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बिहार के लोहार जाति ने मोदी सरकार को दिया अल्टीमेटम,हमारी मांगों को नहीं मानना बीजेपी सरकार को पड़ेगा महंगा,24 के चुनाव में 40 लाख वोटों से धोना पड़ेगा हाथ....

बिहार के लोहार जाति ने मोदी सरकार को दिया अल्टीमेटम,हमारी मांगों को नहीं मानना बीजेपी सरकार को पड़ेगा महंगा,24 के चुनाव में 40 लाख वोटों से धोना पड़ेगा हाथ....

जैसे जैसे लोकसभा चुनाव 2024 का चुनाव नजदीक आ रहा है, आरक्षण का जिन्न बोतल से निकल कर फिर सड़क पर दिखने लगा है. बिहार में आरक्षण को लेकर लोहार जाति ने केंद्र सरकार को अल्टीमेटम तक दे दिया है. लोहार जाति के नेताओं ने साफ तौर पर घोषणा की है कि अगर लोहार जाति को आरक्षण नहीं मिला तो वे भाजपा को वोट नहीं देंगे. उनका कहना है कि वे वोट इंडिया गठबंधन को देंगे. बता दें राज्य में लोहार जाति की संख्या 40 लाख के करीब है.

औरंगाबाद के देव में लोहार जाति के लोगो का सम्मेलन हुआ जिसमें  केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को अल्टीमेटम देते हुए जाति के नेताओं ने साफ तौर से कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले लोहार जाति को अनुसूचित जन जाति का दर्जा नही मिला तो चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को बिहार में 40 लाख लोहारों का वोट नही मिलेगा. यह वोट विरोधी गठबंधन को जा सकता है. लोहार जाति के नेता उमेश विश्कर्मा ने कहा कि  सर्वोच्च न्यायालय ने 21 फरवरी 2022 को अपने फैसले में राज्य सरकार के वर्ष 2016 के आदेश को निरस्त कर दिया. कोर्ट के आदेश के आलोक में बिहार सरकार ने 21 अप्रैल 2022 को आदेश जारी कर लोहार जाति से अनुसूचित जनजाति का दर्जा वापस ले लिया. इसके बाद से लोहार जाति को दूसरी पिछड़ी जातियों की तरह एनेक्सचर-1 में शामिल कर लेने से अब लोहार जाति को अन्य पिछड़े वर्गों के तहत आने वाली अन्य जातियों की तरह ही सुविधाएं दी जा रही हैं. उन्होने कहा कि 1950, 1958 और 1976 में लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया गया था. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी इसकी अनुशंसा की थी. इन सबके बावजूद संघर्षों के बल पर जब लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला तो इसे एक साजिश के तहत छीन लिया गया. 

लोहार जाति के नोताओं का कहना है कि हमारी जाति अपना भरण पोषण लोहे का औजार बनाकर करती है. इस जाति का जीवन यापन और रहन सहन का स्तर अनुसूचित जनजाति के लोगो के समान है. इस नाते अनुसूचित जाति का दर्जा हमारा हक और अधिकार है.

बता दें बिहार में लोहार जाति को साल 2016 में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की श्रेणी से हटाकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था. लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत करने के साथ ही अन्य सभी सुविधाएं भी देने का आदेश जारी किया गया था.बिहार सरकार ने लोहार जाति को 8 अगस्त, 2016 को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया था. इससे पहले लोहार जाति एनेक्चर-1 की सूची में शामिल थी. इस सूची के 115वें नंबर पर इस जाति का उल्लेख था. सूची में परिवर्तन के लिए जारी आदेश का 23 अगस्त, 2016 को गजट में प्रकाशन किया गया था. इसके बाद ये मामला देश की सबसे बड़ी अदालत पहुंचा. तो सर्वोच्च न्यायालय ने इस गजट को रद्द कर दिया .सर्वोच्च न्यायालय ने 21 फरवरी 2022 को सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के वर्ष 2016 के उस आदेश को निरस्त कर दिया था. 

अब बिहार में लोहार जाति अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने के लिए कमर कस चुका है. आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्होंने इसे मुद्दा बना लिया है. लोहार जाति के लोगों को नाराज होने का खामियाजा कहीं भाजपा को भुगतना न पड़ जाए,क्योंकि सूबे में लोहार जाति के 40 लाख वोटर हैं.

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