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भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलने के इंतजार में बैठे लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने दिया झटका, पांच जजों ने पीठ ने कहा – यह स्वीकार नहीं

भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता मिलने के इंतजार में बैठे लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने दिया झटका, पांच जजों ने पीठ ने कहा – यह स्वीकार नहीं

NEW DELHI : समलैंगिक शादियों को मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 से ये फैसला सुनाया है।सेम सेक्स मैरिज पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकती। समलैंगिक विवाह पर चार जजों सीजेआई, जस्टिस किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने बंटा हुआ फैसला सुनाया। जस्टिस हिमा कोहली भी इस बेंच का हिस्सा हैं।

पीठ के फैसले को लेकर सीजेआई ने कहा कि ये विधायिका का अधिकार क्षेत्र है।उन्होंने कहा कि उनकी राय में संसद को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में फैसला करना चाहिए। कोर्ट विधायी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। गौरतलब है कि कोर्ट ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

बच्चा गोद लेने का दिया अधिकार

हालांकि सीजेआई ने समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया है। CJI ने केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिए हैं. हालांकि, जस्टिसभट्ट ने कहा, वे समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति देने वाली सीजेआई की राय से असहमत हैं।

सीजेआई ने समलैंगिकों के विवाह पर की ये टिप्पणी

चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिकों के साथ में आने पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लग सकता। किसी विपरीत लिंग के संबंधों में ट्रांसजेंडर्स को मौजूदा कानून के तहत विवाह का अधिकार है। इसके अलावा अविवाहित जोड़े, यहां तक कि समलैंगिक भी साझा तौर पर बच्चे को गोद ले सकते हैं।

सीजेआई ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो और सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया।

फैसले पर अन्य जजों की यह थी राय

जस्टिस रवीन्द्र भट्ट बोले "विवाह करने का अयोग्य अधिकार नहीं हो सकता, जिसे मौलिक अधिकार माना जाए। हालांकि हम इस बात से सहमत हैं कि रिश्ते का अधिकार है, हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि यह अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। इसमें एक साथी चुनने और उनके साथ शारीरिक संबंध का आनंद लेने का अधिकार शामिल है जिसमें गोपनीयता, स्वायत्तता आदि का अधिकार शामिल है। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि जीवन साथी चुनने का विकल्प मौजूद है।"

जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा -समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन कौल ने कहा कि संविधान के तहत गैर-विपरीत लिंग वाले विवाहों को भी सुरक्षा का अधिकार है। उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता वैवाहिक समानता की तरफ एक बड़ा कदम होगा। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि विवाह कोई अंत नहीं है। हमें इसकी स्वायत्ता को इस तरह बरकरार रखना चाहिए कि यह दूसरों के अधिकारों पर असर न डाले।

जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा - वे विशेष विवाह अधिनियम पर CJI द्वारा जारी निर्देशों से सहमत नहीं हैं।





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