Bihar Election:वोट ज़्यादा, सीटें कम, 2025 में आरजेडी कैसे हुई पटखनी का शिकार? बिहार की सियासी बिसात पर एनडीए की ये चालें पड़ गईं भारी
Bihar Election:बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने सूबे की सियासत में कई पुराने समीकरण ध्वस्त कर दिए और कुछ नए हक़ीक़तें सामने रख दीं। तेजस्वी यादव की आरजेडी राज्य में सबसे अधिक वोट शेयर हासिल करने वाली पार्टी बनकर उभरी, लेकिन...
Bihar Election:बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने सूबे की सियासत में कई पुराने समीकरण ध्वस्त कर दिए और कुछ नए हक़ीक़तें सामने रख दीं। तेजस्वी यादव की आरजेडी राज्य में सबसे अधिक वोट शेयर हासिल करने वाली पार्टी बनकर उभरी, लेकिन हैरत की बात यह कि यह 23 फीसदी वोट लेकर भी महज़ 25 सीटों पर सिमट गई। दूसरी तरफ, एनडीए ने 243 सदस्यीय सदन में 202 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी। सवाल उठना लाज़िमी है सबसे अधिक वोट पाने वाली पार्टी सबसे कम सीटों पर कैसे ठहर गई?
दरअसल, आरजेडी ने इस बार 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जो किसी भी पार्टी से अधिक था। ज़्यादा सीटों पर लड़ने का लाभ यह मिला कि कुल वोट शेयर बढ़ गया—क्योंकि हारने वाले उम्मीदवारों के वोट भी समग्र वोट में जुड़ते हैं। लेकिन नुकसान यह हुआ कि विस्तृत फैलाव के बावजूद वोटों का कन्वर्ज़न सीटों में नहीं हो पाया। वहीं, भाजपा और जदयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा और कम मुकाबलों के बावजूद अपने वोटों को जीत में तब्दील कर लिया।
इसके उलट, 2020 के चुनावों में एनडीए को जिन दलों—एलजेपी और आरएलएम—की वजह से नुकसान हुआ था, वे इस बार एकजुट होकर साथ खड़े रहे। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) ने 19 सीटें जीतकर एनडीए को निर्णायक बढ़त दिलाई, जबकि 2020 में इसी पार्टी की बगावत ने कई क्षेत्रों में भाजपा–जदयू को भारी झटका दिया था। इस बार एलजेपी और कुशवाहा की RLNM का एनडीए में शामिल होना समीकरणों को मजबूती देने वाला साबित हुआ, जिससे गठबंधन का वोट ज्यादा बिखरने से बचा।
राजद और जदयू के बीच जिन 59 सीटों पर सीधी टक्कर थी, वहां तस्वीर बिल्कुल उलट गई। 2020 में राजद यहाँ हावी थी, मगर 2025 में नीतीश कुमार की रणनीति ने पूरा परिदृश्य पलट दिया। जदयू ने 59 में से 50 सीटें जीत लीं। उसका वोट शेयर 15.39 फीसदी से बढ़कर 19.25 फीसदी हो गया, जिसने उसकी सीटें 43 से सीधा 85 कर दीं। भाजपा ने भी 89 सीटें जीतकर बिहार में अपने चुनावी इतिहास का नया रिकॉर्ड बनाया।
वहीं, प्रशांत किशोर की जनसुराज ने भले सीट न जीती हो, पर 35 सीटों पर ऐसे वोट काटे कि कई क्षेत्रों में परिणाम प्रभावित हुआ। सीमांचल में AIMIM ने एक बार फिर तेज़ प्रदर्शन करते हुए 5 सीटें जीतीं और 1.85% वोट हासिल किए इसने मुस्लिम वोटों में नई राजनीतिक धार पैदा कर दी, जिसका सबसे सीधा नुकसान आरजेडी को हुआ।कुल मिलाकर, आरजेडी की लोकप्रियता कम नहीं हुई लेकिन पोज़िशनल एडवांटेज हाथ से फिसल गया।
पार्टी पहली पसंद तो रही, मगर निर्णायक आखिरी धक्का नहीं दे पाई। एनडीए की संगठित रणनीति, प्रभावी सीट प्रबंधन और वोटों के सही बंटवारे ने उसे सत्ता की मंज़िल तक पहुँचा दिया और आरजेडी को केवल वोटों का पहाड़ देकर सीटों का रेगिस्तान सौंप दिया।