मोक्ष नगरी गयाजी इन दिनों पितृपक्ष के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं से गुलजार है। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं के साथ ही नेपाल और भूटान से भी बड़ी संख्या में लोग यहां पिंडदान करने पहुंचे हैं। देव घाट से संगत घाट तक फैले इस विशाल मेले में विभिन्न संस्कृतियों का संगम देखने को मिल रहा है।
नेपाल के मोहतार जिलांतर्गत गौशाला से आए 45 श्रद्धालुओं ने बताया कि वे सभी मिलकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म कर रहे हैं। उनके पास ही भूटान के चामची से आए 60 श्रद्धालु भी पिंडदान करते नजर आए। भूटान से आए प्रवीण ने बताया कि वे पांच दिनों के लिए गयाजी आए हैं और उन्हें यहां की व्यवस्था बहुत अच्छी लगी। उन्होंने कहा, "हमें यहां की गर्मी थोड़ी ज्यादा लग रही है, लेकिन बाकी सब कुछ बहुत अच्छा है।"
सभी श्रद्धालुओं ने कहा कि वे अपने पितरों का उद्धार करके बहुत खुश हैं। उन्होंने कहा कि यह एक पुण्य का काम है और आने वाली पीढ़ी को भी ऐसा करना चाहिए। उन्होंने गयाजी को एक पावन धरती बताया और कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से गयाजी के बारे में सुना था और इसलिए वे यहां आए।
गयाजी में इस समय देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही नेपाल और भूटान के श्रद्धालुओं का एक साथ आना भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक जीवंत उदाहरण है। अलग-अलग वेशभूषा, भाषा और खान-पान के बावजूद सभी श्रद्धालु एक ही उद्देश्य से यहां आए हैं - अपने पूर्वजों का उद्धार करना। गयाजी प्रशासन ने पितृपक्ष मेले के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं। श्रद्धालुओं के लिए रहने, खाने और पीने की समुचित व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी किए गए हैं।
गयाजी में पितृपक्ष मेला भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक जीवंत उदाहरण है। यहां देश के विभिन्न कोनों से आए श्रद्धालु अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए एक साथ आते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।