Sex Racket:देह व्यापार गैंग का काला सच उजागर, बार का धुंआ और अंधेरे में गंदे काम कारोबार, मचा हंगामा
देह व्यापार और नाबालिग लड़कियों के शोषण का यह नेटवर्क इतना संगठित था कि सोशल मीडिया को ही जाल बना लिया गया।

Sex Racket: हवा में फैला यह धुंआ केवल हुक्के का नहीं, बल्कि मासूम जिंदगियों को निगलते अंधेरे कारोबार का है। गोरखपुर शहर के रामगढ़ताल इलाके में शुक्रवार को पुलिस ने जिस काले धंधे का राजफाश किया, उसने पूरे समाज के चेहरे पर कालिख पोत दी है। हुक्का-बार की आड़ में देह व्यापार और नाबालिग लड़कियों के शोषण का यह नेटवर्क इतना संगठित था कि सोशल मीडिया को ही जाल बना लिया गया। इंस्टाग्राम पर ‘फ्रेंडशिप’ और ‘ग्लैमर’ का चारा डालकर नाबालिगों को फंसाया जाता, फिर अश्लील वीडियो और धमकियों के सहारे उन्हें मजबूर किया जाता था।
रामगढ़ताल थाने की पुलिस ने इस काले धंधे के सरगना अनिरुद्ध ओझा उर्फ सोखा को गैंग लीडर घोषित करते हुए उसके 13 साथियों पर गैंगस्टर एक्ट की धाराएं दर्ज कर दीं। आरोपियों की सूची में होटल संचालक से लेकर तथाकथित ‘मुस्कान’ और ‘परी’ जैसे छद्म नामों वाले किरदार भी शामिल हैं। एक ओर ये लोग इंस्टाग्राम पर ‘फैंसी लाइफ’ के सपने दिखाते थे, तो दूसरी ओर होटल के कमरों में मासूमियत का सौदा कर रहे थे।
गोरखपुर पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया है कि इस गैंग ने नाबालिग लड़कियों के जीवन को ‘कॉमोडिटी’ बना दिया था। शाहपुर के होटल फ्लाई इन वन में तो सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने इस अंधेरे साम्राज्य की जड़ें उजागर कर दीं। 2 जनवरी को दर्ज सामूहिक दुष्कर्म केस ने हुक्का-बार के छापे का रास्ता खोला और पूरे नेटवर्क का कच्चा-चिट्ठा सामने आ गया।
यह मामला केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि समाज की संवेदनाओं पर भी करारा तमाचा है। जिस हुक्का-बार को युवा वर्ग ‘फैशन’ और ‘एंटरटेनमेंट’ का अड्डा समझते थे, वही असल में देह व्यापार का अड्डा निकला। यहां धुंए के छल्लों के बीच नाबालिग लड़कियों की चीखें गूंजती थीं, और समाज ‘लाइफस्टाइल’ के नाम पर आंख मूंदे बैठा रहा।
पुलिस ने जमानत पर छूटे अजय सिंह और विमल विश्वकर्मा को शनिवार को फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है, जबकि कुछ आरोपी अब भी फरार हैं। एसपी सिटी अभिनव त्यागी ने वादा किया है कि जल्द ही बाकी आरोपियों को भी सलाखों के पीछे पहुंचा दिया जाएगा।
लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल गिरफ्तारी ही इस गंदगी को मिटा देगी? जिस समाज में ‘इंस्टाग्राम की दोस्ती’ शोषण का हथियार बन जाए, जहां हुक्का-बार मनोरंजन नहीं बल्कि देह व्यापार की प्रयोगशाला बन जाए, वहां पुलिस की कार्रवाई महज़ शुरुआत है। असली लड़ाई तो इस सोच से है, जो नाबालिग मासूमियत को ‘मुनाफे’ के पैमाने पर तौलने लगती है।
गोरखपुर की यह घटना चेतावनी है कि अपराधियों के लिए ‘धंधे’ का नया रास्ता सोशल मीडिया और ‘फैंसी जगहों’ की आड़ बन चुका है। अब समय है कि समाज भी धुंए के पीछे छिपे इस अंधेरे को पहचानकर सच का सामना करे। वरना हुक्का-बार के धुंए में मासूम जिंदगियां यूं ही घुटती रहेंगी।