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बिहार के शिक्षा आंदोलन में केदारनाथ पाण्डेय का है बड़ा योगदान, इनका पूरा जीवन संघर्ष पूर्ण यात्रा का है गवाह : अजय कुमार तिवारी

बिहार के शिक्षा आंदोलन में केदारनाथ पाण्डेय का है बड़ा योगदान, इनका पूरा जीवन संघर्ष पूर्ण यात्रा का है गवाह : अजय कुमार तिवारी

PATNA : बिहार के शिक्षा आंदोलन में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष व सारण के निवर्तमान विधान पार्षद केदारनाथ पांडेय का बड़ा योगदान रहा है। इनका पूरा जीवन शिक्षा का विकास और शिक्षकों के हक की लड़ाई लड़ने का गवाह रहा है। यह कहना है कि अजय कुमार तिवारी का। 

अजय कुमार तिवारी का कहना है कि उत्तर प्रदेश के बागी बलिया जिला के कोटवा नारायणपुर गांव में जन्मे केदारनाथ पाण्डेय का व्यक्तित्व और कृतित्व विरल है। यह भी एक विरल तथ्य है की उनका संपूर्ण कृतित्व उनके समग्र व्यक्तित्व का सच्चा पारदर्शी प्रतिरूप है | 

अध्यापन,शिक्षा प्रसार ,संगठन, लेखन ,समाज सेवा का मन में भाव इन विविध क्षेत्रों में  पाण्डेय जी की संपूर्ण  सक्रियता लोक चिंतन के जिस सूत्र में ग्रथित किया जा सकता है वह भी विरल है |

शिक्षा के क्षेत्र में कुछ विशिस्ट करने का मन में संकल्प लेकर बिहार के सारण को अपनी कर्मभूमि बनाकर लगभग पाँच दशकों से बिहार की शिक्षा और शिक्षकों के एक सशक्त प्रहरी के रूप में स्थापित कर अपने को समर्पित योद्धा के रूप में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करते आ रहे हैं | 

केदारनाथ पाण्डेय ने जब अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया तब विद्यालय निजी प्रबंधन के अधीन थे और काफी कम वेतन का वह दौर था लेकिन मन मे कोई गलानि का भाव नही था ,सारण से जब सिवान 1973 में अलग जिला बना तब श्री पाण्डेय जी सिवान जिला माध्यमिक शिक्षक संघ के सचिव बने यही से उनके मन में शिक्षा और शिक्षकों की दशा और सुधार के लिए प्रचार और प्रसार का बीड़ा उठाया अपनी कर्मठता के बलबूते बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ की केन्द्रीय समिति का मुख्य हिस्सा बन गए और प्राच्य प्रभा का संपादन प्रारम्भ किया | 

शिक्षकों के स्नेह और दबाव में पांडेय जी  1992 में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव बने और लगातार इस पद पर लम्बे कार्यकाल तक बने रहे | अध्यक्ष श्री शत्रुध्न प्रसाद सिंह के साथ मिलकर संगठन को सशक्त और मजबूत बनाने का कार्य किया ,आज अध्यक्ष के तौर पर शिक्षकों की समस्याओं के निदान के लिए सतत संघर्षशील हैं | 

केदारनाथ पाण्डेय का शिक्षक काल एक संघर्ष पूर्ण यात्रा का गवाह रहा है जब मित्रों की सलाह पर सरकारी सेवा का त्याग कर 1996 में   शिक्षकों के प्रतिनिधि के तौर पर विधान परिषद का चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन चुनाव हार गए। 

अपना प्रथम चुनाव हारने के बाद भी कभी निराश नही हुए और ज्यादा ढृढ़ संकल्प के साथ मन में देश की शिक्षा में गुणवत्ता लाने ,शिक्षकों के वेतनमान में बढ़ोतरी शिक्षा की बदहाली को दूर करने का जज्बा और उत्साह के साथ कभी न हार मानने वाले केदारनाथ पाण्डेय जी ने हार में ही जीत है और हार के अन्दर छुपे हुए जीत केसंदेश तथा कार्ल मार्क्स के कथन श्रम ही सफलता की कुंजी है को आत्मसात करते हुए और सफलता की खोज के साथ चुनाव के मैदान में खड़े हुए और 2002 के विधान परिषद के चुनाव में भारी मतों से विजय प्राप्त की तब से अभी तक पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और लगातार 18 वर्षों से सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं| 

शिक्षा के तीन स्वरुप बिहार में है प्राथमिक शिक्षा,माध्यमिक शिक्षा तथा ऊँच शिक्षा। प्राथमिक शिक्षा का सरकारीकरण 1971 में और माध्यमिक शिक्षा का सरकारीकरण 1980 में हुआ और यही प्रयोग उच्च शिक्षा में 1982 में हुआ | 

प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के सरकारीकरण के पश्चात शिक्षकों की आर्थिक विसंगतिओं को दूर कराने और उन्हें सम्मान के साथ अपना जीवन यापन के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे हैं, यह कहानी अभी यहीं  खत्म नही होती बल्कि अभी शुरू होती हैं| 

बिहार में वित्त रहित शिक्षा नीति के अन्तर्गत आने वाले शैक्षणिक संस्थानों की बदहाल हालत और वहाँ कार्यरत्त शिक्षकों को ससमय भुगतान सीधे उन्हें प्राप्त हो इसके लिए अथक प्रयास किया और उसे कार्यान्वित कराया जिससे की शिक्षक प्रबन्ध समितिओं के शोषण के शिकार नहीं हो पाए |

