SC Hearing on Bihar SIR: बिहार की मतदाता सूची संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट का बिहार पर कड़ा संदेश , वोटर लिस्ट की डेडलाइन पर कोई रियायत नहीं, आयोग पर पूरा भरोसा
मतदाता सूची संशोधन (SIR) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर साफ शब्दों में कह दिया कि डेडलाइन बढ़ाने का सवाल ही नहीं।...

SC Hearing on Bihar SIR: दिल्ली से लेकर पटना तक इस वक्त जिस मसले ने राजनीतिक गलियारों और आम जनता के बीच हलचल मचा रखी है, वह है बिहार की मतदाता सूची संशोधन (SIR) मामला। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर साफ शब्दों में कह दिया डेडलाइन बढ़ाने का सवाल ही नहीं है।याचिकाकर्ताओं ने गुहार लगाई थी कि बाढ़ और तकनीकी खामियों की वजह से लोग आवेदन नहीं कर पाए, लिहाज़ा तारीख़ 15 सितंबर तक बढ़ा दी जाए। लेकिन जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने यह मांग सीधे खारिज कर दी।
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अदालत में कहा कि कई मतदाताओं के नाम बिना आवेदन के ही लिस्ट में जोड़ दिए गए हैं। हजारों लोग खुद अपने नाम हटवाने के लिए अप्लाई कर रहे हैं। चुनाव आयोग नियमों की पारदर्शिता का पालन नहीं कर रहा।
चुनाव आयोग की तरफ़ से कहा गया कि बिहार के 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.5 फीसदी ने दस्तावेज़ जमा कर दिए हैं।अब तक 1.34 लाख से ज़्यादा लोगों ने नाम हटाने का अनुरोध किया है।नए नाम जुड़वाने के आवेदन बेहद सीमित हैं।1 सितंबर के बाद भी दावे-आपत्तियाँ ली जाएंगी और योग्य लोगों को अंतिम लिस्ट में जोड़ा जाएगा।अगर डेडलाइन बार-बार बढ़ाई जाएगी, तो पूरी प्रक्रिया कभी खत्म ही नहीं होगी।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि “इतने बड़े राज्य में सिर्फ 120 मामलों की आपत्तियाँ आई हैं, यह हैरान करने वाला है। चुनाव आयोग की तय प्रक्रिया ही मानक है, उसी का पालन होना चाहिए। आधार कार्ड पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है? हम बार-बार आदेश नहीं देंगे।”
कोर्ट ने इस मामले में सबसे तीखा तंज़ राजनीतिक दलों पर कसा। बेंच ने कहा कि राज्य की 12 पार्टियों में से केवल 3 ही कोर्ट में आई हैं। 1.6 लाख बूथ लेवल एजेंट्स होने के बावजूद सिर्फ दो आपत्तियाँ दर्ज कराई गई हैं।वोटर्स की मदद करने की बजाय राजनीतिक पार्टियां चुप क्यों बैठी हैं?
अंतिम मतदाता सूची 1 अक्टूबर को प्रकाशित होगी।आधार कार्ड विवाद पर 8 सितंबर को फिर सुनवाई हो सकती है, बशर्ते ठोस उदाहरण दिए जाएं।कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि उसने पहले ही आयोग को ऑनलाइन आवेदन स्वीकार करने का निर्देश दिया है।यानी साफ है सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आयोग पर भरोसा जताया है और राजनीतिक दलों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाई है।