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जानिए जम्मू-कश्मीर की कहानी ...स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अब तक का इतिहास...

जानिए जम्मू-कश्मीर की कहानी ...स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर अब तक का इतिहास...

N4N DESK: जम्मू –कश्मीर को देश का मुकुट कहा जाता है।यह राज्य देश के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा है। भारत को जब आजादी मिल रही थी तो अंग्रेजी शासन ने सभी रियासतों के सामने भारत और पाकिस्तान में अपना विलय कर लेने का प्रस्ताव दिया।उस समय जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी ।इसका मतलब यह हुआ कि जम्मू-कश्मीर न तो पाकिस्तान का हिस्सा रहेगा और न पाकिस्तान का। लेकिन उस समय के तत्कालीन गृह मंत्री सरकार वल्लभ भाई पटेल ने ऐसी स्तिति पैदा कर दी कि आखिरकार भारत में विलय हो गया।

बता दें कि महाराजा हरिसिंह 1925 में कश्मीर की गद्दी संभाली थी।कश्मीर में उस समय उनके सबसे बड़े विरोधी शेख अब्दुल्ला थे। शेख अब्दुल्ला ने पहले प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी की उसके बाद कश्मीर की सियासत में कूद पड़े। उन्होंने सवाल उठाना शुरू किया कि इस सूबे में मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है।
 
 शेख अब्दूल्ला ने 1932 में मुस्लिम कांफ्रेंस का गठन किया

शेख अब्दूल्ला ने 1932 में महाराजा हरि सिंह के खिलाफ बढ़ रहे असंतोष को आवाज देने के लिए ऑल जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कांफ्रेंस का गठन किया। छह साल के बाद उन्होंने इसका नाम बदलकर नेशनल कॉन्फ्रेंस रख लिया, जिसमें हिंदू और सिख समुदाय के लोग भी शामिल होने लगे।उसी समय शेख अब्दुल्ला की जवाहरलाल नेहरू से भी नजदीकी बढञने लगी। दोनों हिंदू-मुस्लिम एकता और समाजवाद पर एकमत थे। हरि सिंह के खिलाफ आंदोलन चलाते-चलाते 1940 के दशक में शेख- अब्दुल्ला कश्मीर के सबसे लोकप्रिय नेता बन चुके थे।


 महाराजा हरि सिंह आजादी के पक्ष में 

महाराजा हरि सिंह जम्मू-कश्मीर की आजादी चाहते थे।वे कांग्रेस से नफरत करते थे, इसलिए भारत में शामिल होने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. लेकिन अगर वो पाकिस्तान में शामिल हो जाते तो उनके हिंदू राजवंश का सूरज अस्त हो जाता. सितम्बर 1947 के आसपास खबरें मिलने लगीं कि पाकिस्तान बड़ी संख्या में कश्मीर में घुसपैठियों को भेजना चाहता हैजानकारों का कहना है कि महाराजा हरिसिंह आजाद कश्मीर के ख्वाब में जी रहे थे. 12 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के उप प्रधानमंत्री ने दिल्ली में कहा कि हम भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ दोस्ताना संबंध कायम रखना चाहते हैं. 

हथियारबंद कबायलियों  ने कर दिया हमला

इसी बीच हजारों हथियारबंद कबायलियों ने राज्य पर उत्तर दिशा से हमला कर दिया. 22 अक्टूबर को वो उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और कश्मीर के बीच की सरहद को पार कर गए और तेजी से राजधानी श्रीनगर की ओर बढ़े. इन हमलावरों में ज्यादातर पठान थे, जो उस इलाके से आए थे जो अब पाकिस्तान का हिस्सा बन गया है. इन कबायली विद्रोहियों ने बारामूला में बड़ा उत्पात मचाया. लूटपाट की और महिलाओं और लड़कियों से दुष्कर्म किया.
 
