Sex racket: देह व्यापार का काला कारोबार बेनकाब, पुलिस छापे में रंगे हाथ पकड़ी गई तीन महिलाओं के साथ गंदे काम की दुकान, हमबिस्तर होने के लिए यहां से बुलाई जाती थीं महिलाएं
Sex racket:छापेमारी के दौरान जैसे ही पुलिस घर के भीतर दाख़िल हुई, वहां का नज़ारा देखकर खुद वर्दीवालों की भौंहें तन गईं। कमरे में अफरातफरी मच गई , कोई चेहरा छुपा रहा था, कोई खिड़की से भागने की फिराक में था।..

Sex racket:पुलिस ने उस ‘शरीफ़ मोहल्ले’ का नक़ाब उतार दिया, जहां दीवारों के भीतर देह व्यापार का गंदा खेल धड़ल्ले से चल रहा था। बाहर से आने वाली महिलाओं की आवाजाही ने मोहल्ले की इज़्ज़त को गिरवी रख दिया था, लेकिन असली चेहरा तब सामने आया जब महाराजगंज की कोतवाली पुलिस और महिला पुलिस की टीम ने अचानक छापा मारा।
सूत्रों और स्थानीय शिकायतों के मुताबिक, शहर के इस घर में महीनों से जिस्म का सौदा हो रहा था। पड़ोसी भी तंग आ चुके थे । उनका कहना था कि रात-दिन अजनबी लोगों का आना-जाना, फुसफुसाहटें और बंद दरवाजों के पीछे की हरकतें पूरे इलाके को बदनाम कर रही थीं।
पुलिस ने अपने मुखबिर तंत्र को एक्टिव किया और जैसे ही पुख्ता जानकारी मिली, रविवार रात को कार्रवाई शुरू हो गई। छापेमारी के दौरान जैसे ही पुलिस घर के भीतर दाख़िल हुई, वहां का नज़ारा देखकर खुद वर्दीवालों की भौंहें तन गईं। कमरे में अफरातफरी मच गई कोई चेहरा छुपा रहा था, कोई खिड़की से भागने की फिराक में था।
कुछ युवक मौका पाकर अंधेरे में फरार हो गए, लेकिन दो युवक और तीन महिलाएं पुलिस के हत्थे चढ़ गए। पकड़ी गई महिलाओं में एक वही ‘संचालिका’ है जो इस पूरे रैकेट की मास्टरमाइंड बताई जा रही है। पुलिस का दावा है कि इस गिरोह के धंधे की जड़ें और भी दूर तक फैली हैं और पूछताछ में बड़े नाम सामने आ सकते हैं।
मोहल्ले में ‘किरायेदार’ और ‘अतिथि’ के नाम पर जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा था, लेकिन किसी ने पुलिस को आधिकारिक शिकायत करने की हिम्मत नहीं दिखाई। सबको डर था या तो बदनामी का या फिर धंधेबाजों के बदले का। सूत्रों का कहना है कि महिलाएं बाहर से बुलाई जाती थी। प. बंगाल हरियाण तक से सेक्स वर्कर को बुलाया जाता था।
कोतवाली प्रभारी निरीक्षक सत्येंद्र कुमार रॉय ने बताया कि हिरासत में लिए गए सभी से पूछताछ चल रही है और विधिक कार्रवाई शुरू कर दी गई है। वहीं, मोहल्ले के लोग राहत की सांस ले रहे हैं कि अब शायद उनका इलाका बदनामी की दलदल से निकल पाए।
लेकिन सवाल ये भी है जब तक ये अड्डा पुलिस की ‘पकड़’ से बाहर था, तब तक क्या कानून सो रहा था? या फिर धंधा चलता रहा और वर्दी सिर्फ़ ‘सूचना मिलने’ का इंतजार करती रही?
महाराजगंज का यह वाकया फिर साबित करता है कि अपराध की दुनिया में ‘संचालिकाएं’ भी उतनी ही चालाक होती हैं जितने उनके ग्राहक। पर्दा गिरा है, लेकिन खेल ख़त्म हुआ है या सिर्फ़ ठहराव आया है इसका जवाब आने वाले दिनों में ही मिलेगा।