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Pitru Paksha 2024: सरस्वती स्नान से मिलेगा मोक्ष! गया में पितृपक्ष का पांचवां दिन क्यों है खास?

Pitru Paksha 2024: सरस्वती स्नान से मिलेगा मोक्ष! गया में पितृपक्ष का पांचवां दिन क्यों है खास?

गया में चल रहे 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले का पांचवां दिन श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन सरस्वती स्नान, पंचरत्न दान, मातंगवापी श्राद्ध और धर्मारण्य कूप के मध्य में श्राद्ध और बौद्ध दर्शन का आयोजन किया जाता है। श्रीविष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभू लाल विट्ठल ने जानकारी दी कि मेले के चौथे दिन जिन श्रद्धालुओं ने पंच तीर्थ और अन्य वेदी स्थलों पर पिंडदान और तर्पण का अनुष्ठान नहीं कर पाए, वे सभी 20 सितंबर को पुनः इन स्थानों पर पिंडदान का आयोजन कर सकेंगे। पितृपक्ष मेला हर साल गया में आयोजित होता है, जो हिंदू धर्म में पितरों को श्रद्धांजलि देने का एक प्रमुख अवसर माना जाता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं।  इस समय गयाजी श्रद्धालुओं से भरा रहता है। पंच तीर्थ स्थलों पर विशेष कर्मकांड किए जाते हैं, जिनमें सरस्वती स्नान और पंचरत्न दान का विशेष महत्व होता है।


पितृपक्ष मेले के पांचवें दिन सरस्वती स्नान और पंचरत्न दान का विधान होता है। सरस्वती स्नान को पवित्रता और ज्ञान की देवी मां सरस्वती से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सरस्वती स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। पंचरत्न दान, जिसमें पांच प्रमुख धातुएं (सोना, चांदी, तांबा, कांस्य, और पीतल) दान की जाती हैं, पितरों की तृप्ति के लिए बेहद फलदायी माना जाता है। मातंगवापी स्थल पर भी श्राद्ध का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि यहां श्राद्ध करने से पूर्वजों की आत्मा को विशेष शांति प्राप्त होती है। इसके अलावा, धर्मारण्य कूप में भी श्राद्ध और बौद्ध दर्शन का विशेष विधान है। यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी खास महत्व रखता है। यहां किया गया पिंडदान न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों बल्कि बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए भी पवित्र माना जाता है।


पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया को विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। पंडितों और पुरोहितों के मार्गदर्शन में यह कर्मकांड किए जाते हैं। पिंडदान करने वाले व्यक्ति को सबसे पहले पवित्र गंगा या किसी पवित्र जलाशय में स्नान करना होता है। इसके बाद, पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए चावल, तिल और जल का अर्पण किया जाता है। माना जाता है कि यह अनुष्ठान पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करता है और उनके आशीर्वाद से परिवार को समृद्धि और सुख-शांति मिलती है। जिन श्रद्धालुओं ने अब तक पिंडदान और तर्पण नहीं किया है, उनके लिए 20 सितंबर का दिन विशेष अवसर लेकर आ रहा है। श्रीविष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति ने इस दिन पंच तीर्थ स्थलों पर पुनः पिंडदान और तर्पण का आयोजन करने का निर्णय लिया है। श्रद्धालु इस अवसर का लाभ उठाकर अपने पितरों के लिए श्रद्धा अर्पित कर सकते हैं।


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