जब थानेदार बना मौत का सौदागर! कोर्ट के आदेश के बाद भी FIR नहीं लिखी, 45 दिन बाद छात्रा की मौत का राज खुला

Bihar Crime: एक मां अपनी लापता बेटी की FIR दर्ज कराने के लिए 45 दिन तक एक थाने से दूसरे थाने की धूल फांकती रही, लेकिन अफसरों की बेरुखी, संवेदनहीनता और लापरवाही ने उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई को भी अनसुना कर दिया।...

Vaishali SHO
FIR के लिए थानों में भटकती रही मां, पुलिस की हैवानियत बेनकाब- फोटो : reporter

Bihar Crime:यह कहानी किसी फिल्म की पटकथा नहीं, बल्कि बिहार की हकीकत है, जहां एक मां अपनी लापता बेटी की FIR दर्ज कराने के लिए 45 दिन तक एक थाने से दूसरे थाने की धूल फांकती रही, लेकिन अफसरों की बेरुखी, संवेदनहीनता और लापरवाही ने उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई को भी अनसुना कर दिया।

मामला एक छात्रा के अपहरण से जुड़ा है। लड़की की मां ने जब बेटी के गायब होने की सूचना लेकर थाना दरवाजा खटखटाया, तो पुलिस ने टरका दिया। कहा गया—“यह इलाका हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।” पीड़िता कभी महिला थाना, कभी स्थानीय थाना, तो कभी एसपी ऑफिस के चक्कर काटती रही।

अदालत से भी उसे राहत मिली, कोर्ट ने FIR दर्ज करने का आदेश दिया। लेकिन थानेदार ने आदेश को भी रद्दी कागज समझ नजरअंदाज कर दिया।

 बिहार के हाजीपुर से पुलिसिया लापरवाही की एक दिल दहला देने वाली और शर्मनाक कहानी सामने आई है, जो हमारे न्याय व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े करती है। यह कहानी है वैशाली के गोरौल की कॉलेज छात्रा संजना की, जो 27 मई को लापता हो गई थी और जिसका शव 45 दिन बाद बुरी तरह सड़ी-गली हालत में मिला। इस पूरे मामले में पुलिस की कार्यशैली ने न केवल संजना की मां को दर-दर भटकाया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि जब तक सिस्टम ही सड़ा हुआ न हो, ऐसा भयानक अंजाम मुमकिन नहीं है।

27 मई 2025 को संजना अपने कॉलेज गई, लेकिन वापस नहीं लौटी। उसकी परेशान मां गीता ने अगले ही दिन भगवानपुर थाने में शिकायत की, लेकिन थानेदार ने यह कहकर भगा दिया कि मामला गोरौल थाने का है। मां गीता गोरौल थाने पहुंची, लेकिन तीन दिन बाद वहां के थानेदार ने फिर से उन्हें भगवानपुर भेज दिया। बेटी को ढूंढने और एक एफआईआर दर्ज कराने के लिए मां गीता दो थानों के बीच 14 दिन तक चक्कर काटती रहीं। जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो उन्होंने 11 जून को जिला मुख्यालय पहुंचकर एसपी से गुहार लगाई। लेकिन, हैरान करने वाली बात यह थी कि एसपी भी कोई कार्रवाई नहीं कर सके।

हारकर मां गीता ने 23 जून को न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। लेकिन, पुलिस ने कोर्ट के आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया। यह सिस्टम की बेरुखी और अमानवीयता की पराकाष्ठा थी।10 जुलाई को संजना के गांव में एक खेत से बदबू आने पर खुदाई की गई, तो वहां से एक शव बरामद हुआ। शव के साथ मिले कागजात से पता चला कि वह शव लापता छात्रा संजना का था। 45 दिन बाद अपनी बेटी का सड़ा-गला शव देखकर परिवारवालों का कलेजा फट गया। गुस्साए लोगों ने सवाल उठाया कि अगर पुलिस ने समय पर एक छोटी सी कार्रवाई भी की होती तो शायद संजना जिंदा होती।संजना के मामा मिथलेश कुमार ने बताया कि किस तरह वे एक थाने से दूसरे थाने भटकते रहे, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। एसपी और कोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की।

लोगों का गुस्सा बढ़ता देख और मामले को राजनीतिक रंग लेते देख, वैशाली के एसपी ललित मोहन शर्मा ने तुरंत कार्रवाई करते हुए भगवानपुर और गोरौल दोनों थानों के एसएचओ को निलंबित कर दिया। एसपी ने खुद स्वीकार किया कि दोनों अधिकारियों ने क्षेत्राधिकार का बहाना बनाकर एफआईआर दर्ज करने में देरी की, जिसके कारण एक निर्दोष छात्रा की जान चली गई।

यह मामला केवल संजना की मौत का नहीं है, बल्कि यह उस सड़े हुए सिस्टम का भी प्रतीक है, जहां न्याय की उम्मीद करना बेमानी हो गई है। सवाल यह है कि जब पुलिस और प्रशासन इतने असंवेदनशील हो जाएं, तो आम जनता अपनी सुरक्षा और न्याय के लिए कहां जाए?

रिपोर्ट- ऋषभ कुमार