PATNA: बिहार में जमीन सर्वे का कार्य जारी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि भूमि विवाद कम करने के लिए यह सर्वेक्षण जरूरी है. विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भू-सर्वे का काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. हालांकि प्रदेश में इसका भारी विरोध हो रहा है. न सिर्फ आम बल्कि खास लोग भी परेशान हैं. विपक्षी नेताओं की तरफ से जमीन सर्वे के काम को तुरंत बंद करने की मांग की जा रही है. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने कहा कि, सर्वे का काम तुरंत बंद हो। नीतीश सरकार भूमि सर्वे के नाम पर पारिवारिक झगड़ा और समाजिक तनाव को बढ़ा रही है. भूमि सर्वेक्षण के नाम पर सरकार ओर पदाधिकारियों की ओर से रिश्वत की उगाही हो रही है। बताया जा रहा है कि भूमि-सर्वे को लेकर गांवों में अफरा-तफरी का माहौल है. ऱिश्वतखोरी चरम पर पहुंच गई है. जमीन के कागजात निकालने को लेकर भू-धारी सरकारी दफ्तर की दौड़ लगा रहे, चढ़ावा चढ़ा रहे, फिर भी उन्हें कागजात नहीं मिल रहा. ऐसे में सर्वे को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. आखिर जमीन सर्वे का काम कैसे पूरा होगा ? क्या इसका हश्र भी चकबंदी की तरह ही होगा ? पुराने लोग चकबंदी अभियान की याद दिला रहे हैं. उसमें भी ऐसी ही अफरा तफरी थी. चकबंदी के नाम पर किसानों से मोटी रकम वसूली गई थी. अभियान विफल रहा और अंततः उसे बंद करना पड़ा था.
गांवों में अफरा-तफरी..किसी को कुछ नहीं सूझ रहा
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी भी भूमि सर्वे को लेकर परेशान हैं. कहते हैं कि वे भी इस काम के लिए गांव में हैं. मामला बहुत उलझा हुआ है. किसी को कोई ओर छोर नहीं सूझ रहा,सभी परेशान हैं. मेरे जैसे बाहर रहने वाले अनेक लोग छुट्टी लेकर गांव आए हुए हैं. किसी को कुछ पता नहीं है. लोग रजिस्ट्री ऑफिस, अंचल कार्यालय तथा सर्वे कार्यालय में दस्तावेज और सर्वे संबंधित जानकारी के लिए भीड़ लगाए हुए हैं. खतियान की मांग बढ़ गई है. दिक्कत यह है की खतियान कैथी में है. कैथी जानने वाले गिने चुने लोग हैं. पहले उसका अनुवाद मिल जाता था. भीड़ बढ़ी तो अनुवाद देना बंद कर दिया गया है. बाबुओं की कमाई का पूछिए मत, अवैध कमाई रखने के लिए जेब कम पड रही है. किसी का कोई नियंत्रण नहीं है. मुंहमागी रकम नहीं दीजिएगा तो न खतियान मिलेगा न दस्तावेज.
रैयतों का दोहन हो रहा...मालामाल हो रहे सरकारी कर्मी
वरिष्ठ पत्रकार आगे बताते हैं कि कई ग्रामीणों ने बताया कि खतियान के लिए आवेदन किए उन्हें एक महीना से ऊपर हो गए, अभी तक नहीं मिला है. गांव में बहुत कम लोग ऐसे हैं जिनके पास जमीन के सारे दस्तावेज हैं. अभी भी भरोसे और विश्वास से पीढ़ी दर पीढ़ी जमीन का हस्तांतरण होता रहा है. सरकारी दस्तावेज में तीन-चार पीढ़ी पहले का नाम दर्ज है.कितनी जमीन बिक भी गई है। प्रवीण बागी कहते हैं कि वैसे तो यह सर्वे दस्तावेजों को अपडेट करने के लिए अच्छी पहल है. लेकिन उसके लिए पूरी तैयारी नहीं की गई. पहले सभी को जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराया जाना चाहिए था. जैसे जनगणना के लिए कर्मी घर घर जाकर जानकारी एकत्र करते हैं, वैसे किया जाना चाहिए था.वैसा होता तो अभियान सफल होता और किसी को परेशानी भी नहीं होती। लेकिन वैसा नहीं किया गया.
चकबंदी के रास्ते पर बढ़ चला भूमि सर्वे
वे आगे कहते हैं कि बुजुर्ग लोग चकबंदी अभियान की याद दिलाते हैं. उसमें भी ऐसी ही अफरा तफरी थी। चकबंदी के नाम पर किसानों से मोटी रकम वसूली गई थी. अभियान विफल रहा और अंततः उसे बंद करना पड़ा. शायद यह भूमि सर्वे अभियान भी उसी दिशा में आगे बढ़ा रहा है. ऐसा हुआ तो इसकी पूरी जवाबदेही नीतीश सरकार पर और उनके भ्रष्ट तंत्र पर होगी. यह अलग बात है कि रैयतों की जेब तब तक खाली हो चुकी होगी.
बता दें, चकबंदी के जरिए एक परिवार के अलग-अलग भूखंडों के बदले उन्हें एक बड़ा प्लाट उपलब्ध करा दिया जाता था. परिवार बढ़ने और बंटवारे के बाद खेती के लिए उपलब्ध भूखंड का रकबा घटता जा रहा है, लिहाजा सरकार ने यह अभियान शुरू किया था कि भू-धारियों के अलग-अलग भूखंड की बजाय एक ही जगह पर प्लॉट उपलब्ध कराई जाय. लेकिन सरकार का यह मिशन भी फेल कर गया.
ज्यादातर किसानों के खेत कई अलग अलग हिस्सों में फैले होते हैं. इसके लिए सरकार ने चकबंदी प्रक्रिया लाई थी. इसके तहत उनकी कुल ज़मीन के बराबर खेत एक ही जगह पर दे दिए जाने का प्रावधान किया था. मकसद यह था कि चकबंदी होने से किसानों को खेती करने में लागत कम आयेगी, साथ ही सभी खेत एक ही जगह पर होने से वे उनकी देख भाल भी अच्छे से कर सकते हैं.