आज भी देश के सबसे निर्धन समुदाय में से एक क्यों है मुस्लिम कम्युनिटी,भारत में मुसलमानों के आर्थिक स्थिति के दावों का सच क्या है?

आज भी देश के सबसे निर्धन समुदाय में से एक क्यों है मुस्लिम कम्युनिटी,भारत में मुसलमानों के आर्थिक स्थिति के दावों का सच क्या है?

पटना- देश के सबसे निर्धन समुदाय में आज भी मुसलमान हैं.आजादी के 76 साल बीत जाने के बाद भी  मुसलमानों की दशा में सुधार नहीं होने का कारण क्या है? इसे जानने के लिए ऑल इंडिया डेट एंड इंवेस्मेंट सर्वे ने किया तो वहीं पीरियोडिकल लेबर सर्वे के अध्ययन से कठोर सच्चाई समाने आयी. अध्ययन से पता चला कि सेक्यूलर होने का दावा करने वाले राजनीति दलों ने मुसलमानों का सबसे अधिक अहित किया है. अध्ययन में सामने आया कि भारत के सभी समुदायों में मुसलमानों के उपभोग का स्तर सबसे कम है. सबसे बड़ा सवाल है सेकुलर पार्टियों की सरकार सबसे ज्यादा दिनों तक शासन में रही फिर ये दशा क्यो. 

नकली सेकुलरिज्म जिम्मेवार

अर्थशास्त्री डॉ रामानंद पांण्डेय ने बताया कि मुसलमानों का सबसे अधिक नुकसान भारत में नकली सेकुलरिज्म ने किया है.उन्हें वोट बैंक बनाकर अलग थलग करदिया गया. जिससे वे आर्थिक रुप से हासिए पर चले गए. स्वतंत्रता के बाद से ही कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीति ने मुसलमानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की.इन पार्टियों ने मुसलमानों को वोट बैंक तो बना दिया,जिसका दोहन चुनाव में हुआ लेकिन चुनाव के बाद वहीं उपेक्षा. आखिर क्यों नहीं पूछा गया कि उनकी दशा और दिशा का कारण आखिर है कौन.सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में मुसलमानों को आर्थिक, शैक्षणिक और नागरिक जीवन में जिन असमानताओं का सामना करना पड़ता है, उसका विस्तार से वर्णन किया गया है. लेकिन वे यह भी देख सकते हैं कि उनकी तरक्की के लिए महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम कभी नहीं उठाए गए हैं.

देश में विरोध, विदेश में समर्थन

प्रधानमंत्री मोदी अपने दोनों कार्यकाल के दौरान मध्यपूर्व और उत्तरी अमेरिका के मुस्लिम देशों से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की है. मिस्र के राष्ट्रपति के गणतंत्र दिवस समारोह पर मुख्य अतिथि बनते हैं, लेकिन देश में वे अधिसंख्यक मुसलमानों का समर्थन पाने में असफल नहीं रहते है? आखिर क्या कारण है कि पीएम मोदी  अपने ही देश में अधिसंख्यक मुसलमानों का समर्थन पाने में सफल नहीं हो पाते.

वोट बैंक के लिे इस्तेमाल

अध्ययन से साफ पता चलता है कि मुसलमानों का लंबे समय से वोटो के लिए शोषण किया जा रहा लेकिन उनके हितो को दरकिनार कर दिया जाता रहा. इस बाबत पढ़े लिखे मुसलमान कभी कभी आवाज भी उठाते हैं. भारतीय मुसलमानों का अक्सर ऐसे समुदाय के रूप में उदाहरण दिया जाता है, जो बड़े पैमाने पर बदलाव से दूर हैं. बदलाव की ग़ैरमौजूदगी को लेकर ढेर सारे सिद्धांत हैं, लेकिन सरकार और नीति निर्धारकों , उलेमा (धर्मगुरु) द्वारा दिए गए तर्कों में से एक यह है कि भारतीय इस्लाम के मामले में कुछ अपवाद हैं. इस तरह सबको एक वर्ग में डाल देना अपने आप में समस्या पैदा करने वाला है क्योंकि यह भारत के मुसलमानों के बीच विशाल सांस्कृतिक, भाषाई, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक विविधता की अनदेखी करता है.

 निर्मला सीतारमण का दावा

अमेरिका की यात्रा के दौरान निर्मला सीतारमण ने उन दावों को ख़ारिज किया जिनमें कहा गया था कि भारत में भाजपा के शासन के दौरान मुसलमानों के हालात ख़राब हुए हैं. निर्मला सीतरमण ने अल्पसंख्यक मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत से जुड़ी ख़बरों के संदर्भ में कहा कि अगर ऐसा होता तो भारत में मुसलमानों की आबादी बढ़ नहीं रही होती.

 इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मुसलमानों की स्थिति के लिए छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनीति जिम्मेवार है लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अपनी स्थिति के लिए मुसलमान खुद  भी  कम  जिम्मेवार नहीं हैं.  



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