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कानूनी दांव पेंच में फंसेगा बिहार आरक्षण विधेयक! 65 फीसदी रिजर्वेशन लागू करना आसान नहीं, बाधक बन सकता है सुप्रीम कोर्ट का नियम

कानूनी दांव पेंच में फंसेगा बिहार आरक्षण विधेयक! 65 फीसदी रिजर्वेशन लागू करना आसान नहीं, बाधक बन सकता है सुप्रीम कोर्ट का नियम

पटना. बिहार में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के प्रस्ताव को भले भी सर्वसम्मति से विधानमंडल ने पारित कर दिया है, लेकिन इसे लागू करने में क़ानूनी पेचीदगियां आ सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही तय कर रखा है कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत होनी चाहिए. इसे लेकर सर्वोच्च अदालत ने 1992 के इंदिरा साहिनी फैसले में शिक्षा और रोजगार में मिलने वाले जातिगत आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय की थी.

सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के पहले तमिलनाडु ने एक कार्यकारी आदेश के जरिए 1989 में 69% आरक्षण लागू कर दिया गया था. वहीं बाद के वर्षों में हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे कई राज्यों ने 50% आरक्षण की सीमा से अधिक वाले कानून पारित किए लेकिन इन राज्यों का निर्णय आज भी क़ानूनी चुनौतियाँ झेल रहा है. ऐसे में बिहार में 65 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत सरकार का निर्णय भी आने वाले समय में क़ानूनी पचड़े में फंस सकता है.

दरअसल, जुलाई 2010 के एक अन्य फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को 50 फीसदी की सीमा से अधिक आरक्षण देने की सशर्त अनुमति दी है. लेकिन उसके लिए राज्यों को उन्हें वैज्ञानिक आंकड़े प्रस्तुत करने कहा गया है. ऐसे में बिहार सरकार द्वारा जो आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी किया गया है इसमें भी नीतीश सरकार को वैज्ञानिक आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे कि आखिर किन वजहों से रिजर्वेशन बढ़ाना जरूरी है. विधानमंडल में बिहार आरक्षण विधेयक प्रस्तुत करते हुए राज्य के संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने इसी ओर संकेत दिया था. उन्होंने कहा था कि आरक्षण का आंकड़ा बढ़ाने के पीछे उनके पास जातीय गणना सर्वे की रिपोर्ट है. इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि जातियों की आबादी और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी है. 

केंद्र सरकार ने ईडब्ल्यूएस के लिए किया संविधान संशोधन : केंद्र सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए ईडब्ल्यूएस लागू किया था. लेकिन इसे लागू करने में भी 50 फीसदी की अधिकतम आरक्षण सीमा का पेंच था. तब केंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% आरक्षण देने के लिए 103वां संविधान संशोधन किया. इसके तहत अनुच्छेद 15 में एक नए खंड को शामिल किया गया. जब केंद्र के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली, तो उसने दलील दी कि अनुच्छेद 15 में नया खंड जोड़ने से 50% की अधिकतम सीमा लागू करने का सवाल कभी नहीं उठ सकता है जो राज्य को ईडब्ल्यूएस की बेहतरी और विकास के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है. ऐसे में बिहार सरकार ने 50 फीसदी से 65 फीसदी आरक्षण करने का जो प्रावधान किया है उसे भी एक अन्य तरीके से ईडब्ल्यूएस के रूप में ही पेश किया जा सकता है.

किस जाति को कितना आरक्षण : बिहार में जातीय गणना सर्वे के अनुसार पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी यानी 3 करोड़ 54 लाख से ज्यादा है. वहीं अति पिछड़ा वर्ग 36.01 फीसदी यानी 4 करोड़ 70 लाख से ज्यादा है. वहीं आबादी के मामले में अनुसूचित जाति 19.65 फीसदी है जो 2 करोड़ 56 लाख से ज्यादा होते हैं जबकि अनुसूचित जन जाति 1.68 फीसदी यानी 21 लाख 99 हजार से ज्यादा होते हैं. वहीं सामान्य वर्ग 15.52 प्रतिशत है जो 2 करोड़ 2 लाख से ज्यादा होते हैं. वहीं आरक्षण के नए फार्मूले के तहत एससी को 20 फीसदी, एसटी को 2 फीसदी और पिछड़ा वर्ग तथा अति पिछड़ा वर्ग को 43 फीसदी है जो कुल 65 फीसदी होता है. इसके अतिरिक्त 10 फीसदी का ईडबल्यूएस कोटा भी निर्धारित होगा. 

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