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आतंकवादियों के स्वागत में लगने वाले नारे अब नेताओं के स्वागत में लगते हैं- ये है देश का सबसे 'बदनाम नारा'

आतंकवादियों के स्वागत में लगने वाले नारे अब नेताओं के स्वागत में लगते हैं-  ये है देश का सबसे 'बदनाम नारा'

दिल्ली. नेताओं के स्वागत और उनकी जनसभाओं में समर्थकों की ओर से नारे लगाना बेहद आम बात है. लेकिन हालिया वर्षों में भारत के हिंदी पट्टी राज्यों में एक ऐसा नारा लोगों की जुबान पर चढने लगा है जो किसी दौर में कश्मीर में अलगावादियों और आतंकवादियों के समर्थन में लगाया जाता था. नारे लगाने वाले नारे के इतिहास से पूरी तरह अनजान रहते हैं और उत्साह में अपने नेता के लिए जोरदार नारे लगाते हैं.

'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’. हाल के वर्षों में कई जगहों पर नेताओं के स्वागत में यह नारा खूब बुलंद होता है. चाहे बिहार-उत्तर प्रदेश हो या हैदराबाद या फिर मुंबई-दिल्ली ही क्यों न हो. इन सभी जगहों पर नेताओं की विराटता, शक्ति और जनसमर्थन को दर्शाने के लिए 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’ खूब गूंजते हैं. लेकिन भारत के इतिहास में यह एक ऐसा नारा है जो भारत के खिलाफ बगावत करने वालों के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ है. 

कश्मीर पिछले 100 साल से ज्यादा समय से भारत के लिए एक दुखती रग रहा और आज भी बना हुआ है. चाहे 1947 में आजादी के पहले का करीब दो दशक का समय हो या उसके बाद से अब तक कश्मीर को लेकर भारत में सबसे ज्यादा विवाद और रक्तपात हुआ है. इसी कश्मीर में जब 1980 के दशक में आतंक की घटनाओं ने जोर पकड़ा और सन 90 में यह चरम पर पहुंचा तो उस दौर में एक विवादित नारा भी घाटी की फिजाओं में गूंजने लगा. 


कश्मीर को भारत से अलग करने की मांग को लेकर आजादी के बाद से ही अलगावादियों का एक समूह आवाज बुलंद करता रहा है. वहीं 1980 के दशक में जब यह रक्तरंजित आतंक में तब्दील हुआ तब घाटी के अलगावादियों और चरमपंथी समूहों को नायक मानने वालों ने हथियारबंद आंतकवादियों को भी अपना नायक मान लिया. उसी दौर में कश्मीर से हिंदुओं को जबरन भगाने, उनकी सम्पत्ति लुटने, बहू-बेटियों को बेइज्जत किया गया. यह सब हथियारबंद आतंकियों ने किया. 

कहा जाता है कि उस दौर में जब भी आतंकियों का समूह जब कश्मीर के गांवों-कस्बों में पहुंचता तो वहां कश्मीर की आजादी के समर्थक लोग उनके स्वागत में नारे लगाते. यह नारा था - 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’. देखते ही देखते अगले यह नारा कश्मीर घाटी में लोगों की जुबां पर चढ़ गया. आतंकियों के स्वागत के साथ ही अलगावादियों का भी स्वागत लोग 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’ के नारे से किया जाने लगा. यह ऐसा नारा था जो आंतकियों का जोश और जज्बा बुलंद करता. वे हिंदुओं, भारतीय सैनिकों और भारत विरोधी गतिविधियों में रक्तपात करते और कश्मीर की सफेद चादर ओढ़े बर्फीली खूबसूरती को खून से लाल करते. और उनके समर्थक 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’ के नारे लगाकर उनका स्वागत करते. 

और अजीब संयोग है कि यह नारा अब भारत के नेताओं के स्वागत में लगाया जाता है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी अक्सर जब हैदराबाद या अन्य जगहों पर जनसभा करते हैं तो उनके स्वागत में यह नारा गूंजता है. बिहार में इन दिनों चिराग पासवान, मुकेश सहनी जैसे युवा नेताओं के लिए अक्सर यह नारा सुना जाता है. उत्तर प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनाव में चाहे भाजपा हो या समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उनके नेताओं के लिए यह नारा खूब गूंज रहा है. पंजाब में इस बार के चुनाव में यह नारा सुनने को मिला. 

जानकारों का कहना है कि इस नारे में ऐसा कुछ नहीं है जो किसी आतंक या भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देता हो लेकिन कश्मीर में 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’ नारे की आड़ में जिस तरह से आतंकियों का मनोबल बढ़ाया गया था वह जरुर इस नारे के एक स्याह पक्ष है. हालांकि इस नारे की शुरुआत भी कश्मीर से ही मानी जाती है. 

इतिहास की घटनाएं बताती हैं कि जब 1932 के बाद कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने वहां के शासक राजा हरि सिंह का विरोध किया था तब भी 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’ के नारे गूंजते. शेख अब्दुल्ला ने उस दौर में मुसलमानों के हित की लड़ाई के लिए कश्मीर में कौमी आंदोलन छेड़ा था. उसी समय उन्होंने एक नारा दिया था- 'महाराजा कश्मीर छोड़ो'. अपने इस आंदोलन से शेख अब्दुल्ला खूब लोकप्रिय हुए और गाहे बेगाहे उनके लिये 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया- शेर आया’ के नारे लगने लगे. अब 100 साल से ज्यादा के बाद यह नारा भारत के बड़े हिस्से में पहुँच गया है. 



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