नालंदा - बेन प्रखंड के अकौना पंचायत के तोड़लबिगहा गांव में आजादी के 74 साल बाद भी नदी में पुल नहीं होने के कारण बरसात में लोग गांव में कैद हो जाते है | पढ़ने वाले बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं. गांव के देहाती जुगाड़ कर तसला का नाव बना नदी पार करते है | इस जुगाड़ से बनाये गये नाव पर सिर्फ दो आदमी ही एक साथ में चढ़ कर पार होते है | अगर थोड़ी सी भी चुक हुई तो डूबने का भय बना रहता है | गांव की आबादी चार सौ के लगभग है | इस गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. रात्रि में अगर कोई बीमार हो जाता है तो गांव से बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं है |
ग्रामीणों ने बताया कि जब चुनाव आता है तो नेता आश्वासन देकर चले जाते है फिर दोबारा जीतने वाले जनप्रतिनिधि इस गांव को देखने नहीं आते है | इस गांव में सरकार का कोई सुविधा नहीं है | इस बरसात में नदी में पुल नहीं रहने के कारण कोई व्यक्ति बाहर नहीं जा पाते हैं. बच्चों का पढ़ाई लिखाई सब बंद हो जाते है | अकौना पंचायत के मुखिया अभय सिंह कहते है की उनके पास इतना फंड नहीं है कि वह पुल बना सकें |
बिचाली का भी पुर पुल बनाने में तीस-चालीस हजार खर्च आता है. जबकि इसके लिए सरकार के ओर से सात हजार मिलता है | बीडीओ हर्ष कुमार कहते है की एक माह पूर्व तोड़ल बिगहा का भ्रमण कर वहां पुल - पुलिया निर्माण के लिए जिला मुख्यालय को पत्र लिखा गया है. ग्रामीणों की मांग पर उन्हें पुल-पुलिया निर्माण का आश्वासन भी दिया गया है, लेकिन अब तक इस संबंध में मुख्यालय से कोई अनुमति नहीं मिली है।
रिपोर्ट- राज पाण्डेय