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जब लालू प्रसाद को काम नहीं आया रौब और रुआब, मोहलत की करते रहे फरियाद

जब लालू प्रसाद को काम नहीं आया रौब और रुआब, मोहलत की करते रहे फरियाद

PATNA : लालू प्रसाद जेल में हैं लेकिन उनका एक ट्वीट सियासी दुनिया में हलचल मचाए हुए है। उन्होंने सुशील मोदी और नीतीश कुमार पर वार करते हुए ट्वीट किया है- शासन मिमियाने या गिड़गिड़ाने से नहीं, रौब से चलता है। ऐसा कह कर लालू प्रसाद ने यह साबित करने की कोशिश की है कि उनके जमाने सत्ता की हनक कायम थी। लेकिन इतिहास के पन्नों को पलटें तो ये बात सामने आती है कि विकट परिस्थिति आने पर लालू प्रसाद भी डर गये थे। शासन रौब से नहीं, कानून से चलता है। जिस रौब की बात लालू प्रसाद कर रहे हैं, वक्त आने पर उसकी मिट्टीपलीद हो गयी थी।

दबाव में थे लालू प्रसाद

ये जुलाई 1997 की बात है। चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गयी थी। लालू प्रसाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देना चाहते थे लेकिन उन पर पद छोड़ने का दबाव बढ़ गया था। वे परेशान थे। लाख कोशिशों के बाद भी बचाव का कोई रास्ता नहीं निकला था। थक हार कर उन्होंने 25 जुलाई 1997 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। उस समय लालू प्रसाद पर क्या गुजर रही थी, इसका जिक्र पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब- बंधु बिहारी में किया है।

डीपी ओझा से लालू ने ली थी राय

इस्तीफा देने से दो दिन पहले लालू प्रसाद ने निगरानी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डीपी ओझा को अपने आवास पर बुलाया। उस समय वे अंदर से डरे हुए थे। लालू प्रसाद ने डीपी ओझा से पूछा- क्या सीबीआई सचमुच उन्हें गिरफ्तार कर लेगी ? जवाब मिला – हां । लालू प्रसाद ने फिर पूछा- अगर गिरफ्तारी होती है तो अधिकतम कितने दिन तक में जेल में रख सकती है ?  क्या मैं जमानत पर बाहर आ पाऊंगा ?  डीपी ओझा ने कहा-  शायद छह महीने । इस पर लालू प्रसाद ने कहा –  क्या वे समय और बढ़ा सकते हैं ?  फिर वे इस बात पर मन ही मन कुछ सोचने लगे।

25 जुलाई से 29 जुलाई तक दहशत का माहौल

लालू प्रसाद की सारी उम्मीदें टूट चुकीं थीं। उस समय बिहार के मुख्य सचिव बीपी वर्मा थे। एस के सक्सेना डीजीपी के पद पर तैनात थे। दोनों उनके पसंदीदा अफसर माने जाते थे। 25 जुलाई की सुबह लालू प्रसाद ने मुख्य सचिव और डीजीपी को फोन किया और कहा – आप लोग कितनी देर देर तक मेरी गिरफ्तारी को टलवा सकते हैं ?  मैं कुछ समय चाहता हूं। लालू प्रसाद गिरफ्तार नहीं होना चाहते थे। वे कोर्ट में सरेंडर करना चाहते थे। 25 जुलाई को दिन के 11 बजे मुख्य सचिव ने गिरफ्तारी वारंट पर अमल करने के लिए यूएन विस्वास को फोन किया। वर्मा ने विश्वास से कहा-   सीएम इस्तीफा दे कर कोर्ट में सरेंडर करने वाले हैं, बस वे थोड़ा समय चाहते हैं। आखिरकार लालू प्रसाद ने 25 जुलाई को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन इसके बाद भी लालू प्रसाद गिरफ्तारी के डर से सहमे हुए थे। 25 जुलाई से 29 जुलाई की रात तक अक्सर ये चर्चा उड़ने लगती कि लालू प्रसाद को गिरफ्तार करने के लिए CBI की टीम सीएम आवास पहुंचने वाली है। 30 जुलाई 1997 को जब तक लालू प्रसाद ने कोर्ट में सरेंडर नहीं कर दिया, तब तक वे डरे रहे। 

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