मुंगेर का 1934 के भूकंप का विनाश लीला, जिसे याद कर आज भी रूह कांप जाती है...याद में आज भी बंद रहते हैं बाजार

मुंगेर कालचक्र में जब हम ठीक आज से 90 वर्ष पहले 15 जनवरी 1934 को याद करते है तो आजज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 15 जनवरी 1934 की दोपहर मुंगेर मे आई प्रलयंकारी भूकंप ने मुंगेर को तब दहला दिया । जिसमें हजारों जाने चली गई । आंकड़ों में मात्र 1434 लोगों की मौत ही दर्ज की गई लेकिन ये संख्या बहुत कम बताई गई है.
इस प्रलयलीला को आज की नई पीढ़ी भले ही नहीं जानती हो पर , पर इसका जिक्र आज बुजुर्गों के जेहन से नहीं जाता है . 15 जनवरी 1934 को 8.4 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाली भूकंप न पहले कभी आई थी न आज तक आई है. मुंगेर शहर में हर तरफ तबाही का माहौल था. तबाही इतनी थी कि धन-बल के साथ जनबल की भी भारी क्षति हुई थी .
आंकड़ों के अनुसार 1434 लोग इस भूकंप में मारे गए थे खेतों में दरारें पड़ गई थी और चारों ओर हाहाकार मचा था. प्रलय से उठी चीख देश ही नहीं पूरी दुनिया तक पहुंची. यही कारण रहा कि देश के अलग अलग हिस्सों से कई राजनीतिक और सामाजिक संगठन लोग मदद के लिए मुंगेर पहुंचने लगे. अंग्रेजी हुकूमत भी मुंगेर की तबाही देख हक्का बक्का रह गयी. पूरा शहर मलवे में तब्दील हो गया था.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ संपूर्णानंद,पंडित मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू, खान अब्दुल गफ्फार खान, यमुना लाल बजाज, आचार्य कृपलानी जैसे लोगों ने मुंगेर में आकर कार सेवा किया था , साथ ही सभी ने शहर को बसाने में अपना सहयोग दिया .
1934 से पहले मुंगेर की बसावट संघन थी. जिसके बाद शहर को फिर से नइ तकनीक के आधार पर बसया. शहर की सड़कें चौड़ी की गई. हर सड़क को एक दूसरे से जोड़ दिया गया. यहीं कारण है कि मुंगेर में हर सड़क पर चौराहा है. भूकंप की घटना को 90 वर्ष जरूर बीत गए, लेकिन मुंगेर के लोग इस दर्दनाक हादसे में मृत हुए लोगों को आज भी याद करते है और हर वर्ष 15 जनवरी को भूकंप दिवस मानते है. इस दिन पूरा बाजार बंद रहता है. शहर के बेकापुर के विजय चौक पर मृत आत्माओं की शांति के लिए हवन के बाद दरिद्र नारायाण भोज का आयोजन शहर के व्यवसायियों के द्वारा किया जाता है