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पिछड़ों के मसीहा बीपी मंडल की 100वीं जयंती आज

पिछड़ों के मसीहा बीपी मंडल की 100वीं जयंती आज

PATNA :  बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बी पी मंडल की आज 100वीं जयंती है। इस मौके पर उनके पैतृक गांव मुरहो (मधेपुरा) में राजकीय समारोह का आयोजन किया गया।  इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना से मधेपुरा पहुंचे। बी पी मंडल पिछड़े समुदाय के मसीहा माने जाते हैं।

1952 के पहले चुनाव में बने थे विधायक

बीपी मंडल का जन्म 25 अगस्त 1918 को हुआ था। उनकी शुरुआती शिक्षा पैतृक गांव मुरहो (मधेपुरा) में हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई राज हाई स्कूल दरभंगा से हुई। पटना कॉलेज से उन्होंने अंग्रेजी ऑनर्स से स्नातक किया था। पढ़ाई के बाद वे समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हुए। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में ही वे विधायक चुने गये थे। लेकिन 1957 का दूसरा विधानसभा चुनाव हार गये। 1962 में फिर विधायक चुने गये।

1 फरवरी 1968 को सीएम बने थे बीपी मंडल

1967 के चौथे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई थी। महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार बनी थी। इस सरकार में बीपी मंडल भी मंत्री थे। बीपी मंडल उस समय विधायक नहीं बल्कि लोकसभा के सदस्य थे। राममनोहर लोहिया ने बीपी मंडल के मंत्री बनने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह पार्टी के संविधान और नीति के खिलाफ है। लोहिया बीपी मंडल से इस्तीफा मांगने लगे। इसका असर ये हुआ कि महामाया सरकार में गुटबाजी शुरू हो गयी।

उस समय महामाया गुट में 24 विधायक  थे। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के 68 विधायक थे। संसोपा के नेता कर्पूरी ठाकुर महामाया सरकार में उप मुख्यमंत्री थे। कुछ ही समय के बाद यह मांग उठने लगी कि मुख्यमंत्री संसोपा का होना चाहिए। गुटबाजी के कारण महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार 1968  के जनवरी में ही गिर गयी। 28 जनवरी 1968 को सतीश प्रसाद सिंह तीन दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। उन्होंने बीपी मंडल को बिहार विधान परिषद के लिए मनोनीत कर लिया। कहा जाता है कि बीपी मंडल को सीएम बनाने के लिए ही सतीश प्रसाद सिंह को अल्प काल के लिए सीएम बनाया गया था। बीपी मंडल को किसी तरह MLC बनना था। MLC  बनने के बाद बीपी मंडल के सीएम बनने का रास्ता साफ हो गया था।  तय रणनीति के तहत सतीश प्रसाद सिंह ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। 1 फरवरी 1968 को बीपी मंडल ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन उस समय गैरकांग्रेस संविद सरकार में इतनी जबर्दस्त गुटबाजी सिर उठा चुकी थी कि 30 दिन बाद ही मंडल सरकार का पतन हो गया। 2 मार्च 1968 को बीपी मंडल ने त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद वे 1971 में सांसद बने। 1977 में वे जनता पार्टी के टिकट पर सांसद बने थे।
 
 

मोरार जी देसाई ने बनाया था मंडल आयोग का अध्यक्ष

विधानसभा हो लोकसभा, बीपी मंडल पिछड़े समुदाय के सवाल को सदन में प्रमुखता से उठाते थे। इस बात से तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई उनसे बहुत प्रभावित थे। मोरार जी देसाई ने 1979 में जब पिछड़े वर्ग के आरक्षण पर विचार करने के लिए अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया तो बीपी मंडल को इसका अध्यक्ष बनाया। इसमें पांच सदस्य और भी थे।  मंडल आयोग ने 1980 में तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को ये रिपोर्ट सौंप दी थी जिसमें पिछड़े वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी। 1982 में  बी पी मंडल का निधन हो गया था। फिर करीब 10 साल के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने 7 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की। 13 अगस्त को 27 फीसदी आरक्षण की अधिसूचना जारी की गयी थी। इसके बाद बीपी मंडल पिछड़ों के मसीहा के रूप में विख्यात हो गये।

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