Bihar SIR:मतदाता सूची पर घमासान के बीच वोटर्स का वेरिफिकेशन पूरा, BJP-RJD की आपत्तियों के बीच 30 सितंबर को फाइनल लिस्ट

Bihar SIR:एक महीने तक चले विशेष अभियान का सोमवार को समापन हुआ। आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान 36 हज़ार से अधिक लोगों ने अपने नाम जुड़वाने का दावा किया, जबकि 2.17 लाख से अधिक लोगों ने नाम हटाने की मांग कर दी।...

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मतदाता सूची पर घमासान के बीच वोटर्स का वेरिफिकेशन पूरा- फोटो : social Media

Bihar SIR:बिहार में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट तेज़ होते ही मतदाता सूची पर सियासी जंग छिड़ गई है। एक महीने तक चले विशेष अभियान का सोमवार को समापन हुआ। आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान 36 हज़ार से अधिक लोगों ने अपने नाम जुड़वाने का दावा किया, जबकि 2.17 लाख से अधिक लोगों ने नाम हटाने की मांग कर दी। यानी मतदाता सूची को लेकर आम जनता ही नहीं, राजनीतिक दल भी जमकर सक्रिय दिखे।

सबसे दिलचस्प बात यह रही कि भाजपा ने मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए 16 आपत्तियां दर्ज कराईं। वह एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है, जिसने इस दिशा में पहल की। वहीं, भाकपा-माले (लिबरेशन) ने 103 नाम हटाने की मांग की। इतना ही नहीं, माले और राजद ने मिलकर 25 नाम जोड़ने की मांग भी रखी। साफ है कि मतदाता सूची का खेल अब सीधे-सीधे सत्ता के समीकरणों से जुड़ चुका है।

मतदाता सूची का प्रारूप 1 अगस्त को जारी हुआ था और 1 सितंबर तक दावे-आपत्तियां ली गईं। अब चुनाव आयोग 30 सितंबर को अंतिम सूची प्रकाशित करेगा। सूत्र बताते हैं कि संभावित रूप से नवंबर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। यानी अंतिम सूची चुनावी रणनीति की दिशा तय करेगी।

इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट में भी यह मुद्दा पहुंचा। चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि 1 सितंबर के बाद भी दावे और आपत्तियां ली जा सकती हैं, लेकिन उन पर विचार अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद होगा। अदालत ने इस प्रक्रिया को भरोसे और पारदर्शिता का सवाल बताते हुए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि पैरा लीगल वालंटियर तैनात किए जाएं, ताकि आम मतदाताओं और दलों को फॉर्म भरने और आपत्तियां दर्ज कराने में मदद मिल सके।

बिहार में 7.24 करोड़ मतदाताओं में से अब तक 99.5% लोगों ने अपने दस्तावेज़ सत्यापन के लिए जमा कर दिए हैं। अदालत ने आयोग को साफ निर्देश दिया है कि पहचान के लिए सिर्फ़ आधार ही नहीं, बल्कि अन्य 11 सूचीबद्ध दस्तावेज़ भी स्वीकार किए जाएं।

राजनीतिक हलकों में अब यह बहस गरम है कि इतने बड़े पैमाने पर नाम जोड़ने और हटाने की कवायद का चुनावी गणित पर क्या असर पड़ेगा। सत्ता पक्ष इसे “लोकतंत्र की मज़बूती” बता रहा है, जबकि विपक्ष का आरोप है कि यह सब “मतदाता सूची में गड़बड़ी कर चुनावी फ़ायदा लेने का खेल” है।