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चांद पर उतरते ही...चंद्रयान-3: विक्रम लैंडर के मून लैंडिंग के बाद प्रज्ञान रोवर 14 दिनों तक करेगा प्रयोग, चंद्रमा की सतह पर मिट्टी और चट्टानों में प्रचुर मात्रा में रासायनिक यौगिकों का पता लगाएगा

दिल्ली- चंद्रमा की सतह पर पहुंचे चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर मॉड्यूल  से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलकर अपने मिशन में जुट गया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने कहा, ‘भारत ने चांद पर सैर की.’ लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) का कुल वजन 1,752 किलोग्राम है. फिलहाल प्रज्ञान (26 किलो) एक चंद्र दिवस (14 दिन) तक चांद की सतह पर घूमकर वहां मौजूद रसायन का विश्लेषण करेगा. लैंडर और रोवर के पास वैज्ञानिक पेलोड हें जो चांद की सतह पर प्रयोग करेंगे, ताकि रासायनिक संरचना की जानकारी प्राप्त की जा सके और चंद्रमा की सतह पर खनिज संरचना का अनुमान लगाया जा सके.पानी सबसे बड़ी चीज़ है. इसके अलावा दुर्लभ चीज़ें मिलने की भी संभावना है.यहां पर यूरेनियम, गोल्ड या किसी भी प्रकार का दुर्लभ धातु मिल सकता है.हीलियम-3 होने की भी संभावना है, जिससे न्यूक्लियर ईंधन बन सकता है.इन सब चीज़ों को करने के लिए रोवर में विशेष सेंसर हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब महत्वपूर्ण चुनौती चांद के दुर्गम दक्षिणी ध्रुवीय इलाके में पानी की मौजूदगी की संभावना की पुष्टि और खानिज और धातुओं की उपलब्धता का पता लगाने की होगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन अध्ययनों से चंद्रमा पर जीवन की संभावना एवं सौर मंडल की उत्पत्ति के रहस्यों से परदा हटाने में भी मदद मिलेगी. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर शांतब्रत दास ने बताया, ‘चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव बेहद दुर्गम और कठिन क्षेत्र है. इसमें 30 किलोमीटर तक गहरी घाटियां और 6-7 किलोमीटर तक ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र आते हैं. इस इलाके में लैंडिंग करना ही अपने आप में काफी चुनौतिपूर्ण कार्य था.’ उन्होंने कहा, ‘मैं वहां धातुओं एवं खनिजों की मौजूदगी से इनकार नहीं कर रहा, लेकिन यह कितनी मात्रा में होगी, यह महत्वपूर्ण विषय है.’

वैज्ञानिकों ने बताया कि चंद्रमा की मिट्टी का औसत घनत्व 3.2 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर है जो पृथ्वी के औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति क्यूबिक सेंटीमीटर से करीब करीब आधा है. चंद्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी के बाद हुई है, ऐसे में वहां भारी धातुओं की मौजूदगी की मात्रा अध्ययन का विषय होगी.

तय दिनों से आगे भी मिशन सक्रिय रह सकता है. यह तभी संभव है जब 14 दिनों के बाद अगले 14 दिनों तक भीषण ठंड में यह सही सलामत रहे. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया कि जब तक सूरज की रोशनी रहेगी, सारी प्रणालियों को ऊर्जा मिलती रहेगी. जैसे ही सूर्य अस्त होगा, हर तरफ गहरा अंधेरा होगा. तापमान शून्य से 180 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाएगा. तब प्रणालियों का काम कर पाना संभव नहीं होगा और यदि यह आगे चालू रहता है तो हमें खुश होना चाहिए कि यह फिर से सक्रिय हो गया है और हम एक बार फिर से प्रणाली पर काम कर पाएंगे।’ उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि ऐसा ही कुछ हो.

संपर्क के लिए इसरो ने इस बार ख़ास ध्यान रखा है.रोवर, प्रोपोर्शन और लैंडर मिलाकर दस से ज़्यादा एंटीना हैं और एक ख़ास बात ये है कि रोवर चंद्रयान-3 के मॉड्यूल से तो संपर्क साध ही सकता है.साथ में चंद्रयान-2 के मॉड्यूल से भी संपर्क कर सकता है.यहां तक कि लैंडर भी दोनों ही चंद्रयानों के मॉड्यूल से कम्युनिकेट कर सकता है.ये धरती पर इसरो के स्टेशन से सीधे भी संपर्क साध सकता है.तो इतने रास्ते हैं कि संपर्क टूटने की अवसर शायद ही आए.

ह चारों ओर घूम रहा है. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक एस उन्नीकृष्णन नायर ने कहा, 'यह चंद्रमा की सतह पर अपनी छाप छोड़ रहा है.' ISRO का लोगो और राष्ट्रीय प्रतीक रोवर के पहियों पर उकेरा गया है ताकि जब यह घूमता है तो अपनी छाप छोड़ सके. उन्नीकृष्णन के अनुसार, रोवर के सौर पैनल और लैंडर के सौर पैनल तैनात किए गए हैं. उन्होंने कहा कि रोवर चंद्रमा के नमूने एकत्र करेगा और प्रयोग करेगा और डेटा लैंडर को भेजेगा

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