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लोकतंत्र में सबको मिले बराबर हक का नमूना बिहार विधानसभा चुनाव में देखने मिला, जहां अंगूठा छाप से लेकर पीएचडी डिग्रीधारी तक उतरे मैदान ए जंग में

लोकतंत्र में सबको मिले बराबर हक का नमूना बिहार विधानसभा चुनाव में देखने मिला, जहां अंगूठा छाप से लेकर पीएचडी डिग्रीधारी तक उतरे मैदान ए जंग में

DESK लोकतंत्र में सबको मिले बराबर हक की बानगी है यह। 28 अक्टूबर को बिहार में पहले चरण का मतदान होना है जहां अंगूठा छाप से लेकर पीएचडी डिग्रीधारी तक समान रूप से मैदान ए जंग में हैं। वे चुनाव लड़कर बिहार विधान सभा में पहुंचने के लिए जतन कर रहे हैं। आठवीं-नौवीं पास ही नहीं बल्कि निरक्षर प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में डटकर अपने उच्च शिक्षा प्राप्त प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला कर रहे हैं। वोटरों के लिए भी डिग्रियों से ज्यादा व्यक्तिव मायने रख रहा, सो रेस में कई लड़ाके बने हुए हैं।  

एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि पहले फेज के लिए चुनाव मैदान में डटे 1064 प्रत्याशियों में से 37 के पास डॉक्टरेट की डिग्री है। ऊंची तालिम के बाद ये चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इनके अलावा इनमें से सात प्रत्याशी डिप्लोमाधारी हैं। सभी 1064 में से 155 पोस्ट ग्रेजुएट हैं व 79 ग्रेजुएट। बाकी बचे प्रत्याशियों में से 213 उम्मीदवार 12वीं पास हैं जबकि 170 मैट्रिक पास। 64 उम्मीदवार ऐसे हैं जो आठवीं पास हैं। इन सबके अलावा पांचवी पास उम्मीदवारों की संख्या आठ है तो 74 साक्षर हैं व पांच निरक्षर हैं।

कम शिक्षा के बावजूद समाज पर पकड़ रखने वाले कई प्रत्याशियों को उम्मीद है कि चुनाव में जनता उनका साथ देगी। यदि इन आंकड़ों को प्रतिशतत में बदल दें तो तस्वीर और साफ हो जाती है। मैदान में ताल ठोकने वाले कुल 455 उम्मीदवारों ने यानि 43 प्रतिशत ने अपनी शैक्षणिक योग्यता पांचवी से 12वीं के बीच बतायी है। वहीं 522 यानि 49 प्रतिशत उम्मीदवारों ने अपनी योग्यता स्नातक व इससे अधिक बतायी है। पांच उम्मीदवारों ने खुद को असाक्षर बताया है, तो सात उम्मीदवारों ने खुद को डिप्लोमाधारी बताया है। वहीं एक उम्मीदवार ने अपनी शैक्षणिक योग्यता की शपथ पत्र में चर्चा ही नहीं की है।फिलहाल प्रथम चरण के उक्त सभी लड़ाकों पर राजनीतिक प्रेक्षकों की नजरें गड़ी हैं। चुनावी राजनीति में शैक्षणिक योग्यता तय करने की वकालत करने वाले समाजकर्मी भी ऐसे लड़ाकों के आंकड़े और उनके प्रदर्शन का विश्लेषण कर रहे हैं।  



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