Ratan Tata Rituals: भारत के मशहूर उद्योगपति और टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार(9 अक्टूबर) को 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। रतन टाटा अब अपने अंतिम यात्रा पर निकल चुके हैं। तिरंगे में लिपटा रतन टाटा का पार्थिव शरीर नरीमन पॉइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में रखा गया है। शाम 4 बजे तक यहां लोग रतन टाटा का अंतिम दर्शन कर सकेंगे। इसके बाद रतन टाटा के पार्थिव शरीर को वर्ली के पारसी श्मशाम भूमि लाया जाएगा।
रतन टाटा का होगा दाह संस्कार
दरअसल, रतन टाटा एक पारसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाज से नहीं किया जाएगा। पारंपरिक दखमा की बजाए उनका दाह संस्कार किया जाएगा। इलेक्ट्रिक अग्निदाह के द्वारा रतन टाटा का अंतिम संस्कार होगा। सबसे पहले रतन टाटा का पार्थिव शरीर को प्रेयर हॉल में रखा जाएगा। वहां पारसी रीति से ‘गेह-सारनू’ पढ़ा जाएगा। रतन टाटा के पार्थिव शरीर मुंह पर एक कपड़े का टुकड़ा रख कर ‘अहनावेति’ का पहला पूरा अध्याय पढ़ा जाएगा। ये शांति प्रार्थना की एक प्रक्रिया है। इसके बाद इलेक्ट्रिक अग्निदाह में अंतिम संस्कार होगा।
क्या होता है दखमा
बता दें कि पारसी धर्म में अंतिम संस्कार का तरीका बहुत ही अलग है। इसमें जलाने या दफनाने के बजाए शव को टॉवर ऑफ साइलेंस के ऊपर रख दिया जाता है। यह टावर एक गोलाकार इमारत की तरह होता है, जिसे दखमा भी कहते हैं। इस दौरान शव को खुले आसमान के नीचे सूरज की धूप में रख दिया जाता है। जिसके बाद गिद्ध, चील और कौवे आदि उस शव को खा जाते हैं। पारसी अंतिम संस्कार के इस तरीके को ‘दोखमेनाशिनी’ कहा जाता है।
प्रकृति की गोद में छोड़ देते हैं शव
पारसी धर्म में दोखमेनाशिनी की परम्परा सदियों से चली आ रही है। जिसमें व्यक्ति के मरने के बाद उनके शव को प्रकृति की गोद में छोड़ दिया जाता है। इसे लेकर पारसी अनुयायियों का यह मानना है कि शव को जलाने से या फिर दफनाने से प्रकृति गंदी होती है, अर्थात प्रकृति को नुकसान पहुंचता है। वहीं पारसी धर्म के अनुसार, अंतिम संस्कार करने से चील और गिद्ध जैसे पक्षियों का पेट भी भरता है और प्रकृति को कोई नुकसान नहीं होता। हालांकि रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाज से नहीं किया जाएगा।