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वंदे भारत स्लीपर की कीमतों में हुआ इजाफा? MP ने उठाया सवाल...रेलवे ने भी दिया जवाब

वंदे भारत स्लीपर की कीमतों में हुआ इजाफा? MP ने उठाया सवाल...रेलवे ने भी दिया जवाब

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने वंदे भारत स्लीपर ट्रेन की कीमतों में भारी वृद्धि को लेकर मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। गोखले का दावा है कि वंदे भारत स्लीपर ट्रेन के ठेके में संशोधन करते हुए एक ट्रेन की लागत 290 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 436 करोड़ रुपये कर दी गई है। यह मामला तब सामने आया जब गोखले ने अपने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर इस मुद्दे को उठाया। गोखले ने कहा, "यह ट्रेन केवल एसी कोच वाली है, जिसे गरीब लोग वहन नहीं कर सकते। इस 50% लागत वृद्धि से आखिर फायदा किसे हो रहा है?" उन्होंने इस पूरे मामले को भ्रष्टाचार से जोड़ते हुए सवाल उठाया है कि आखिर इतनी बड़ी राशि में वृद्धि का कारण क्या है?

भारतीय रेलवे ने गोखले के आरोपों को पूरी तरह से नकारते हुए इसे "गलत सूचना" और "फर्जी खबर" करार दिया। रेलवे मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि लागत वृद्धि का कारण ट्रेन के कोचों की संख्या में वृद्धि (16 से 24 कोच) है, जबकि कुल कोचों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है। मंत्रालय ने बताया कि यह कदम देशभर में बढ़ती ट्रेन यात्रा की मांग को देखते हुए उठाया गया है।

साकेत गोखले ने आगे यह भी आरोप लगाया कि पहले 200 ट्रेनों के लिए आवंटित बजट को घटाकर 133 ट्रेनें कर दिया गया, जिससे प्रति ट्रेन की लागत में भारी वृद्धि हुई है। गोखले का कहना है कि इससे हर ट्रेन की मैन्युफैक्चरिंग लागत 195 करोड़ और मेंटेनेंस लागत 240 करोड़ हो गई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि रेल विकास निगम लिमिटेड और रूसी कंपनी मेट्रोवैगोनमैश समेत अन्य कंपनियों को इस कांट्रेक्ट से बड़ा लाभ मिला है। इसके साथ ही, टीटागढ़ वैगन और बीएचईएल को भी 80 ट्रेनों के लिए अनुबंधित किया गया था, जिससे मामले की गंभीरता और बढ़ जाती है।

भारतीय रेलवे ने गोखले के सभी दावों को खारिज करते हुए कहा कि बोली प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही है और कोचों की संख्या में वृद्धि यात्री मांग को ध्यान में रखते हुए की गई है। मंत्रालय ने कहा कि लंबी ट्रेनों से पैमाने की अर्थव्यवस्थाएं प्राप्त होती हैं, जिससे कुल अनुबंध मूल्य में कमी आती है, न कि बढ़ोतरी। वंदे भारत स्लीपर ट्रेन को लेकर उठे इस विवाद ने रेलवे परियोजनाओं की लागत और पारदर्शिता पर एक नई बहस छेड़ दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और रेलवे इन आरोपों से कैसे निपटते हैं।

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