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‘बेगूसराय’ सिर्फ कहने को ‘बिहार का लेनिनग्राद’... जनता की पसंद नहीं रहे वामपंथी उम्मीदवार, प्रतिष्ठा की लड़ाई में संयुक्त विपक्ष के सामने कितने मजबूत गिरिराज

‘बेगूसराय’ सिर्फ कहने को ‘बिहार का लेनिनग्राद’... जनता की पसंद नहीं रहे वामपंथी उम्मीदवार, प्रतिष्ठा की लड़ाई में संयुक्त विपक्ष के सामने कितने मजबूत गिरिराज

बेगूसराय. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि बेगूसराय को ‘बिहार का लेनिनग्राद’ या ‘मिनी मास्को’ भी कहा जाता है. लेकिन यह भी एक अजीब विडंबना है कि ‘बिहार का लेनिनग्राद’ लोकसभा चुनावों में वामपंथी दलों को नकारते रहा है. वर्ष 1952 से आंकड़ों को देखें तो लोकसभा चुनावों में बेगूसराय में सिर्फ एक बार ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के योगेंद्र शर्मा ने वर्ष 1967 में जीत हासिल की. आजादी के बाद से कांग्रेस के सर्वाधिक सांसदों ने यहां जीत हासिल की. लेकिन वर्ष 2014 में पहली बार भाजपा का कमल खिला तो 2019 में कमल की जीत और ज्यादा बड़ी हो गई. अब 2024 में फिर से तीसरी बार कमल खिलाने को भाजपा बेताब है तो संयुक्त विपक्ष यहां बड़ी जीत के दावे कर रहा है. 

पिछले लोकसभा चुनाव में जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को वामदलों ने उम्मीदवार बनाया था. बेगुसराय में कन्हैया के चुनाव मैदान में उतरने से वामदलों की चमक बढ़ गई लेकिन परिणाम चौंकाने वाला रहा. भाजपा के गिरिराज सिंह ने 4.22 लाख वोटों से ज्यादा के अंतर से जीत हासिल कर वामदलों के सबसे बड़े चेहरे को करारी हार दी. पांच साल बाद स्थितियां अलग हैं. इस बार गिरिराज ही भाजपा के उम्मीदवार हैं. वहीं कन्हैया अब कांग्रेस के हो चुके हैं तो वामदलों ने तीन बार के विधायक अवधेश राय को बेगूसराय से उम्मीदवार बनाया है. साथ ही मुकाबला भी आमने सामने का है. इस बार विपक्ष एकजुट है. यानी कांग्रेस, वामदल और राजद एक साथ चुनावी मैदान में डटे हैं. यही गिरिराज की सबसे बड़ी चिंता है. 

मोदी के नाम पर वोट : पिछले कुछ दिनों में कई ऐसे वाकये भी हुए जब गिरिराज को मतदाताओं का रोष झेलना पड़ा. हालाँकि इसके बाद भी गिरिराज का भूमिहार जाति से आना और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना उनके लिए थोड़ी राहत की बात है. भूमिहारों के दबदबे वाले बेगूसराय में आजादी के बाद से सिर्फ एक बार ही गैर भूमिहार उम्मीदवार सांसद बना है. बछवाड़ा बाजार के पास एक गांव में कुछ लोग गिरिराज पर गुस्सा करते हुए कहते हैं, ‘गिरिराज मजबूरी है- मोदी जरूरी है.’ ज्यादातर जगहों पर गिरिराज को लेकर ऐसी ही पेशोपेश में मतदाता हैं. मटिहानी के कुछ मतदाता भी गिरिराज को लेकर कुछ ऐसा ही भाव व्यक्त किये. वे ‘मोदी जी के काम पर भाजपा को वोट देंगे.’ शायद गिरिराज भी इस बात को समझ चुके हैं. इसलिए चुनाव सभाओं में वे खुलकर कहते हैं, ‘मेरी गलती की सजा मोदी जी को मत दीजिये, मुझको नहीं मोदी जी को वोट दीजिये’. 

भूमिहार निर्णायक : बेगूसराय में करीब 21 लाख मतदाता हैं. इसमें सर्वाधिक तीन लाख से ज्यादा भूमिहार जाति के मतदाता हैं. वहीं 2.5 लाख के करीब यादव-मुस्लिम वोटर हैं. ऐसे में गिरिराज का भूमिहार जाति से आना उनके लिए एक राहत की बात है. साथ ही पीएम मोदी के नाम पर वोटरों के एक बड़े वर्ग को गोलबंद करने में वे लगे हैं. दूसरी ओर संयुक्त विपक्ष के लिए अपने वोटरों तक पहुंच बनाने और गिरिराज के मुकाबले आक्रामक चुनाव प्रचार की कमी एक चुनौती बनी है. गिरिराज के पक्ष में जहां अमित शाह, नितिन गडकरी, नीतीश कुमार जैसे कई दिग्गज प्रचार कर चुके हैं. योगी आदित्यनाथ भी 11 मई को आने वाले हैं. उस मुकाबले अवधेश राय के लिए चुनाव प्रचार में वैसा जोरशोर नहीं दिखा है. 

मिनी मास्को में प्रतिष्ठा की जंग : सात विधानसभा क्षेत्रों वाले बेगूसराय में बेगूसराय और बछवाड़ा में भाजपा, मटिहानी में जदयू के विधायक हैं. वहीं तेघरा, बखरी में सीपीआई, साहेबपुर कमाल और चेरिया बरियारपुर में राजद के विधायक हैं. अब 13 मई को बेगूसराय में चुनाव होना है. स्थानीय बनाम बाहरी की लड़ाई भी चर्चा में है. इन सबके बीच ‘बिहार का लेनिनग्राद’ सिर्फ कहने को ही ‘मिनी मास्को’ रहेगा या सियासी तौर भी वैसा ही दिखेगा. इसका फैसला अब मतदाताओं को करना है.

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