पटना. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृहजिला नालंदा में 1 जून को मतदान होना है. गौरवशाली इतिहास में विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय और प्रमुख धार्मिक, आध्यत्मिक केंद्र राजगीर का केंद्र नालंदा सियासी तौर पर जदयू का अभेद किला रहा है. वर्ष 1996 से लगातार जदयू नालंदा से जीतते रही है. ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में जदयू के मजबूत किले में सेंधमारी करने की बड़ी चुनौती भाकपा-माले प्रत्याशी संदीप सौरव की है. वहीं जदयू ने लगातार चौथी बार कौशलेंद्र कुमार को उम्मीदवार बनाया है. नालंदा से 1996, 1998 और 1999 में जार्ज फर्नांडिस ने जीत हासिल की. वहीं 2004 में नीतीश कुमार खुद सांसद बने जबकि 2009 से कौशलेंद्र कुमार तीन बार सांसद बन चुके हैं.
नीतीश ही नायक : नालंदा में नीतीश कुमार अपनी इसी प्रतिष्ठा को बचाने की पूरी कोशिश में है. नालंदा भी अपने बेटे (नीतीश) की अपील पर अब तक जदयू को लगातार सात बार जीत दिला चूका है. नालंदा में आम धारणा भी है कि वह देश को पहचान देता है क्योंकि नीतीश कुमार यहाँ से आते हैं. नीतीश की इसी भावनात्मक जुड़ाव का बड़ा फायदा चुनाव दर चुनाव जदयू को होता रहा है. चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव हर बार जदयू और एनडीए की पकड़ यहाँ मजबूत रही है. जैसे नालंदा संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले सात विधानसभा सीटों में छह पर एनडीए के विधायक हैं. यह ऐसा मजबूत पक्ष है जिसके सहारे चौथी बार कौशलेंद्र कुमार अपने लिए संसद की राह आसान होने का सपना पाल रखे हैं.
भाकपा का पुराना गढ़ : जेएनयू से पीएचडी, छात्र संघ के महासचिव और प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर भाकपा-माले में आकर 2020 में पालीगंज विधानसभा सीट से विधायक बने संदीप सौरव का मानना है कि नालंदा में रोचक मुकाबला होने जा रहा है. खुद को गरीबों के हक-हुकुक की आवाज उठाने वाला नेता बताते हुए संदीप जोरशोर से गाँव गाँव में घूमकर लोगों के बीच चुनाव प्रचार कर रहे हैं. 1991 में भाकपा माले ने आखिरी बार यहां लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराया था. इसके पहले 1980 और 1984 में भी भाकपा के प्रत्याशियों ने नालंदा से जीत हासिल की थी. संदीप सौरव इन समीकरणों के सहारे मानते हैं कि नालंदा शुरू से ही भाकपा का मजबूत गढ़ रहा है. पिछले चुनावों की तुलना में इस बार नालंदा में मुद्दे अलग और समीकरणों में वे जदयू को जोरदार टक्कर देने की बातें करते हैं. पुराने भाकपा कार्यकर्ताओं को जोड़कर अपने लिए अलख जगाने की कोशिश कर रहे हैं. भाकपा के समर्थक भी नीतीश कुमार सिद्धांतविहीन राजनीति करने का आरोप लगाते हैं.
जातीय समीकरण बेहद खास : इन सबके बीच नालंदा में भले ही लोकसभा चुनाव में लड़ाई जदयू के कौशलेंद्र कुमार और भाकपा के संदीप सौरव में हो लेकिन दोनों ओर से नीतीश कुमार ही चर्चा के केंद्र में हैं. आम लोगों की जुबान पर यह चर्चा भी आम है कि नीतीश का उभार नालंदा का उभार है. कुर्मी जाति बहुल इस लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण का भी बड़ा लाभ जदयू को मिलता रहा है. 22 लाख से ज्यादा मतदाताओं वाले नालंदा में सर्वाधिक मतदाता कुर्मी वर्ग से हैं. करीब सवा चार लाख कुर्मी मतदाता माने जाते हैं. वहीं साढ़े तीन लाख के करीब यादव वोटर और दो लाख के करीब मुस्लिम वोटर हैं. इसी तरह पौने दो लाख बनिया, एक लाख 40 हजार के करीब पासवान और करीब एक लाख कुशवाहा मतदाता हैं. सवर्णों की संख्या भी इसी के आसपास है. हालाँकि पिछले चुनावों में देखने को मिला है कि जाति की दीवार तोड़कर जदयू को बड़ी जीत दिलाने में सभी वर्गों से बड़ा साथ मिला. इस बार भी जदयू को यही उम्मीद है और इसकी वजह नीतीश कुमार का चेहरा है.
जदयू को बड़ी उम्मीद : जदयू की मजबूती का अहसास इससे भी होता है कि अस्थावां, बिहार शरीफ़, राजगीर, इस्लामपुर, हिलसा, नालंदा और हरनौत विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें सिर्फ इस्लामपुर में राजद के विधायक हैं. 5 पर जदयू और एक पर भाजपा का कब्जा है. ऐसे में नीतीश कुमार के नाम पर चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ने उतरे कौशलेंद्र कुमार बड़ी उम्मीद लगाए है. वहीं संदीप सौरव सूबे के सबसे ताकतवर शख्स को मात देने की तमन्ना पाले नालंदा में नई इबारत लिखना चाहते हैं.