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शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदार पांडेय ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का किया स्वागत, केन्द्र सरकार से कुछ सवालों का मांगा जवाब

शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदार पांडेय ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का किया स्वागत, केन्द्र सरकार से कुछ सवालों का मांगा जवाब

PATNA : बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदारनाथ पांडे ने ऩई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए केन्द्र सरकार सरकार से इस नीति को लेकर कुछ सवालों का जवाब मांगा है। 

उन्होंने एक बयान में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति स्वतंत्र भारत की तीसरी नीति है, जो 6 वर्षों की  मशक्कत के बाद अपनी खूबियों और खामियों के साथ सामने आई है|


उन्होंने कहा है कि वस्तुतः शिक्षा की राष्ट्रीय नीति सरकार का दृष्टि पत्र होता है जिसके आलोक में अगले वर्षों में वह काम करती है और कानून बनाकर उसे लागू करती है। इस नीति में एक बात स्वागत योग्य है कि विद्यालय शिक्षा यानी 3 वर्ष से 18 वर्ष तक की शिक्षा को सार्वजनिकरण के दायरे में लाने की बात कही गई है। हालांकि देश के शिक्षक संगठनों छात्र संगठनों और नागर समाज की लंबे समय से मांग रही है कि 18 वर्ष तक की शिक्षा को शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे में लाया जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ| 

दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि सरकार ने शिक्षा की 10 + 2 की संरचना को बदलते हुए 5 + 3 + 3 + 4 के रूप में लागू करने की बात कही है और 3 वर्षों के शिक्षा को पूर्व विद्यालय शिक्षा के दायरे में रखी गई है। लेकिन विडंबना है इसे आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से देने की बात कही गई है जहां व्यवहार में पढ़ाई की ना तो कोई व्यवस्था है और ना वातावरण? 

इस नीति में तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है की कला, विज्ञान और वाणिज्य की अलग-अलग धाराओं को विलोपित कर दिया गया है। यानी छात्र किसी भी स्तर पर अपनी भूल सुधार कर सकते हैं लेकिन यह बात चिंताजनक है कि कक्षा 6 से ही कौशल शिक्षा देने की बात कही गई है जो राष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानूनों में ढील  देगा और बच्चों को छोटी उम्र में ही बाल श्रमिक  बनने के   लिए विवश होना पड़ेगा| 


केदार पांडेय ने कहा है कि इस नीति की एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि बोर्ड की परीक्षाएं ज्ञान आधारित होंगी और शिक्षा में नई तकनीकों का प्रयोग और डिजिटल पुस्तकालय की व्यवस्था पर जोर दिया गया है लेकिन यह बात ध्यान में नहीं रखी गई कि देश के  70 फ़ीसदी  विद्यालयों में बच्चों के पास नई तकनीक और डिजिटल पुस्तकालय की व्यवस्था है कि नहीं और अगर बनानी है तो इसके लिए धनराशि की व्यवस्था कैसे की जाएगी?  सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शिक्षा के लक्ष्य जिसके द्वारा देश के सभी बच्चों को समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बात कही गई है उसे 2030 तक निर्धारित किया है जो अभी 10 वर्ष  दूर है|

उन्होंने कहा है कि भारत जैसे देश में यह लक्ष्य और पहले से निर्धारित किया जाना चाहिए था  इस नीति में स्कूल से बाहर के दो करोड़ बच्चों को स्कूल में लाने का लक्ष्य निर्धारित है लेकिन कोई समय सीमा तय नहीं की गई|

वहीं इस नीति की सबसे बड़ी कमी यह है कि पहली और दूसरी नीति में बच्चों को समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए सार्वजनिक धन पर आधारित  समान स्कूल प्रणाली की पड़ोस पद्धति शिक्षा निर्धारित करने की बात कही गई थी उसका कोई जिक्र नहीं है। इस बात के लिए इस नीति की प्रशंसा की जानी चाहिए कि शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन, सुविधाएं देते हुए उनकी स्थानीय  नियुक्ति  की बात कही गई है। लेकिन और शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से मुक्त रखने की बात भी कही गई है तथा पारा शिक्षक,   संविदा शिक्षक,  जैसे शिक्षकों की परिकल्पना को  नकार दिया गया है| 


केदार पांडेय ने कहा कि इसके लिए जितना निवेश करने की जरूरत होगी उसके लिए कोई प्रतिबद्धता व्यक्त नहीं की गई है आज भी राष्ट्रीय समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत बिहार में  उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों का वेतन 6-6 महीने लंबित रहता है और भारत सरकार अपनी शिक्षा के बजट को लगातार घटती जा रही है। हालांकि जीडीपी का 6% खर्च करने का लक्ष्य बताया गया है किंतु उसकी भी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

उन्होंने कहा है कि एक अच्छी बात और कही गई कि माध्यमिक विद्यालयों को केंद्र बनाकर संकुल व्यवस्था लागू की जाएगी। लेकिन जो स्वरूप है उसमें उन स्कूलों में स्थानीय लोगों का प्रभुत्व प्रशासनिक दिक्कतें पैदा करेगा|   

भाषा के संबंध में नीति स्पष्ट है कि बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा दी जाएगी लेकिन क्या सरकार अंग्रेजी माध्यम का व्यापारिक घरानों के विद्यालयों जो प्रभु वर्गों द्वारा संचालित हैं उन पर नियंत्रण कर सकेगी ? जबकि सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि पब्लिक, प्राइवेट, पार्टनरशिप में शिक्षा की व्यवस्था चलती रहेगी तो इससे निजीकरण और बाजारीकरण के दायरे और विकराल रूप धारण करेंगे

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