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चौरी चौरा और काकोरी से हटेगा “कांड” शब्द, जानिए किस नाम से जानी जाएगी आजादी की लड़ाई की ऐतिहासिक गाथा

चौरी चौरा और काकोरी से हटेगा “कांड” शब्द, जानिए किस नाम से जानी जाएगी आजादी की लड़ाई की ऐतिहासिक गाथा

LOCKNOW : भारत की आजादी में दो बड़ी घटनाएं हैं, जिसने पूरे स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बदल दी। चौरी चौरा और काकोरी कांड। आजादी की इन दो ऐतिहासिक घटना को लेकर योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। यूपी सरकार ने इन दोनों घटनाओं से कांड शब्द को हटाने का निर्णय लिया है। जिसकी जगह दोनों घटनाओं को अब नए नाम से जाना जाएगा।

योगी सरकार ने काकोरी ट्रेन लूट कांड को अब “काकोरी ट्रेन एक्शन” के नाम से जाना जाएगा। इसी तरह चौरी चौरा कांड का भी नाम बदलकर ‘चौरी चौरा क्रांति” करने का फैसला लिया गया है। योगी सरकार का मानना है कि यह कोई कांड नहीं है, बल्कि देश की आजादी के लिए भारत के वीर सपूतों की लड़ाई थी। बता दें कि नाम में बदलाव के लिए देश के बहुत से इतिहासकारों की सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि चौरा चौरा कोई कांड नहीं था बल्कि सर्वजन का सहज प्रतिरोध था, जिसे जलियावाला कांड से आहत लोगों की प्रतिक्रिया के तौर पर भी देखा जा सकता है। 

कांड ही नहीं इतिहास के पन्नों में बदले जाएंगे 56 और शब्द

स्वाधीनता संग्राम के इतिहास से जुड़ी किताबों और दस्तावेजों में सिर्फ कांड शब्द ही नहीं बदला जाएगा, बल्कि उसके साथ आइसीएचआर ने 56 ऐसे शब्दों की सूची बनाई है, जिन्हें बदला जाना है। यह सारे ही शब्द ऐसे हैं, जो ब्रिटिश गवर्नमेंट द्वारा इस्तेमाल किए गए और इतिहासकारों को किताबों में उन्हें हूबहू उसी तरह स्थान दे दिया, जो कि गलत था।

चौरी चौरी के शताब्दी वर्ष को लेकर फैसला

स्वाधीनता संग्राम की एकबारगी दिशा बदल देने वाले चौरी चौरा कांड का शताब्दी वर्ष इस प्रकरण में बड़े बदलाव का साक्षी बनने जा रहा है। इस ऐतिहासिक वर्ष में दस्तावेजों में इसका सिर्फ नाम ही नहीं बदला जाएगा बल्कि तारीख बदलने या यह कहें कि सही करने की भी तैयारी है।

बता दें कि भारत में चौरी चौरा क्रांति को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में संयुक्त राज्य के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी, जब असहयोग में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था। जवाबी कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी, जिससे उनके सभी कब्जेधारी मारे गए। इस घटना के कारण तीन नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हुई थी। इस घटना के बाद महात्मा गांधी, जो हिंसा के घोर विरोधी थे, ने इस घटना के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में 12 फरवरी 1922 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को रोक दिया था।

क्या है काकोरी एक्शन

काकोरी सरकारी धन को लूटने की पहली बड़ी वारदात थी। आठ अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर में बिस्मिल के घर पर क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें 08 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में डकैती डालने की योजना बनी, क्योंकि इसमें सरकारी खजाना लाया जा रहा था। तय किया गया कि लखनऊ से करीब पच्चीस किलोमीटर पहले पड़ने वाले स्थान काकोरी में ट्रेन डकैती डाली जाए। नेतृत्व बिस्मिल का था और इस योजना को फलीभूत करने के लिए 10 क्रांतिकारियों को शामिल किया गया, जिनमें अशफाक उल्ला खां, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिड़ी, शचींद्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती (छद्म नाम), चंद्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त एवं मुकुंदी लाल शामिल थे। 

इस घटना में शामिल चालीस लोगों को शक के आधार पर गिरफ्तार किया। चंद्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती, अशफाक उल्ला खां व शचींद्रनाथ बख्शी फरार थे। गिरफ्तारियों ने क्रांतिकारियों को रातोंरात लोकप्रिय बना दिया।


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