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किशनगंज के मुस्लिम वोटरों ने सीएम नीतीश को नकारा ! जेडीयू के साथ आने के बाद भी बीजेपी को मिली 2015 से भी बड़ी हार..पढ़ें पूरी रिपोर्ट

किशनगंज के मुस्लिम वोटरों ने सीएम नीतीश को नकारा ! जेडीयू के साथ आने के बाद भी बीजेपी  को मिली 2015 से भी बड़ी हार..पढ़ें पूरी रिपोर्ट

PATNA: किशनगंज विस उप चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू से बीजेपी को कोई खास फायदा नहीं हुआ।2015 से तुलना करें तो जेडीयू के साथ मैदान में उतरी बीजेपी प्रत्याशी स्वीटी सिंह को इस बार 2015 के मुकाबले अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा है।पिछली दफा जहां बीजेपी उम्मीदवार 8609 वोटों के अंतर से हारी थी।वहीं इस बार 10 हजार से अधिक मतों से शिकस्त मिली है।हालांकि इस बार के चुनाव में  पिछली बार से 2345 वोट अधिक मिले हैं। 2015 में बिना जेडीयू के बीजेपी  उम्मीदवार को 57913 वोट मिले थे,वहीं 2019 के उपचुनाव में जेडीयू का साथ मिलने के बाद स्वीटी सिंह को 60258 मत मिले।यानि कि 2015 के मुकाबले महज दो हजार वोट अधिक।जबकि इस बार सत्ताधारी जेडीयू भी बीजेपी के साथ थी।वोट प्रतिशत की बात करें तो 2015 के चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से करीब 5 फीसदी कम वोट मिले थे।इस बार ओवैसी की पार्टी ने बीजेपी को 6 फीसदी से अधिक वोटों से मात दी है।

 इन आंकडों पर गौर करेंगे तो सबकुछ क्लीयर हो जाएगा।आप समझ जायेंगे कि बिहार के मुख्यमंत्री भले हीं अल्पसंख्यक वोटरों को पाले में लाने को लेकर तमाम कोशिश करते हों लेकिन हकीकत कुछ और हीं है।आज भी अल्पसंख्यक नीतीश कुमार के कहे अनुसार वोट नहीं करते।

2015 के रिजल्ट को देखिए

जरा 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के इन आंकड़ों को देखिए.....तब जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन नहीं था। नीतीश कुमार की पार्टी लालू की राजद और कांग्रेस के साथ थी।उस समय कांग्रेस प्रत्याशी डॉ जावेद को 66522 वोट मिले थे। वहीं बीजेपी प्रत्याशी स्वीटी सिंह को 57913 वोट मिले, यानि बीजेपी प्रत्याशी की 8609 वोटों से हार हुई।हार का मार्जिन 5.06 फीसदी रहा।

अब 2019 उपचुनाव रिजल्ट देखिए

2019 के उपचुनाव में जेडीयू-बीजेपी साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी।इस चुनाव में AIMIM के कयामुल होदा को 70469 वोट मिले, यानि कुल वोटों का 41.46 फीसदी ।वहीं बीजेपी के उम्मीदवार स्वीटी सिंह को 60258 मत पड़े,यानि कुल वोट के 35.46 फीसदी।इस तरह से दोनों के बीच मतों का अंतर 6 फीसदी रहा और बीजेपी प्रत्याशी स्वीटी सिंह10204 वोट से चुनाव हार गईं।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो किशनगंज के अल्पसंख्यक वोटरों ने नीतीश को अपना नेता नहीं माना है। भले ही वो अल्पसंख्यकों के लिए कई तरह की योजना चला रहे हों .लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि अल्पसंख्यक नीतीश से अधिक ओवैसी से प्यार करते हैं।

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