Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सीवान में फिर लौट आई शहाबुद्दीन की परछाई,ओसामा शहाब की बढ़ी परेशानी, विरासत बनाम बदलाव की जंग तेज
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सीवान की सियासत एक बार फिर उसी पुराने मुकाम पर लौट आई है, जहां विकास से ज़्यादा नाम और निशान की राजनीति हावी है।
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: सीवान की सियासत एक बार फिर उसी पुराने मुकाम पर लौट आई है, जहां विकास से ज़्यादा नाम और निशान की राजनीति हावी है। लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद ने दिवंगत मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब को मैदान में उतारकर इस ऐतिहासिक सीट पर राजनीतिक समीकरणों में ज़बरदस्त हलचल पैदा कर दी है।
भाजपा का कहना है कि यह सिर्फ़ एक प्रत्याशी की एंट्री नहीं, बल्कि उस विरासत की पुनर्वापसी है जिसने सीवान की राजनीति को तीन दशकों तक अपनी मुट्ठी में रखा। ओसामा की एंट्री के साथ ही सीवान में फिर से मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण केंद्र में आ गया है, जिसके साथ दलित, राजपूत और अतिपिछड़ा वोट बैंक भी अहम भूमिका निभाने वाला है।
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने यहां जीत दर्ज की थी, लेकिन वह जीत एनडीए के वोट विभाजन के कारण आसान हुई थी। इस बार हालात बदले हैं . एलजेपी (रामविलास) की एनडीए में वापसी ने मुकाबले को एकतरफा नहीं, बल्कि सीधा और संघर्षपूर्ण बना दिया है। अब सीवान का चुनाव वोटों के बिखराव नहीं, बल्कि सीधी टक्कर का मंच बन चुका है।
सीवान में शहाबुद्दीन का नाम आज भी दो ध्रुवीय भावनाओं से जुड़ा है एक ओर भय, दूसरी ओर आस्था। बुज़ुर्ग मतदाताओं के लिए वह दौर अब भी ज़ेहन में ताज़ा है जब सीवान का ज़िक्र खौफ के साथ होता था, जबकि नई पीढ़ी ओसामा शहाब में बदलाव और नई राजनीति की उम्मीद तलाश रही है। कुछ कहते हैं कि शहाबुद्दीन के रहते व्यवस्था थी, जबकि कुछ के मुताबिक वह व्यवस्था कम, दहशत ज़्यादा थी।
शहाबुद्दीन के दौर की छाया अब भी सीवान की राजनीति पर मंडरा रही है चंद्रशेखर प्रसाद की हत्या, पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या, और तेज़ाब कांड जैसी घटनाएं उस दौर की काली यादें हैं, जो आज भी राजनीतिक बहस का हिस्सा हैं। ओसामा शहाब को इन्हीं दो विरोधी छवियों लोकप्रियता और विवाद के बीच अपनी नई राजनीति की राह बनानी होगी।
इस बार सीवान का चुनाव सिर्फ़ सीट जीतने की लड़ाई नहीं, बल्कि जनता की मानसिकता का इम्तिहान भी है क्या वे पुरानी विरासत को आगे बढ़ाएंगे, बदलाव को अपनाएंगे, या फिर डर से निकलकर नया रास्ता चुनेंगे।
सीवान का राजनीतिक गणित अब भी जातीय समीकरणों पर टिका है। मुस्लिम-यादव वोट राजद की रीढ़ हैं, राजपूत और बनिया वर्ग पर एनडीए की पकड़ मज़बूत है, जबकि दलित और अतिपिछड़ा तबका इस बार संतुलन बिगाड़ने वाला फ़ैक्टर बन सकता है।