 महाराजा ने भारत से मांगी मदद

जानकारों की मानें तो 24 अक्टूबर को महाराजा ने भारत सरकार को सैनिक सहायता का संदेश भेजा. अगले दिन दिल्ली में भारत की सुरक्षा समिति की बैठक हुई. वीपी मेनन को जहाज से तुरंत श्रीनगर रवाना किया गया. उन्होंने श्रीनगर में महाराजा से मुलाकात करने के बाद उन्हें हमलावरों से सुरक्षित जम्मू जाने की सलाह दी. नेहरू पाकिस्तान के कबायलियों से मुकाबले के लिए भारतीय सेना को फौरन कश्मीर भेजना चाहते थे।लेकिन उन्हें रोक दिया गया।26 अक्टूबर को वीपी मेनन को जम्मू में महाराजा के पास फिर से भेजा गया. वहां मेनन से उनसे विलय पत्र पर दस्तखत कराया और दिल्ली आ गए.
 
 फिर सैनिक श्रीनगर पहुंचने शुरू हो गए

कानूनी कार्यवाही पूरी होते हीं नई दिल्ली ने भारतीय सैनिकों से भरे विमान श्रीनगर भेजने शुरू कर दिए, तब तक हमलावर श्रीनगर से कुछ ही दूरी पर रह गए थे. जब भारतीय जवानों का पहला जत्था श्रीनगर हवाई अड्डे पर पहुंचा तो हमलावर हवाई अड्डे की सरहद तक आ पहुंचे थे. अगर कबायलियों ने बारामूला में लूटपाट और औरतों के साथ दुष्कर्म में समय बर्बाद नहीं किया होता तो वो हवाई अड्डे पर कब्जा कर चुके होते और भारतीय विमानों को वहां उतारना मुश्किल हो जाता.

इसके बाद भारत ने उरी तक के क्षेत्र से कबायलियों को खदेड़ते हुए इसे अपने कब्जे में ले लिया. कश्मीर को लेकर दोनों देशों में तनातनी चरम पर थी. ये तब तक जारी रही जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली संयुक्त सुरक्षा समिति की बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली आए थे. वह और नेहरू इस बात पर सहमत हो गए थे कि पाकिस्तान कबायलियों को लड़ाई बंद करके जल्दी से जल्दी वापस लौटने के लिए कहेगा. भारत भी अपनी ज्यादातर सेनाएं हटा लेगा. संयुक्त राष्ट्र को जनमत संग्रह के लिए एक कमीशन भेजने के लिए कहा जाएगा.
 
 महाराजा  हरि सिंह बने रहे प्रमुख

भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक संबंध को लेकर बातचीत की. इसी के तहत राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में बरकरार रही, लेकिन शेख अब्दुल्ला का आपातकालीन प्रशासक के पद पर नियुक्त कर राज्य में सरकार चलाने की जिम्मेदारी उन्हें दे दी गई. इसके बाद उन्हें 05 मार्च 1948 को राज्य का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया.
 
 राज्य का पहला चुनाव
 1957 में जम्मू-कश्मीर में पहले विधानसभा चुनाव हुए. इसमें जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस विजयी रहे. इसी पार्टी के बख्शी गुलाम मोहम्मद मुख्यमंत्री बने. तब से लेकर अब वहां 11 विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं.. 2014 में हुए चुनाव में पीडीपी और बीजेपी ने मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी लेकिन वर्ष 2018 में बीजेपी महबूबा मुफ्ती की सरकार के समर्थन वापस ले लिया. तब से वहां राज्यपाल शासन लागू है.
 
 मोदी सरकार ने अब धारा 370 में किया बदलाव

पिछले कई दशकों से कश्मीर को धारा 370 और 35 ए के जरिए जो खास दर्जा मिला हुआ था. उसे केंद्र की यूपीए सरकार ने आर्टिकल 370 में संशोधन करके काफी कम कर दिया है.फिर भी 370 को हटाया नहीं गया है कि लेकिन पहले दो उपबंधों में जिस तरह बदलाव हुआ है, उससे इस राज्य पर केंद्र की पकड़ ना केवल और मजबूत होगी बल्कि आने वाले समय में यहां कई तरह के संविधान संशोधन करके नियमों में बदलाव का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है. अलबत्ता 35 एक को जरूर हटा लिया गया है. साथ ही इस पूरे राज्य को दो हिस्सों में बांटा गया है. एक जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख- इसमें जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित विधानसभा रहेगी तो लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश रहेगा। इस तरह से मोदी सरकार ने न सिर्फ धारा 370 हटाया बल्कि राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया। 

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