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1.6 लाख हेक्टेयर में बसा ‘दाल का कटोरा’ जलमग्न, बेटी-रोटी की चिंता में आधे हो रहे किसान, नहीं मिला स्थानीय नेताओं का सहारा

1.6 लाख हेक्टेयर में बसा ‘दाल का कटोरा’ जलमग्न, बेटी-रोटी की चिंता में आधे हो रहे किसान, नहीं मिला स्थानीय नेताओं का सहारा

LAKHISARAI: ‘दाल का कटोरा’ कहे जाने वाले बड़हिया मोकामा टाल के लाखों किसान परिवारों की उम्मीद जलमग्न होकर टाल के अथाह पानी में डूब रही है। जिस टाल में 15 अक्टूबर से दलहनी फसलों की बुआई शुरू होनी थी वह नदी सरीखा नजर आ रहा है। टाल का अधिकांश भूभाग पानी में डूबा हुआ है। टाल से पानी निकलने की रफ्तार इतनी धीमी है कि अगले 25 से 30 दिनों तक फसल बुआई की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

करीब 110 किलोमीटर लंबे और 8 से 15 किलोमीटर चौड़ाई में पसरे टाल में फतुहा, बख्तियारपुर, बाढ़, मोकामा, मोर, औंटा, मरांची और बड़हिया का टाल क्षेत्र आता है। यहां मानसून के महीने में जलजमाव रहता है लेकिन सामान्य वर्षों में अक्टूबर मध्य से दलहनी फसलों की बुआई शुरू हो जाती है। हालांकि इस बार अक्टूबर महीने में हथिया और चित्रा नक्षत्र में हुई मूसलाधार बारिश और हरोहर नदी में व्याप्त गाद तथा अतिक्रमण के कारण अब तक टाल में चिंताजनक जलजमाव है।

सांसद की बातों का भी नहीं हुआ असर

बड़हिया के किसान संजीव कुमार बताते हैं कि हर बीतता दिन टाल के किसानों की चुनौती बढ़ा रहा है। जिन खेतों में अब तक बुआई हो जानी चाहिए थी वहां दूर दूर तक सिर्फ पानी भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि औंटा मरांची के किसानों ने हाल में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और इस क्षेत्र के सांसद ललन सिंह से टाल से पानी निकालने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने का आग्रह किया था लेकिन अभी तक जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ है। 

वर्ष 2016 से हर साल हुई है पिंछात बुआई

टाल के किसान पिछले पांच साल से पिंछात बुआई का दंश झेल रहे हैं। वर्ष 2016 से 2021 के बीच तकरीबन हर साल टाल का अधिकांश भूभाग तय अवधि से ज्यादा समय तक पानी में डूबा रहा है। देर से बुआई होने के कारण हर साल उपज प्रभावित हुआ है। हर साल नुकसान झेलने के कारण पिछले कुछ सालों में कई किसानों का खेती से मोहभंग हो गया है तो कई किसान ने अब दलहनी फसलों की खेती करना छोड़ दिया है। 

टाल से पानी निकलने के कई मार्ग अवरुद्ध

टाल से पानी निकलने का कई प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हो चुका है। इस समय मुख्य रूप से हरोहर नदी के रास्ते टाल का पानी गंगा नदी में जाता है। लेकिन, हरोहर में न सिर्फ गाद की समस्या है बल्कि पूरे बहाव क्षेत्र में मछली के कई जाल लगे होने से जलनिकास की रफ्तार धीमी है। बड़हिया के सुरजीचक के पास पिछले  1 महीने से मशीन लगाकर गाद सफाई का काम शुरू हुआ लेकिन वह टाल में जमे पानी के मुकाबले नाकाफी है। 

टाल से निकले कई नेता पर नाम बड़े-दर्शन छोटे

बड़हिया के किसान अमित कुमार कहते हैं कि सक्रिय राजनीति में टाल इलाके से कई बड़े नेता हुए। बावजूद इसके सबके सब टाल को लेकर उदासीन बने हुए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा टाल संघर्ष समिति के बैनर तले शुरू हुई। जदयू अध्यक्ष ललन सिंह, जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार इसी टाल क्षेत्र में राजनीति करते हैं। विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा का घर मोकामा प्रखंड में है और वे लखीसराय से निर्वाचित होते हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी बड़हिया से हैं जबकि मोकामा विधायक अनंत सिंह, बाढ़ विधायक ज्ञानू तो हर चुनाव ही टाल के किसानों के नाम पर जीतते हैं। इतने बड़े बड़े नाम होने के बाद भी टाल योजना अबूझ पहेली बनकर रह गई है। 

किसी को बेटी तो किसी को रोटी की चिंता

बड़हिया के किसान मदन सिंह कहते हैं कि टाल में बुआई नहीं हुई तो किसी बेटी का ब्याह रुक जाएगा तो कई लोग रोटी के लिए पलायन कर जाएंगे। कोठवा के सीताराम महतो कहते हैं हमारे घर तो दिवाली होली सब तभी मनेगा जब टाल उपजेगा लेकिन अभी तो बुआई कैसे हो इसी की चिंता सता रही है। बड़हिया के श्याम नंदन सिंह कहते हैं कि टाल से पानी जितना देर से निकलेगा किसान उतने ज्यादा कमजोर होंगे। उनकी कमर टूट जाएगी। कमरपुर के किसान कहते हैं टाल से पानी कब निकलेगा कोई स्पष्ट आकलन नहीं है। ऐसे में किसानों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।

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