बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

ORS के जनक की 88 साल की उम्र में ली अंतिम सांस! 1971के बांग्लादेश युद्ध में करोड़ों की जान बचानेवाले डॉक्टर की हुई गुमनाम मौत, जानें कौन हैं वो

ORS के जनक की 88 साल की उम्र में ली अंतिम सांस! 1971के बांग्लादेश युद्ध में करोड़ों की जान बचानेवाले डॉक्टर की हुई गुमनाम मौत, जानें कौन हैं वो

DESK : ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन(ORS) के जनक डॉक्टर दिलीप महालनोबिस (Dilip Mahalanabis) का आज 88 साल की उम्र में निधन हो गया. वह काफी समय से लंबी बीमारी से जूझ रहे थे. उन्होंने कोलकाता के एक प्राइवेट अस्पताल में आखिरी सांस ली. महालनोबिस ने ओआरएस की वजह से 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान लाखों लोगों की जिंदगी बचाई थी. उन्हें लाइफ सेविंग सॉल्यूशन को विकसित करने और ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी (ORT) को प्रचलित करने का श्रेय दिया जाता है. अफसोस की बात जिस डॉक्टर को पूरी दुनिया में सम्मान मिला, वह अपने देश में उससे वंचित रहा। न तो केंद्र और न ही बंगाल सरकार ने उन्हें कोई सम्मान दिया। बीते सोमवार को वह गुमनाम रूप अंतिम नींद में चले गए।

डॉक्टर दिलीप महालनोबिस ने 1970 के दशक में पश्चिम बंगाल के बनगांव के पास शिविरों में लाखों बांग्लादेशी शरणार्थियों का इलाज करते हुए पहली बार ORS का इस्तेमाल किया था.  एक रिपोर्ट के मुताबिक, महलानाबिस ने इस ओआरएस के साथ हैजा से पीड़ित कई लोगों को ठीक किया और यह एक जीवन रक्षक वरदान साबित हुआ. महालनोबिस को इस काम लिए विश्व स्तर पर पहचान मिली. विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी उनके काम को मान्यता दी है और उन्हें कई अवॉर्ड्स से नवाजा.

मुख्य रूप से बाल रोग चिकित्सक के रूप में मशहूर डॉक्टर दिलीप महालनोबिस ने 1966 में पब्लिक हेल्थ में कदम रखते ही उन्होंने ORT पर काम शुरू किया. डॉक्टर रिचर्ड ए कैश और डेविड आर नलिन के साथ कोलकाता के जॉन्स हॉपकिंग यूनिवर्सिटी इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिसिन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग से ओआरटी को लेकर शोध किया. इसके बाद उन्होंने ओआरएस पर काम किया और उसे बनाया.


बांग्लादेश युद्ध के दौरान ओआरएस बचाई थी करोड़ों की जान

लैंसेट जर्नल ने इसे 20वीं सदी की ‘शायद सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रगति’ कहा था, लेकिन, डॉ. दिलीप महालनोबिस को लगभग भुला दिया गया है. उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से उचित मान्यता नहीं मिली. साल 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान पश्चिम बंगाल के बनगांव में एक शरणार्थी शिविर में हैजा फैल गया था. उस समय हैजा के इलाज के अत: स्रावी द्रव का इस्तेमाल होता था, लेकिन उसका स्टॉक भी खत्म हो गया था. इस अनिश्चित स्थिति में डॉ. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग की मदद से डॉ. दिलीप महालनोबिस ने कैंप के निवासियों के लिए ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी या ओआरटी का उपयोग करने का जोखिम उठाया. ओआरएस में चार चम्मच टेबल सॉल्ट, तीन चम्मच बेकिंग सोडा और 20 चम्मच कमर्शियल ग्लूकोज का मिश्रण तैयार किया और इसका तत्काल प्रभाव पड़ा. ओआरएस के प्रयोग ने दो सप्ताह के भीतर उनकी देखरेख में शिविरों में मृत्यु दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 3.6 प्रतिशत कर दिया. नमक और ग्लूकोज को मिलाकर ओआरएस कैसे बनाया जाता है. इसका विवरण एक गुप्त बांग्लादेशी रेडियो स्टेशन पर प्रसारित किया गया. युद्ध की गति बदल गई थी.

देश में नहीं मिला सम्मान

डॉ. विश्व स्वास्थ्य संगठन दिलीप महालनोबिस के इलाज की मान्यता थी और ओआरएस का उपयोग शुरू हो गया. इस असाधारण योगदान के लिए 1994 में डॉ. दिलीप महालनोबिस को रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के सदस्य के रूप में चुना गया. डॉ. दिलीप महालनोबिस को 2002 में, उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका से पॉलीन पुरस्कार और 2006 में थाईलैंड सरकार से प्रिंस महिदोल पुरस्कार मिला. हैरानी की बात यह है कि डायरिया के इलाज में क्रांति लाने के लिए दुनिया भर में उच्च प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद इस बंगाली डॉक्टर को अपने ही देश में मान्यता नहीं मिली और बिना केंद्र या राज्य सरकार की मदद और सम्मान के बिना एक गुमनाम मौत मिली


Suggested News