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महागठबंधन के अंदर दरार, परंपरागत सीटों पर राजद के कब्जे के बाद कांग्रेस खेमा नाराज

महागठबंधन के अंदर दरार, परंपरागत सीटों पर राजद के कब्जे के बाद कांग्रेस खेमा नाराज

NEWS4NATION DESK : बिहार महागठबंधन में शामिल घटक दलों के बीच सीट का बंटवारा हो चुका है। इस बंटवारे के साथ ही कांग्रेस खेमे में असंतोष पैदा हो गया है। 

बिहार में लोकसभा के 40 सीट में कांग्रेस के खाते में महज 9 सीटें आई है। उसमें भी उसके कई पंपरागत सीटों को राजद ने अपनी मनमानी चलाते हुए या तो  अपने खाते में ले लिया या गठबंधन में शामिल घटक दलों के हवाले कर दिया है। सीट बंटवारे में पूरी तरह से राजद की मनमानी चली है। 

राजद की मनमानी के आगे झुकने और परंपरागत सीटों का हाथ से निकल जाने पर कांग्रेस खेमे में रोष व्याप्त है। इसे लेकर कांग्रेस प्रदेश कार्यालय सदाकत आश्रम में विरोध प्रदर्शन भी हुआ, लेकिन उसका कोई असर देखने को नहीं मिला। 

कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले सीटों पर राजद के कब्जे के बाद उन लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में रहे नेताओं के अंदर खासा असंतोष व्याप्त है। 

कांग्रेस का गढ़ माना जाने वाला औरंगाबाद सीट भी इसबार हम के खाते में चला गया है। इस सीट पर अबतक हुए 15 लोकसभा चुनाव में 9 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। वहीं चुनाव जीतने वाले सभी कांग्रेसी अनुग्रह नारायण सिंह के परिवार के सदस्य रहे हैं। सबसे पहले 1950 में अनुग्रह बाबू के बेटे सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने इस सीट से जीत दर्ज की थी। वे 1950 से 1984 तक लगातार इस सीट से चुनाव जीतते रहे। 

वहीं उनके बाद सत्येंद्र नारायण सिन्हा के बेटे निखिल कुमार की पत्नी श्यामा सिन्हा इस सीट पर काबिज हुई। उनके निखिल कुमार इस सीट से सांसद रह चुके हैं।

औरंगाबाद सीट का राजद के खाते में चले जाने पर वैसे तो निखिल कुमार ने खुलकर तो कोई विरोध नहीं जताया है, लेकिन बातों ही बातों में उन्होंने यह कहा है कि आजादी के बाद 1952 से ही औरंगाबाद सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और इसे कांग्रेस को ही मिलना चाहिए था। वैसे इस सीट को लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने सीट बंटवारे के ऐलान के दौरान राजद के राष्ट्रीय महासचिव से छोड़ने का आग्रह करते भी देखा गया था, लेकिन राजद द्वारा उसकी अनसुनी कर दी गई थी।

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