केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में दी जानकारी, कहा बिहार के साथ दो अन्य राज्य भी कराना चाहते थे जातीय जनगणना

N4N DESK : बिहार में 7 जनवरी से जातीय जनगणना शुरू होने की संभावना है। इसकी मांग पिछले तीन साल से हो रही थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर कहते रहे कि आम जनगणना के साथ जातियों की गिनती भी हो। लेकिन केंद्र सरकार ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया। इसके पहले नीतीश सरकार 18 फरवरी 2019 और 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है। 

पिछले साल अगस्त में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुलाकात की। इस मुलाकात में जातीय जनगणना कराने पर सहमति मिले। इसके बाद सभी पार्टियों के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और जातीय जनगणना कराने की मांग की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने हलफनामा दायर कर साफ कर दिया कि 2021 में जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी। केंद्र ने कहा कि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है। हालाँकि बिहार ही नहीं बल्कि कुछ और राज्य भी हैं जो जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। 

केंद्र सरकार ने मंगलवार को संसद में इसकी जानकारी दी है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में बताया कि तीन राज्य सरकारों बिहार, महाराष्ट्र और ओडिशा ने आगामी जनगणना में जाति विवरण एकत्र करने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि इन राज्यों के इलावा कुछ संगठनों ने भी जातिगत जनगणना की मांग की है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने आजादी के बाद से जनगणना में एससी और एसटी के अलावा अन्य जातिवार जनसंख्या की गणना नहीं की है।

भारत में सबसे पहले 1881 में जनगणना हुई थी। इसके बाद हर 10 साल पर जनगणना होने लगी। इसमें जातीय आधार पर भी जनगणना होती थी। साल 1931 तक ऐसे ही चला। लेकिन 1941 में जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। इसके बाद 1951 में आजाद भारत की पहली जनगणना से सिर्फ एससी और एसटी के आंकड़े जारी होते आ रहे हैं।