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प्रतिष्ठा की लड़ाई हार गए नीतीश-तेजस्वी, रुपौली की जनता ने जदयू-राजद को नकारा, जानिए कौन हैं इतिहास बनाने वाले शंकर सिंह

प्रतिष्ठा की लड़ाई हार गए नीतीश-तेजस्वी, रुपौली की जनता ने जदयू-राजद को नकारा, जानिए कौन हैं इतिहास बनाने वाले शंकर सिंह

प्रतिष्ठा की लड़ाई हार गए नीतीश-तेजस्वी, रुपौली की जनता ने जदयू-राजद को नकारा, जानिए कौन हैं इतिहास बनाने वाले शंकर सिंह

पटना. प्रतिष्ठा की लड़ाई में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अपनी साख नहीं बचा पाए हैं. जदयू और राजद दोनों दलों के प्रत्याशियों को रुपौली विधानसभा उपचुनाव में वहां के मतदाताओं ने नकार दिया है. शनिवार को आए चुनाव परिणाम में रुपौली से निर्दलीय शंकर सिंह ने जदयू के कलाधर मंडल को हराकर इतिहास रच दिया. एक ओर जहां कलाधर मंडल के लिए सत्ताधारी एनडीए की ओर से सीएम नीतीश सहित, कई केंद्रीय मंत्रियों और बिहार एनडीए के दिग्गज नेताओं ने चुनाव प्रचार किया था. वहीं राजद और महागठबंधन की ओर से बीमा भारती के लिए जोरदार चुनाव प्रचार किया गया. लेकिन निर्दलीय शंकर सिंह ने अकेले ही सबको धूल चटाने में सफलता पाई. 

कौन हैं शंकर सिंह : वर्ष 2005 में शंकर सिंह ने लोजपा प्रत्याशी के तौर पर विधायक का चुनाव जीता था. हालाँकि बाद में हुए विधानसभा चुनावों में शंकर सिंह ने रुपौली में कई बार किस्मत आजमाई लेकिन बीमा भारती लगातार उन्हें चुनाव हराते रही. बीमा भारती ने 2000, 2005, 2010, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की. वहीं शंकर सिंह भले ही चुनाव हारते रहे हों लेकिन उन्होंने अपने आप को इस इलाके की सियासी गतिविधियों में खुद को सक्रिय रखा. अलग अलग चुनावों में उन्होंने अपने कई लोगों को उतारा जिसमें कई बार उनके लोगो को सफलता मिली. मौजूदा समय में शंकर सिंह की पत्नी सुनीता सिंह जिला परिषद सदस्य हैं. दोनों पति-पत्नी राजनीती में पूरी तरह सक्रिय हैं. 

राजपूत जाति का बड़ा चेहरा : शंकर सिंह राजपूत जाति से आते हैं. इस इलाके में सवर्ण मतदाताओं के बीच शंकर सिंह की अच्छी खासी पकड़ है. साथ ही इस इलाके के अन्य जाति के मतदाताओं का भी शंकर सिंह को साथ मिलता रहा है. अब उसी का कमाल है कि इस चुनाव में उन्होंने अपनी जीत सुनिश्चित की है. इसके पहले लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान जब जदयू उम्मीदवार को रुपौली में बढत मिली थी और पप्पू यादव यहां 25 हजार से ज्यादा वोटों से पिछड़ गए थे तब भी इसे शंकर सिंह का ही करिश्मा माना गया था. हालाँकि लोजपा (रामविलास) के नेता रहे शंकर सिंह को उपचुनाव मेंएनडीए से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने निर्दलीय किस्मत आजमाई. 

पप्पू यादव का नहीं चला सिक्का : पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने लोकसभा चुनावों में भले ही बीमा भारती से मुकाबला किया था लेकिन विधानसभा उपचुनाव में उसी बीमा को मदद करने रुपौली में उतर गये. लेकिन पप्पू यादव को यहां बड़ा झटका लगा है. पप्पू यादव के तमाम दावे रुपौली में फेल हो गये. वहीं शंकर सिंह ने पप्पू यादव की भांति ही अपने बलबूते निर्दलीय ही चुनाव जीतकर इतिहास बना डाला. 

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