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मुस्लिम वोटरों के बीच सीएम नीतीश का कद जानना है तो पढ़ लीजिए... समझ जाइएगा कि जदयू कितना पानी में है......

मुस्लिम वोटरों के बीच सीएम नीतीश का कद जानना है तो पढ़ लीजिए... समझ जाइएगा कि जदयू कितना पानी में है......

PATNA:  2019 लोकसभा चुनाव के बाद बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू और उसके मुखिया नीतीश कुमार के मन में एक बात बड़ा हीं जर्बदस्त तरीके से बैठ गई है। सीएम नीतीश और उनकी पार्टी के नेता अब यह मानने लगे हैं कि इस बार के चुनाव में अल्पसंख्यक समाज की बड़ी आबादी उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान किया है।पार्टी के नेता इस बात को साबित करने के लिए किशनगंज लोकसभा क्षेत्र का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। गदगद होकर जेडीयू इन दिनों लगातार अल्पसंख्यक नेताओं को पार्टी ज्वाइन करा रही है ताकि उसका प्रभाव अल्पसंख्यक वोटरों के बीच अधिक से अधिक हो सके।

 दरअसल जदयू इस बात को लेकर खुश है कि किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में पार्टी ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया और औवैशी की पार्टी को तीसरे स्थान पर ढ़केल कर दूसरा स्थान हासिल कर ली। जबकि कांग्रेस का पहले स्थान पर कब्जा बरकरार रहा। जेडीयू के नेता यह दावा करते नहीं थक रहे कि इस बार के चुनाव में किशनगंज जैसी सीट पर अल्पसंख्यकों ने बड़ी संख्या में पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया ।जिसका परिणाम हुआ कि पार्टी उम्मीदवार को तीन लाख से अधिक मत आए।

किशनगंज से जेडीयू को मिली नई ऊर्जा

लोकसभा चुनाव के बाद से एनडीए में रहते हुए भी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू बीजेपी से दो-दो हाथ करते हुए दिखाई दे रही है। चुनाव संपन्न होने के बाद बीजेपी से बेपरवाह जेडीयू अल्पसंख्यकों को खुश करने को लेकर और भी कई कदम उठाए हैं।लालू के वोटरों को डैमेज करने के लिए जिस तरह से सीएम नीतीश ने बीजेपी की चिंता किए बिना तीन तलाक,धारा 370,35 ए और राम मंदिर को लेकर अलग स्टैंड लिया उससे अल्पसंख्यक प्रेम की बात और पुख्ता हो जाती है।

क्या हकीकत में अल्पसंख्यकों ने जेडीयू को किया वोट ?

 बड़ा सवाल यही है कि जिस बात को लेकर जेडीयू खुश है या बिहार में पार्टी के नेता जो माहौल बने रहे हैं ..हकीकत में वो है क्या… इस बात को सही या गलत ठहराने के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव का रिजल्ट देखना बहुत जरूरी है।2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी अलग-अलग चुनाव लड़ी थी।बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में किशनगंज से दिलीप जायसवाल को मैदान में उतारा था।वहीं कांग्रेस की तरफ से मो. असरारूल हक जबकि जेडीयू ने अख्तरूल ईमान को मैदान में उतारा था। 

2014 का आंकड़ा जानिए

2014 के चुनाव में कांग्रेस ने 493469 वोट लाकर जीत दर्ज की थी।कांग्रेस उम्मीदवार को कुल वोट का करीब 53 फीसदी मत मिले थे। वहीं बीजेपी के उम्मीदवार को 298849 वोट यानि कुल 32.19 फीसदी मत प्राप्त हुए थे।वहीं चुनाव प्रचार के दौरान हीं जेडीयू उम्मीदवार बैठ गए थे फिर भी उन्हें 55822 मत मिले थे।यानि कुल वोट का करीब 6 फीसदी मत मिला था।

अब हम 2019 के चुनाव में मिले वोट पर गौर करें..

इस बार कांग्रेस उम्मीदवार मो. जावेद को कुल  33.32 फीसदी वोट यानि 367017 मत मिले।वहीं जेडीयू के महमूद अशरफ को 30.19 फीसदी यानि 332551 मत मिले।जबकि  ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार को 26.78 फीसदी मत यानि 295029 मत मिले।

2014-2019 चुनाव परिणाम की तुलना से सब क्लीयर..

अगर आप 2014 और 2019 के वोटों की तुलना करेंगे तो पायेंगे कि किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के अल्पसंख्यक वोटर जेडीयू के बनिस्पत ओवैशी की पार्टी के उम्मीदवार को अधिक पसंद किए हैं।क्यों कि 2014 के चुनाव में बीजेपी अकेले दम पर करीब 3 लाख वोट लाई थी।इस बार बीजेपी और जेडीयू मिलकर 3 लाख 32 हजार मत मिले।यानि 2014 में बीजेपी को जितना मित मिला उससे सिर्फ 33 हजार मत अधिक।

नीतीश से अधिक ओवैशी को प्यार करते हैं किशनगंज के अल्पसंख्यक

जानकार बताते हैं कि जेडीयू जिस वोट पर इतरा रही है वह बीजेपी का हीं वोट है.. क्यों कि 2014 में बीजेपी ने अकेले दम पर 3 लाख वोट और इस बार जेडीयू के साथ मिलकर सिर्फ 3 लाख 32 हजार मत।जबकि ओवैशी की पार्टी के उम्मीदवार अकेले दम पर 295029 मत लायी।जानकार बताते हैं कि किशनगंज के अल्पसंख्यक वोटर  नीतीश कुमार की पार्टी की बजाए कांग्रेस और ओवैशी की पार्टी के पक्ष में मतदान किया।

बीजेपी के सूत्र भी बताते हैं कि किशनगंज में पार्टी की संगठन की वजह से जेडीयू उम्मीदवार को इतना वोट मिला जिस वजह से जदयू दूसरे नंबर पर आ सकी।

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