Journalism : कलम अब भी तलवार से तेज है, जब जमीर जिंदा हो, तो पत्रकार बदल सकते हैं समाज की तस्वीर

Journalism:जब कलम की नोंक पर सच की रोशनी हो और शब्दों में जमीर की आंच, तब पत्रकार महज एक रिपोर्टर नहीं, जन-जागरण का प्रणेता बन जाता है।...

Journalism
कलम अब भी तलवार से तेज है- फोटो : reporter

Journalism: पत्रकारिता महज़ शब्दों की तरतीब नहीं, न ही समाचारों का व्यापार, बल्कि यह एक रूहानी ज़िम्मेदारी है।  मिशन है जिसे ईमान, साहस और सत्य के संकल्प से निभाया जाता है। जब पत्रकार की कलम में ज़मीर की रोशनी और सच की गरमी होती है, तब वह समाज का आइना ही नहीं, उसका इंक़लाबी मार्गदर्शक भी बन जाता है।

आज का युग विरोधाभासों का युग है। सूचना और अफवाह के बीच की रेखा धुंधली हो चुकी है। सोशल मीडिया के शोर, टीआरपी की चखाचौंध और मुनाफ़े की हवस ने पत्रकारिता के मूल स्वरूप को कहीं पीछे ढकेल दिया है। किंतु यह मान लेना कि पत्रकारिता मर चुकी है भ्रम होगा। क्योंकि आज भी कुछ कलमें जिंदा हैं, जिनमें न बिकने का जज़्बा है, और न झुकने की फ़ितरत।

पत्रकार का असली धर्म है  सत्य की निस्पक्ष अभिव्यक्ति। न तो वह किसी सत्ता का चापलूस होता है, और न ही किसी विरोध का अंधा वाहक। वह जनता की आँख बनता है, सत्ता का विवेक बनता है, और पीड़ित की पुकार का माईक। वह सवाल करता है, जवाब माँगता है, और जब ज़रूरत हो, तो वह कलम को तलवार में बदलने से भी गुरेज़ नहीं करता।

पत्रकारिता का ह्रास जिस दिन से शुरू हुआ, वह दिन था जब व्यावसायिक घरानों ने मुनाफ़े की नज़र से न्यूज़ चैनलों और अख़बारों की कमान संभाल ली। जब मुनाफ़ा ध्येय हो, तब आदर्श बलि चढ़ जाते हैं। ऐसे में पत्रकार की जगह विज्ञापन एजेंट आ जाते हैं, जो कैमरे के पीछे नहीं, सौदे की मेज़ पर बैठ कर ख़बर तय करते हैं।

 डिजिटल मीडिया के बढ़ते चलन ने तो हालात और पेचीदा बना दिए हैं। माइक थाम कर जो कोई भी कैमरे के सामने खड़ा हो जाए, वह स्वयं को पत्रकार मान बैठता है। उन्हें न तो पत्रकारिता के सिद्धांतों की जानकारी है, न ही भाषा, शिल्प या ज़िम्मेदारी की समझ। परिणामस्वरूप, पत्रकारिता के शुद्ध स्रोतों में आवाज़ों की गंदगी घुलने लगी है।

लेकिन फिर भी और यही ‘फिर भी’ पत्रकारिता की उम्मीद है कुछ पत्रकार ऐसे हैं जो न बिके, न झुके। आज भी जब किसी दूरदराज़ गाँव में पानी की टंकी सालों से सूखी है, तो वहीं से एक पत्रकार अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए सरकार को शर्मिंदा कर देता है। जब किसी दलित महिला को न्याय नहीं मिलता, तो टीवी की स्क्रीन पर वही पत्रकार उसकी चीख़ को सत्ता के गलियारों तक पहुँचा देता है।

इतिहास गवाह है कि पत्रकारिता ने हमेशा बदलाव को जन्म दिया है।यूरोप का पुनर्जागरण हो,भारत का आपातकाल काल, या फिर छत्तीसगढ़ में जल-जंगल की लड़ाई हर दौर में पत्रकारों की लेखनी ने सत्ता के सिंहासन को काँपने पर मजबूर किया है।

व्यवसाय और पत्रकारिता में अंतर मूल्यों का है। व्यवसायी का लक्ष्य होता है लाभ , ग्राहक से धन अर्जित करना।पत्रकार का उद्देश्य होता है सेवा, जनता को सत्य से परिचित कराना।

पत्रकार वो होता है जो आँकड़ों से नहीं, अंदरूनी ज़ख़्मों से ख़बर लिखता है। जो ख़बर को बेचता नहीं, उसे जनता की आवाज़ बना देता है। एक व्यवसायी अपने फायदे के लिए सच को छुपाता है, जबकि सच्चा पत्रकार सच को उजागर करने के लिए ख़ुद को दांव पर लगा देता है।

यह मान लेना कि पत्रकार अब समाज नहीं बदल सकते, एक ग़लती है, एक अपमान है उन कलमकारों का जो आज भी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़, न्याय के पक्ष में, और जनता के हक़ में खड़े हैं।जब तक एक भी पत्रकार सत्ता के सामने सच कहने की हिम्मत रखता है,

जब तक एक भी कलम बिकने से इंकार करती है,जब तक एक भी अख़बार जनहित के लिए लिखता है,तब तक पत्रकारिता जीवित है, समाज में आशा है, और बदलाव मुमकिन है।क्योंकि पत्रकारिता कोई व्यापार नहीं, वह एक जिम्मेदारी है और जब ये जिम्मेदारी ज़मीर के साथ निभाई जाती है, तो वह समाज की तक़दीर बदल सकती है।