Bihar Vidhansabha Chunav 2025:व्हिस्की, नकद और सूट के कपड़ों के दम पर प्रेस को मैनेज करने में माहिर थे बिहार के ये नेता, भारतीय राजनीति के एक कालखंड की अनसुनी कहानी

बिहार विधानसभा चुनाव में अभी कुछ ही दिन है।आज हम आपके सामने कहानी लेकर आए हैं, बिहार के उस नेता के बारे में, जो प्रेस को मैनेज करने में माहिर थे। इस नेता पर इंदिरा गांधी का खास प्रेम बरसता था। आइए जानते हैं...

Lalit Narayan Mishra
भारतीय राजनीति के एक कालखंड की अनसुनी कहानी- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार के नेता कई मायनों में रिकॉर्ड कायम करने के लिए जाने जाते हैं। वो हमेशा सत्ता के करीबी और खास बनने का गुर जानते हैं। देश की सबसे कद्दावर और कड़ियल प्रधानमंत्री में से एक इंदिरा गांधी का करीबी होना मजाक नहीं था। बिहार के एक नेता, उस समय इंदिरा गांधी के करीबी बने, जब इंदिरा गांधी को प्रेस को मैनेज करने की जरूरत महसूस हुई। इमरजेंसी के समय की बहुत सारी स्थितियों और श्रीमती गांधी की मनःस्थिति को वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी' में जगह दी है. कुलदीप नैयार पेज नंबर 33 में लिखते हैं- "विपक्ष की नजर में वे एक महत्वाकांक्षी तानाशाह थीं, जिन्हें बेदखल किया जाना था। जेपी के हमले तीखे हो चले थे और वे केंद्र सरकार को एक महिला वाली सरकार कहने लगे थे, जिसे लोकतंत्र का मुखौटा पहनाकर तानाशाही में बदल दिया गया था। दबे स्वर में यही सुर श्रीमती गांधी के कार्यकर्ताओं के बीच भी सुने जा रहे थे।"

इंदिरा गांधी की छवि को लेकर ये कांग्रेस नेता काफी अलर्ट रहते थे। प्रेस पर नजर रखने का काम था। उधर, जब पता चला कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट से रोक लग सकती है। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर लिखते हैं। "अव्वल तो यह कि कानूनी राय भी उम्मीद जगानेवाली नहीं थी। बेहतरीन जानकार भी उनसे कह चुके थे कि सुप्रीम कोर्ट से सिर्फ सशर्त रोक ही लग सकती है, भले ही वे सोचते थे कि अंतिम फैसले में वे दोषमुक्त कर दी जाएंगी। क्या एक बिगड़ी हुई छवि के साथ वे सशर्त रोक के साथ शासन कर पाएंगी ?" इन कयासों के बीच श्रीमती गांधी इलाहाबाद के जज जगमोहन लाल सिन्हा के फैसले के बाद खुद को खुश दिखाने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन वे अंदर ही अंदर विचलित थीं और विपक्ष के साथ मीडिया को लेकर उनके मन में डर बना हुआ था।

 'इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी' में चर्चा की गई है कि....'राजनीतिक प्रबंधन' पहले से कहीं मुश्किल हो गया था। ऐसा उन्होंने एक संपादक से कहा था। बाहरी विपक्ष का दवाब बढ़ता जा रहा था। जेपी की सभाओं में हजारों लोग उनकी बातों को सुनने के लिए जुटने लगे थे। इधर, पार्टी में बगावत की सुगबुगाहट का उन्हें पूर्वाभ्यास हो चला था। हालांकि श्रीमती गांधी की सरकार में कई मंत्री प्रेस और संपादक को लेकर चिंतित नहीं थे। लेकिन उस वक्त के कुछ पत्रकार लगातार देश के वर्तमान हालात पर तीखा लिखते थे, जो श्रीमती गांधी को बिल्कुल पसंद नहीं था। गांधी प्रेस के कुछ वैसे पत्रकारों के हमले से लगातार बेचैन रहीं, जो समझौते को नहीं अपनाते थे। सिर्फ सच लिखने में विश्वास रखते थे। उसके बाद प्रेस को मैनेज करने के लिए खास उपाय को शुरू किया गया। 

नैय्यर लिखते हैं"इस फैसले पर बनती अखबारों की सुर्खियों और खबरों ने तथा उसके बाद की स्थिति ने इसे और बढ़ा दिया। वे सोचने लगी थीं कि प्रेस कभी उनकी कठिनाईयों और उपलब्धियों की चर्चा नहीं करता। नई दिल्ली का एक दैनिक इस हद तक चला गया उनके विरोधियों की हत्या से उन्हें और उनके परिवार को जोड़ दिया। वे मान चुकी थीं कि अखबार पक्षपात कर रहे हैं। एक बार उन्होंने संपादकों से कहा था कि वे अखबार नहीं पढ़तीं, क्योंकि जानती हैं कि कौन क्या लिखेगा?" कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में पत्रकारों को लेकर श्रीमती गांधी की मनोदशा को पूरी तरह खोलकर रख दिया है। उन्होंने श्रीमती गांधी के एक मंत्री के हवाले से दिल्ली के मीडिया की स्थिति को कुछ इन शब्दों में बयां किया है। 

नैय्यर ने आगे लिखा है कि पत्रकारों को लेकर उनकी राय अच्छी नहीं थी। वे जानती थीं कि उन्हें खरीदा जा सकता है। उन्होंने ललित नारायण मिश्रा से यह सुना था कि कैसे व्हिस्की, नकद और सूट के कपड़ों के दम पर उन्होंने अनेक पत्रकारों, खासतौर पर जो दिल्ली में हैं, को अपने साथ मिलाकर रखा था। उनके सचिवालय ने भी उनके इशारे पर अक्सर आलोचकों पर हमले के लिए प्रगतिशील पत्रकारों का इस्तेमाल किया था। वे जानती थीं कि केवल पत्रकार ही नहीं, अखबारों के मालिकों को भी खरीदा जा सकता था। किंतु अब सब उनके खिलाफ एकजुट होते दिख रहे थे। ये सभी बातें इमरजेंसी लागू होने से ठीक पहले की हैं। जिसमें 'इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी' में कुलदीप नैय्यर ने अपनी कलम से उकेरा है। युवा पीढ़ी को इमरजेंसी भले जेनरल नॉलेज से पता हो, लेकिन उस दौरान की घटनाएं और लोगों के साथ नेताओं की मनःस्थिति कैसी थी, इस किताब के जरिए जाना जा सकता है।

(साभार कुलदीप नैयर की किताब से)

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....