बिहार  के सरकारी विद्यालय जो कभी देश के उच्च पदों पर काबिज अधिकारिओं की शिक्षा स्थली थे ,सरकार की उदासीनता निजी विद्यालयों को बढ़ावा देने एवं शिक्षा के निजीकरण के प्रोत्साहन स्वरुप बुरी तरह बिखर गए और डॉ लोहिआ के समान शिक्षा प्रणाली का स्वप्न और कोठारी आयोग की भावना को तार तार कर दिया गया जिससे बिहारकी शिक्षा में निरंतर गिरावट आती गई और बिहार कभी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी प्रदेश रहा है जहाँ कभी नालन्दा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय जिसमे दुनिया के कोने कोने से शिक्षा ग्रहण करने लोग आते थे शिक्षा का स्वरुप खराब होता गया और मेघावी छात्र पलायन करते गए | 

ऐसी विकट परिस्थितिओं में श्री केदारनाथ पाण्डेय एक मसीहा बनकर बिहार की शिक्षा और शिक्षकों के आंदोलन के रूप में सामने आए और सड़क से सदन तक सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कार्य किया और काफी सफल रहे | 

2005 में बिहार में राजनीतिक परिवर्तन का दौर शुरू हुआ औरनीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक  गठबंधन की सरकार का गठन हुआ और  2006 में नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति का दौर शुरू हुआ,लगभग 4.5 लाख नियोजित शिक्षक बिहार में कार्यरत हैं| 

नियोजन की जब शुरुआत हुई तब बिहार विधान परिषद में केदारनाथ पाण्डेय ने नियोजन की नियमावली की विसंगतिओं और तौर तरीकों पर परिषद में पूरजोर आवाज उठाई थी और नियोजितों को सारी सुबिधाएँ प्राप्त हो इसके लिए लम्बा संघर्ष भी किया है ,नीतीश की उसी सरकार से आज तक निरन्तर संघर्ष जारी है ,सरकार की उदासीनता एवं निर्दयी रवैये को देखत हुए केदारनाथ पाण्डेय जी ने माननीय पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उच्च न्यायालय ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया| 

सरकार पटना उच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट चली गई क्योंकि उसे शिक्षकों के साथ न्याय करना नहीं था ,सुप्रीम कोर्ट से हार जाने के बावजूद बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने हार नही माना औरअपने वेतन बिसंगति और सेवा शर्त को लागू कराने हेतु 25 फरवरी 2020 से  केदारनाथ पाण्डेय जी के नेतृत्व में पुरे माध्यमिक शिक्षक संघ हड़ताल चल गया और कोरोना जैसे वैश्विक आपदा के कारण हड़ताल को सशर्त सरकार के आश्वासन के बाद हड़ताल को स्थगित करना पड़ा और हड़ताल के दबाव और माध्यमिक  शिक्षक संघ के अथक प्रयासों से नियोजित शिक्षकों के लिए सेवा नियमावली लागू करने के लिए एक कमिटी का गठन किया गया है और आज 6000 से 30000 तक का वेतनमान तक की यात्रा ,गृह जिला में पदस्थापन ,भविस्यनिधि जैसे अनेकों लाभ सेवा निरंतरता ,प्रोनति ,ऐषिक स्थांतरण ,महिलाओं को 180 दिनों का मातृत्व अवकाश ऐसे लाभ शिक्षक समाज को प्राप्त हो इसके लिए केदारनाथ पाण्डेय के नेतृत्व में माध्यमिक संघ जोर शोर से प्रयासरत है  और सरकार जो कभी सुनने के लिए तैयार नही होती थी वह अनेको बार केदारनाथ पाण्डेय की आवाज पर अनेको बार नियोजन नियमावली में संशोधन कर लाभ देती रही है और काफी हद तक मांगों के पास समाज पहुँच गया है और जो अभी अपूर्ण है वह भी संभव है तो उसका एक ही निदान और समाधान है। 

केदारनाथ पाण्डेय जी की जीत और अब बारी शिक्षक समाज की है की ऐसे व्यक्तित्व को अपनी आवाज बना परिषद में प्रचंड मतों से जीत दिलाकर भेजने की | 

केदारनाथ पाण्डेय की विजय में हमारी विजय नजर आएगी सम्पूर्ण शिक्षक समाज गौरवान्वित महसूस करेगा| आज की परिस्थितिओं में श्री केदारनाथ पाण्डेय ही स्वीकार्य हो सकते हैं, क्योंकि वो आज प्रासंगिक और अपरिहार्य हैं ,शिक्षा को सामाजिक सरोकार से जोड़ने और उसे आंदोलन बनाने के मुखर हिमायती हैं साथ ही सकारात्मक सोच रखते हैं ,उनके योगदानों की लम्बी फेहरिस्त है अपने पास शब्द कम ,आज तक शिक्षक समाज की जो भी उपलब्धिया या जो भी चीजें प्राप्त हुई है वह अनुभवी नेतृत्व की देन है और भविस्य में जो भी उम्मीद की किरण दिखाई देती है उसकी प्राप्ति केदारनाथ पाण्डेय के अनुभवी नेतृत्व में ही प्राप्त हो सकता है| 

केदारनाथ पाण्डेय जी का एक सपना है जिसके कार्यान्वयन तक वह शांत नही बैठनेवाले है क्योंकि यह कहानी यही ख़त्म नही होती| 

सपना है एक ऐसे भविष्य का 

जो भय और भूख से रहित होगा

स्वाभिमान के साथ जीने का प्रण होगा

शिक्षक कहलाने में गर्व होगा 

शिक्षा एक आंदोलन का स्वरूप होगा

भंगी हो या कलक्टर की सन्तान 

सब मिल शिक्षा पाए एक समान 

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