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40 साल पुराने कानून की वजह से श्रमिकों की हुई फजीहत, इस बदलने की है जरुरत : सुशील मोदी

40 साल पुराने कानून की वजह से श्रमिकों की हुई फजीहत, इस बदलने   की  है जरुरत :  सुशील मोदी

PATNA :  लॉकडाउन   के  दौरान  बड़ी संख्या   में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी का   सिलसिला  जारी है। सबसे  बड़ी बात यह है कि लाखों  की  तदाद में ये श्रमिक पैदल और अन्य साधनों से भारी मुसीबतों  का सामना   करते  हुए अपने प्रदेश  पहुंच रहे है।   इस दौरान उनके साथ  कई  अप्रिय घटना   हो चुकी है। 

इधर मजदूरों  की इस स्थिति  के  बिहार के    डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने 40 साल पुराने मजदूर कानून को जिम्मेवार बयाता है। 

उन्होंने कहा कि 40 साल पुराने कानून के स्थान पर बदले संदर्भ में प्रवासी श्रमिकों के लिए नया कानून बनाने की जरूरत है। कोरोना संकट के मद्देनजर लॉकडाउन के दौरान अगर ‘अन्तरराज्यीय प्रवासी मजदूर एक्ट-1979’ का कड़ाई से पालन किया गया होता तो देश के एक से दूसरे राज्यों में पलायन करने वाले करोड़ों श्रमिकों को फजीहत का सामना नहीं करना पड़ता। 

डिप्टी सीएम ने कहा कि 1979 के एक्ट के अनुसार प्रवासी मजूदरों को घर आने-जाने के लिए रेल किराया देने, अस्वस्थ होने पर इलाज, दवा का खर्च वहन करने, एक व्यक्ति के लिए 6.5 वर्ग मीटर क्षेत्र में आवास की व्यवस्था करने, पेयजल,शौचालय, स्नानागार और जाड़े में गर्म कपड़ा आदि देने तथा विवाद की स्थिति में नियोक्ताओं को दंडित करने का प्रावधान है। इसके साथ ही कानून का पालन कराने के लिए संबंधित राज्यों में इंस्पेक्टर नियुक्त किया जाना है। 

उन्होंने कहा कि श्रमिकों को नए सिरे से परिभाषित करने के साथ उन्हें कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) और कर्मचारी राज्य बीमा स्कीम (ईएसआईएस), लेबर सेस तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा का कवर व सरकार की सभी जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ ‘वन नेशन, वन राशनकार्ड’ के तर्ज पर देने का प्रावधान होना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर प्रवासी श्रमिकों का डाटा बेस तैयार कर प्रत्येक को यूनिक पहचान संख्या देने की भी जरूरत है। 

सुशील मोदी ने   कहा कि वर्तमान कानून में कंट्रैक्टर के माध्यम से एक साथ गए लोगों को ही प्रवासी मजदूर माना गया है, जबकि आज लाखों लोग बिना किसी कंट्रैक्टर के भी अकेले अन्य राज्यों में मजदूरी के लिए जाते हैं। अगर नियोक्ताओं व उद्योगपतियों द्वारा कानून का कड़ाई से पालन किया गया होता तो देश के करोड़ों मजदूरों को दुर्दशाग्रस्त होकर पलायन नहीं करना पड़ता। ऐसे में समय की मांग है कि चार दशक पुराने कानून को नए सिरे से अधिनियमित कर उसे कड़ाई से पालन कराया जाए।

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