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बिहार के इस लोकसभा क्षेत्र में हिंदू हैं अल्पसंख्यक,मुसलमानों का वोट तय करता है कौन होगा इस इलाके का सिकंदर, 24 में कौन मारेगा मैदान...

बिहार के इस लोकसभा क्षेत्र में हिंदू हैं अल्पसंख्यक,मुसलमानों का वोट तय करता है कौन होगा इस इलाके का सिकंदर, 24 में कौन मारेगा मैदान...

पटना- लोकसभा चुनाव 2024 की रणभेरी बजने में तीन महीने शेष हैं. ऐसे में बिहार में सियासी मोहरे बिछने शुरु हो गए है. बात एक ऐसे लोकसभा सीट की जहां नहीं पड़ता मोदी लहर का प्रभाव. बिहार में लोकसभा की 40 सीटों में से 4 सीटें सीमांचल की है. इनमें से कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशानगंज की सीटें आती हैं. देश का किशनगंज  एक चुनिंदा सीट है जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं और मुस्लिम आबादी बहुत बड़ी है. किशनगंज लोकसभा सीट 1957 में बना और 1967 में इस सीट पर एक और मात्र एक बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से हिंदू उम्मीदवार एल एल कपूर ने जीत हासिल की थी.किशनगंज लोकसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. 1952 के बादे से अब तक एक बार सिर्फ हिंदू प्रत्याशी को जीत हासिल हुई है. साल 2019 में भाजपा-जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था तब भी एकमात्र सीट जो विपक्ष को मिला, वो  कांग्रेस को मिला था सीट था  किशनगंज लोकसभा का.

किशनगंज सीट की लगभग 68 फिसदी आबादी मुस्लिम है इसलिए इस सीट पर जीत हार का फैसला मुस्लिम हीं करते है. किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में  हिंदुओं की आबादी 31 फिसदी के करीब है. पूर्वोत्तर राज्यों का गेटवे कहे जाने वाले किशनगंज को बिहार का चेरापूंजी भी कहा जाता है. ऐतिहासिक दृष्टि से यहां सूर्यवंशियों का शासन होने के कारण इस इलाके को सुरजापुर भी कहा जाता है. किशनगंज की कुल आबादी 16,90,400 है जिसमें 67.98 प्रतिशत मुसलमान, 31.43 फिसदी हिंदू, ईसाई 0.34 तो सिख 0.02 फिसदी हैं. वहीं बौद्ध 0.01 तो जैन 0.09 प्रतिशत हैं.

किशनगंज लोकसभा सीट पर साल 1952 से 16 बार हुए चुनाव में कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी रही जिसने दो बार हैट्रिक लगाई. इसमें साल 1957, 1962 , 1980 और 1984, 1989 में कांग्रेस को हैट्रिक लगाने का मौका मिला. वहीं साल 1991, 1996 में लगातार दो बार जनता दल को जीत का सेहरा बांधने का मौका मिला. इस सीट पर कांग्रेस के जमीलुर रहमान, सीमांचल के गांधी मो. तस्लीमुद्दीन को तीन बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था. तस्लीमुद्दीन को दो बार राजद और एक बार जनता दल से जीते थे. वे 1996 में जनता दल और 1998 और 2004 में राजद से सांसद बने थे. 

किशनगंज लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई और सिर्फ एक बार 1967 के लोकसभा चुनावों में यहां से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के हिंदू उम्मीदवार एलएल कपूर ने जीत दर्ज की थी. इसके अलावा यहां हर चुनाव में किसी मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत हासिल होती है. किशनगंज सीट  पर एक बार छोड़ कर हमेशा से कांग्रेस या फिर राजद का हीं कब्जा रहा है. भाजपा की बात करें तो यहां एक बार साल 1999 में भाजपा को सफलता हाथ लगी जब शाहनवाज़ हुसैन ने जीत दर्ज की थी.हालांकि उसके बाद उन्हें यह सीट अगले चुनाव में गंवानी पड़ी थी.

लोकसभा चुनाव 2019 के दंगल में किशनगंज सीट से मोदी लहर में भी कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने जीत का परचम लहराया था. 2019 में भाजपा ने जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था एक किशनगंज लोकसभा क्षेत्र को छोड़कर 39 सीट पर जीत का परचम लहराया था. राजनीतिक जानकारों के अनुसार किशनगंज लोकसभा सीट की जनता का मिजाज अन्य लोकसभा सीटों से अलग है. यहां चुनाव से एक दिन पहले मुस्लिम वोटों की गोलबंदी होती है. जिस तरफ इनका झुकाव हुआ उस प्रत्याशी की जीत होती है.

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