HOLI 2025: सहरसा के बनगांव की विख्यात घुमौर होली में बरसने लगे रंग-गुलाल,नाकाफी है सुरक्षा के इंतजाम,18वीं सदीं में हुई थी शुरुआत, जानें- क्या है खास?

HOLI 2025: सहरसा जिले के बनगाँव नगर में मनाई जाने वाली घुमौर होली अपनी अनूठी पहचान के लिए प्रसिद्ध है। यह होली ब्रज की लठमार होली की तरह लोकप्रिय है...

सहरसा के बनगांव की विख्यात घुमौर होली
बनगांव की विख्यात घुमौर होली में बरसने लगे रंग-गुलाल- फोटो : Reporter

HOLI 2025: सहरसा जिले के बनगाँव नगर में मनाई जाने वाली घुमौर होली अपनी अनूठी पहचान के लिए प्रसिद्ध है। यह होली ब्रज की लठमार होली की तरह लोकप्रिय है और इसे राज्य सरकार ने राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया है।

लक्ष्मी नाथ होली समिति बनगाँव के धनंजय मिश्र के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत 1787 में सुपौल के परसरमा गाँव में जन्मे संत लक्ष्मी नाथ गोंसाई ने की थी। माना जाता है कि इसकी जड़ें श्रीकृष्ण के समय से जुड़ी हैं। बनगाँव के भगवती स्थान के पास मनाई जाने वाली इस होली में लोग एक-दूसरे के कंधों पर सवार होकर रंग खेलते हैं। इमारतों को भी रंगीन पानी के फव्वारों से सजाया जाता है। होली के बाद शास्त्रीय संगीत का आयोजन भी होता है।इस होली में ज्यादा भीड़  है।वहीं  यहां प्रशासन सुरक्षा में बहुत कम नजर आ रहा है। 

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यह होली सांप्रदायिक एकता का एक बेहतरीन उदाहरण है, जहाँ सभी जाति और धर्म के लोग बिना किसी भेदभाव के शामिल होते हैं। बनगाँव में लोग पहले ललित झा बंगला पर एकत्रित होकर भगवती स्थान पहुँचते हैं। वहाँ बैलजोड़ी होली का प्रदर्शन किया जाता है। इस अनोखी होली में लोग एक-दूसरे के कपड़े फाड़कर भी आनंद लेते हैं। यह परंपरा आज भी उसी उत्साह के साथ जारी है।

पूरे क्षेत्र के लोग भगवती स्थान के प्रांगण में जमा होकर रंगों का त्योहार मनाते हैं। वे बताते हैं कि 200 वर्षों से चली आ रही इस घुमौर होली का आनंद हिंदू और मुस्लिम एक साथ मनाते हैं। यहाँ कोई जाति-धर्म का भेद नहीं होता। बनगाँव की होली ऐतिहासिक है। वर्ष 2022 में राज्य सरकार ने इसे राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया था, जिसके बाद यहाँ तीन दिवसीय होली उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पर्यटन विभाग की ओर से यहाँ होली मिलन समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमें विशिष्ट अतिथि शामिल होते हैं। यहाँ होली में एक अलग ही मनोरंजन होता है।