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शराबबंदी के नशे में मशगूल सरकार को कब दिखेगा कैसे नशे की जद में जकड़ रहा बिहार

शराबबंदी के नशे में मशगूल सरकार को कब दिखेगा कैसे नशे की जद में जकड़ रहा बिहार

बीतते वर्ष की इस अंतिम तारीख को जब हम पीछे मुड़कर बिहार को देखें तो लगता है मानो पिछले 6 वर्षों से बिहार एक ही जगह ठहर गया हो. इन वर्षों में बिहार में अगर सबसे ज्यादा कोई विषय चर्चा के केंद्र में रहा तो वह सिर्फ और सिर्फ शराबबंदी है. बिहार सरकार की उपलब्धि भी शराबबंदी है और नाकामी भी शराबबंदी को ही कहा जाएगा. 

इसमें कोई दो राय नहीं कि नीतीश सरकार के दृढनिश्चय के कारण बिहार में शराबबंदी लागू हुई और समाज सुधार की दिशा में वैश्विक स्तर पर इसकी चर्चा हो रही है. शराबबंदी का परिणाम है कि राज्य में महिलाओं के साथ होने वाली पारिवारिक हिंसा में कमी आई आई है. शराब पीकर किए जाने वाले हंगामे का मामला अब नहीं दिखता. शराबजनित हादसे तो न के बराबर हो गए हैं.

लेकिन इसके दूसरे पक्ष पर आएं तो बिहार में भले शराब पीने वाले नशेड़ियों की संख्या कम गई हो लेकिन राज्य में कई अन्य प्रकार के नशे का सेवन बढ़ गया है. इसकी गवाही एनसीबी के आंकड़े देते हैं. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी की रिपोर्ट की मानें तो बिहार में पिछले पांच-छह वर्षों में गांजा, अफीम और चरस जैसे मादक पदार्थ का सेवन करने वालों की संख्या में जोरदार बढ़ोतरी हुई है. दरअसल राज्य में एनसीबी ने जिस बड़े पैमाने पर इन प्रतिबंधित नारकोटिक्स उत्पादों को जब्त किया है उससे यह पता चलता है कि राज्य में कहीं न कहीं इसी तरह इनका उपयोग करने वाले नशेड़ियों की संख्या भी बढ़ी होगी. 

आंकड़े पर गौर करें तो वर्ष 2015 में बिहार में एनसीबी ने 12.3 किलो गांजा, 1.9 किलो अफीम और 2 किलो चरस बरामद किया. वहीं वर्ष 2016 में 496 किलो गांजा, 8 किलो अफीम और 31.5 किलो चरस जब्त किया गया. यह वही साल था जब बिहार में नीतीश सरकार ने शराबबंदी लागू की थी. इसके दो साल बाद जब्ती का यह आंकड़ा बेहद भयावह हो गया. 2018 में बिहार में 14.8 टन गांजा,  5.5 किलो अफीम और 114 किलोग्राम चरस जब्त हुआ है. विशेषज्ञों की मानें तो एनसीबी ने जब राज्य में इतनी बड़ी जब्ती की है तो इसी अनुपात में इनका सेवन करने वाले भी बढ़े होंगे. इसका एक कारण शराबबंदी भी है क्योंकि शराबबंदी के बाद लोग अन्य प्रकार के नशों का शिकार हुए. 

बिहार में शराबबंदी कानून की खामियों की ओर देश के मुख्य न्यायाधीश ने भी इशारा किया था. उन्होंने राज्य के न्यायालयों में शराबबंदी से संबंधित मामलों के कारण बोझ बढ़ने पर परोक्ष रूप से नीतीश सरकार को खूब सुनाया था. आंकड़े भी बताते हैं कि बिहार में शराबबंदी के बाद भी किस प्रकार से शराब की तस्करी हो रही है. वर्ष 2021 में दिसम्बर के पहले पखवाड़े के बाद तक 38 लाख लीटर से ज्यादा की अवैध शराब जब्त हुई है. इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि जब्ती के अनुपात में इससे कहीं ज्यादा लोगों ने शराब का सेवन भी किया होगा. 

इन्हीं कारणों से पिछले सप्ताह भारत के मुख्य न्यायाधीश ने शराबबंदी कानून के मसौदे को अदूरदर्शी करार दिया था. राज्य में वर्ष 2016 के बाद से अब तक करीब 3.5 लाख लोगों की गिरफ्तारी शराबबंदी कानून के नाम पर हुई है. वहीँ राज्य के लोगों में यह आम धारणा है कि कानून लागू होने के बाद से युवाओं की एक बड़ी संख्या शराब तस्करी में संलिप्त हो गई है. गिरफ्तार लोगों की संख्या और जब्त शराब के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. इतना ही नहीं इसी वर्ष नीति आयोग की बिहार को लेकर जो स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, ढांचागत विकास आदि पर अलग अलग रिपोर्ट आई है उसमें भी बिहार देश में सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल है. 

पर्यटन और आतिथ्य सेक्टर से जुड़े लोगों की मानें तो बिहार में शराबबंदी के बाद से इन दोनों क्षेत्रों को जोरदार झटका लगा है. राज्य से हर तीज-त्यौहार और छुट्टियों पर बड़ी संख्या में लोग सीमावर्ती राज्यों और देश के अन्य शहरों में पार्टी मानने जाने लगे हैं. बड़े बिजनेस मीटिंग के लिए भी अब उद्यमियों की पसंद बिहार के बाहर के शहर हो गए हैं. पिछले वर्षों के दौरान डॉक्टरों और व्यापारियों के कई बड़े सम्मेलन बिहार के बाहर हुए. यानी हर साल राज्य के राजस्व को इन कारणों से बड़ा नुकसान हुआ है. 

ऐसे में नए साल पर क्या बिहार में बुनियादी जरूरतों को बदलने की दिशा में सरकार कुछ अलग काम करेगी यह बड़ा सवाल है. शराबबंदी लागू रहे लेकिन निवेशकों का भरोसा कैसे जीता जाए इस पर सरकार जब तक काम नहीं करेगी तब बिहार में रोजगार नहीं बढ़ेगा. सबसे ज्यादा आईएएस – आईपीएस देने वाला बिहार देश में श्रमिक सप्लायर राज्य के रूप में भी जाना जाता है. राज्य के विभिन्न शहरों से खुलने वाली ट्रेनों की संख्या और मजदूरों की नारकीय स्थिति को देखकर राज्य की सच्चाई का पता चल जाता है. तो क्या पलायन प्रदेश को सुधारने की दिशा में नया साल नए बदलाव लाएगा? ऐसे कई सवाल हैं जो शराबबंदी की आड़ में नहीं दब गए हैं.  

- प्रिय दर्शन शर्मा

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