांगते हैं, मेरे पास भी नहीं मिलेगा। इसके पहले याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल की दलील थी कि बिहार सरकार के सर्वे से पता चलता है कि बहुत ही कम लोगों के पास वो कागज हैं जो चुनाव आयोग मांग रहा है। सपोर्ट केवल 2.5% लोगों के पास है। मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र 14.71% के पास है। वन अधिकार प्रमाणपत्र बहुत ही कम लोगों के पास है, निवास प्रमाणपत्र और ओबीसी प्रमाणपत्र भी बहुत कम लोगों के पास हैं।  जन्म प्रमाणपत्र को EC के लिस्ट से बाहर रखा गया है, आधार को बाहर रखा गया है, मनरेगा कार्ड को भी बाहर रखा गया है।


याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को कोर्ट ने चुनाव आयोग को बड़ी राहत दी लेकिन इसके साथ ही अहम प्रस्ताव दिया. इसमें नागरिकों की पहचान के लिए मान्य दस्तावेजों में आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी को शामिल करने कहा. इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी.  इसके पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब जबकि चुनाव कुछ ही महीनों दूर हैं, चुनाव आयोग कह रहा है कि वह 30 दिनों में पूरी मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करेगा। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड पर विचार नहीं कर रहा और वे माता-पिता के दस्तावेज़ भी मांग रहे हैं। वकील ने कहा कि यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। 


वहीं सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि उसने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया इतनी देर से क्यों शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसे आगामी चुनाव से महीनों पहले ही शुरू कर देना चाहिए था। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पूरा देश आधार कार्ड के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि आधार नहीं लिया जाएगा। सिंघवी का दावा है कि यह पूरी तरह से नागरिकता की जाँच करने की प्रक्रिया है।   

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत के समक्ष जो मुद्दा है वह लोकतंत्र की जड़ और मतदान के अधिकार से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के मतदान करने के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय को भी चुनौती दे रहे हैं। 


मतदाता सूची से बाहर करने का इरादा नहीं

चुनाव आयोग के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका मतदाताओं से सीधा संबंध है और अगर मतदाता ही नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व ही नहीं है। आयोग किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को क़ानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। हम धर्म, जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते