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pitru paksha 2024गया जी की इस पिंडवेदी पर शादी विवाह और संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है त्रिपिंडी श्राद्ध, पांडवों के साथ यहां आए थे श्रीकृष्ण

pitru paksha 2024गया जी की इस पिंडवेदी पर शादी विवाह और संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है त्रिपिंडी श्राद्ध, पांडवों के साथ यहां आए थे श्रीकृष्ण

GAYA : बिहार के गया में विश्व विख्यात पितृपक्ष मेला चल रहा है. गया जी धाम में अभी वर्तमान में 55 के करीब पिंडवेदियां हैं. सभी पिंड वेदियों की अपनी अलग-अलग महता और पौराणिक महत्व है, जिसका जिक्र पुराण शास्त्रों, भागवत में उल्लेखित है. इसी क्रम में गयाजी धाम में धर्मारण्य पिंडवेदी है. यह पिंडवेदी गया जी की मुख्य पिंड वेदियो में से एक है. यहां भगवान श्री कृष्ण स्वयं पांडवों को लेकर आए थे. वहीं, इस पिंडवेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध से शादी विवाह की बाधा, संतान सुख की प्राप्ति हो जाती है. त्रिपिंडी श्राद्ध संपन्न कराने वाले पुजारी का दावा है, कि इसमें कोई संशय नहीं है, कि यहां त्रिपिंडी श्राद्ध कराने से विभिन्न तरह की बाधाएं शांत हो जाती है. तमाम मांगलिक कार्य इसमें शादी विवाह भी है  वह शुरू हो जाते हैं. संतान के रूप में वंश की वृद्धि होनी भी शुरू हो जाती है.

गया जी धाम में त्रिपिंडी श्राद्ध से वंश वृद्धि और शादियों की बाधा होती है दूर 

गयाजी धाम में त्रिपिंडी श्राद्ध से वंश वृद्धि और शादियों की बाधा भी दूर हो जाती है. यहां तमाम तरह की बाधाएं त्रिपिंडी श्राद्ध से दूर होती है. इस धर्मारण्य पिंडवेदी की बड़ी महता है. यहां के पुजारी कहते हैं, कि त्रिपिंडी श्राद्ध के लिए धर्मारण्य पिंडवेदी स्पेशलिस्ट है. इसमें कोई संशय नहीं है, कि यहां तीन पीढियों के पूर्वजों का त्रिपिंडी श्राद्ध करने से कोई बाधा नहीं रह जाती है.

त्रिपिंडी श्राद्ध यानि तीन पीढियां के पूर्वजों का पिंडदान, त्रिदेव की प्रतिमा की होती है स्थापना

त्रिपिंडी श्राद्ध का गया जी धाम में धर्मराण्य पिंड वेदी पर बड़ा ही महत्व है. त्रिपिंडी श्राद्ध का मतलब तीन पीढियां के पूर्वजों का पिंडदान करना होता है. त्रिपिंडी श्राद्ध में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. त्रिपिंडी श्राद्ध से तीन पीढ़ी के पूर्वजों में जो असंतुष्ट आत्मा होती है, वह इस श्राद्ध से शांत हो जाती है. सारे पितृ दोष दूर हो जाते हैं और संबंधित घरों में जो प्रेत बाधा होती है, जो की विभिन्न रूप में सामने आती है. वह दूर होने लगती है. इसलिए धर्मारण्य में पिंड वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध को स्पेशलिस्ट माना गया है, क्योंकि यहां प्रेत बाधा के हावी होने के मामले भी त्रिपिंडी श्राद्ध के दौरान आ जाते हैं. जब त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, तो उस समय जिस पर जो प्रेत बाधा रहती है, वह तरह-तरह की हरकतें करने लगते हैं

वंश वृद्धि के लिए कर रही हूं त्रिपिंडी श्राद्ध 

वहीं, बोधगया स्थित धर्मारण्य वेदी में पटना से आई किशोरी पांडे नाम की महिला अपने पति सत्येंद्र कुमार पांडे के साथ त्रिपिंडी श्राद्ध कर रही है. किशोरी पांडे बताती है, कि वह पटना से आई है. उनके यहां धन की हानि हो रही थी, वंश की वृद्धि नहीं हो रही थी, मांगलिक कार्य नहीं हो पा रहे थे, जो भी कार्य करते वह सफल नहीं हो पा रहा था, तो उन्होंने विद्वानों से राय ली तो बोला गया, कि बोधगया धर्मारण्य पिंंडवेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध का काफी महत्व है, इसे कराएं. यहां वंश, वृद्धि और शादी की बाधाएं भी त्रिपिंडी श्राद्ध से दूर हो जाती है. समस्त प्रकार के जो कार्य पितृ दोष के कारण बाधा में रहते हैं, वह दूर हो जाते हैं. महिला किशोरी पांडे ने बताया कि वह वंश की वृद्धि के लिए यहां त्रिपिंडी श्राद्ध का कर्मकांड कर रही है. वहीं, मांगलिक कार्य भी हमारे घर में हो, इसके लिए भी त्रिपिंडी श्राद्ध किया जा रहा है. वही, सत्येंद्र पांडे ने बताया कि सारी बाधाएं दूर हो, इसके लिए त्रिपिंडी श्राद्ध कर रहे हैं. शारीरिक, मानसिक, दैविक, दैहिक जो भी बाधा हों, जो पितृ दोष कारण घर के मांगलिक कार्य रुके हुए हैं, वह पूरे हो जाएं. इसी कामना के साथ हुए त्रिपिंडी श्राद्ध कर रहे हैं.

शिव भगवान श्री कृष्णा समय पांडवों के लेकर आए थे धर्मराज युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा के पाप दोष का किया था 

धर्मारण्य पिंड बेदी गया जी की मुख्य पिंडवेेदियो में से एक है. यहां लोग पितृ पक्ष अवधि में त्रिपिंडी श्राद्ध करने जरूर पहुंंचते हैं. देश के तकरीबन सभी राज्यों से यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने लोग आते हैं. धर्मारण्य पिंडवेदी पर भगवान श्री कृष्णा स्वयं पांडवों को लेकर आए थे और महाभारत में मारे गए लोगों के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध का कर्मकांड हुआ था. वहीं अश्वत्थामा हाथी से जुड़े प्रकरण को लेकर पाप निवारण को लेकर धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां यज्ञ किया था. वह यज्ञ कूप आज भी मौजूद है. वही, त्रिपिंडी श्राद्ध का पिंड यहां एक प्राचीन कूप में अर्पित किया जाता है.

त्रिपिंडी श्राद्ध से दैहिक दैविक भौतिक सुख की होती है प्राप्ति 

वही, धर्मारण्य पिंडवेदी के प्रधान तीर्थ पुरोहित उपेंद्र नारायण शास्त्री ने बताया कि किसी के घर में उपद्रव रहता है. लोग परेशान रहते हैं. दैहिक दैविक भौतिक सुख के लिए शांति के निमित्त त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है, जिससे पितरों को शांति मिलती है. घर में वंश की वृद्धि नहीं हो रही हो, मांगलिक कार्य शादियां आदि नहीं हो रहे हों, धन की हानि हो रही हो, बाल बच्चा होते हैं लेकिन वह गुजर जाते हैं, इस तरह से जो लोग परेशान हैं, घर में पितृ दोष होने के कारण ये बाधाएं रहती है. त्रिपिंडी श्राद्ध से ऐसी सारी बाधाएं दूर हो जाती है. जिनके घरों में मांगलिक कार्य से शादियां नहीं होती, वंश की वृद्धि नहीं होती है, वह सब होने शुरू हो जाते हैं. कालसर्प दोष पूजा करके त्रिपिंडी श्राद्ध करके पितरों के मुक्ति की कामना करते हैं और इस तरह से त्रिपिंडी श्राद्ध से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, पितृ दोष दूर होकर सारे घर की बाधाएं भी दूर होती हैं. 

चावल, गुड़, जौ का पिंड अर्पित 

धर्मारण्य वेदी के प्रधान तीर्थ पुरोहित उपेंद्र नारायण शास्त्री बताते हैं, कि यह 3 घंटे का त्रिपिंडी श्राद्ध होता है. इसमें ब्रह्मा विष्णु महेश की प्रतिमा होती है. त्रिपिंडी श्राद्ध में विष्णु जी को जौ, ब्रह्मा जी को चावल और शंकर जी को तिल गुड़ का पिंड अर्पित किया जाता है. इससे सारे कष्ट दूर होते हैं, इस पर कोई संशय नहीं है.

REPORT - MANOJ KUMAR

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