Snake Fair:जहां विष ही बनता है आशीर्वाद, हर किसी के किसी के हाथ में होता है नाग, यहां लगता है सर्प का मेला
मां विषहरी की कृपा से विष भी अमृत हो जाता है। भक्तों के कंठ में लिपटे हुए जीवित सांप केवल रोमांच नहीं, भक्ति का गूढ़ प्रतीक बन जाते हैं।...

Snake Fair:बिहार के समस्तीपुर जिले में, नागपंचमी के पावन अवसर पर एक अलौकिक दृश्य साकार होता है, जहां श्रद्धा और साहस का संगम होता है, जहां जहर से नहीं डरते लोग, बल्कि उसे गले लगाते हैं। विभूतिपुर प्रखंड के सिंघिया घाट पर लगने वाला यह सांपों का मेला, कोई साधारण मेला नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और प्राचीन नाग-संस्कृति की एक सजीव गाथा है।
यहां हर वर्ष नागपंचमी के दिन मां भगवती की आराधना के साथ मेले की शुरुआत होती है। सिंघिया बाजार स्थित भगवती मंदिर से गूंजता जयकारा भक्तों को सांपों के साथ घाट की ओर ले चलता है। यह वही धरती है, जहां मां विषहरी की कृपा से विष भी अमृत हो जाता है। भक्तों के कंठ में लिपटे हुए जीवित सांप केवल रोमांच नहीं, भक्ति का गूढ़ प्रतीक बन जाते हैं।
इस मेले में बूढ़ी गंडक नदी का जल पवित्र स्नान नहीं, बल्कि नागों के संग साक्षात संवाद का माध्यम बन जाता है। भक्तों की एक किलोमीटर लंबी श्रृंखला, जिनके गले में सांप विराजमान होते हैं—यह दृश्य किसी अलौकिक लोक से कम नहीं लगता।
किंवदंती कहती है कि यह मिथिला की नाग परंपरा का प्राचीन प्रतीक है, जहां सर्प को शत्रु नहीं, देवता माना जाता है। मेले में कुछ श्रद्धालु तो सांपों को मुंह में पकड़कर करतब दिखाते हैं, यह साहस नहीं, एक विश्वास है कि माता विषहरी की छत्रछाया में विष भी वरदान बन जाता है।
पूजा-अर्चना के बाद, सांपों को पुनः जंगल में छोड़ दिया जाता है। यह परंपरा केवल एक पर्व नहीं, प्रकृति और जीव-जगत के प्रति सम्मान और समर्पण का प्रतीक है। नागपंचमी के इस दिव्य आयोजन में, विषधर सर्प भी पूजनीय बनते हैं यह वही धरती है, जहां श्रद्धा का विष को भी जीत लेने का सामर्थ्य है।