Firing: पुलिस फायरिंग में 1 की मौत ,80 घायल, सोशल मीडिया पर लगी पाबंदी के विरोध में संसद में घुसे प्रदर्शनकारी, सड़कों पर खून-खराबा
Firing: सोमवार को यहां का माहौल उस वक्त तल्ख हो गया जब सरकार के तानाशाही फरमानों से आज़िज आए युवा सड़कों पर उतर आए और उनके आक्रोश की चिंगारी एक विकराल आग में तब्दील हो गई।

Firing: नेपाल की राजधानी काठमांडू, जो कभी अपनी हिमालयी शांति के लिए जानी जाती थी, आज लोकतंत्र की लड़ाई का अखाड़ा बन गई है। सोमवार को यहां का माहौल उस वक्त तल्ख हो गया जब सरकार के तानाशाही फरमानों से आज़िज आए युवा सड़कों पर उतर आए और उनके आक्रोश की चिंगारी एक विकराल आग में तब्दील हो गई। युवा, जिनके हाथों में भविष्य की उम्मीदें थीं, आज सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। उनका मुख्य मुद्दा सिर्फ़ सोशल मीडिया पर लगी पाबंदी नहीं, बल्कि उस भ्रष्टाचार की ज़ंग भी है जो देश की रीढ़ को खोखला कर रही है।
ये प्रदर्शनकारी महज़ कुछ नौजवान नहीं, बल्कि उस युवा पीढ़ी की नुमाइंदगी कर रहे हैं जो डिजिटल दुनिया में सांस लेती है। सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना के, रातों-रात 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाकर लाखों लोगों की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कुठाराघात किया है। फेसबुक, यूट्यूब, एक्स और इंस्टाग्राम जैसे मंच सिर्फ मनोरंजन के साधन नहीं, बल्कि लाखों लोगों के लिए रोज़गार और सूचना का ज़रिया भी हैं। सरकार का यह कदम आर्थिक और सामाजिक दोनों ही मोर्चों पर एक ज़ालिमाना वार है।
जब प्रदर्शनकारियों का सैलाब संसद परिसर की ओर बढ़ा, तो सरकार की दमनकारी मशीनरी हरकत में आ गई। अमन-पसंद प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों ने हवाई फायरिंग की, जिसकी भयावह परिणति एक मासूम की मौत के रूप में सामने आई। एक युवा का लहू लोकतंत्र की धरती पर बहा, जिसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकार अपने ही नागरिकों की आवाज़ को कुचलने के लिए इतनी बेताब है? दर्जनों घायल अस्पतालों में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं, जिनकी हालत सरकार के क्रूर रवैये की गवाही दे रही है।
सरकार ने अब काठमांडू के कई संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू लगाकर अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश की है। राष्ट्रपति निवास से लेकर प्रधानमंत्री आवास तक, हर जगह सन्नाटा है। लेकिन, यह सन्नाटा सिर्फ़ सड़कों का है। सोशल मीडिया के बंद होने के बाद भी, युवा दिलों में सुलग रही आग को बुझाना नामुमकिन है। यह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि नेपाल के युवाओं की उस ललकार का आगाज़ है, जो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए अपनी जान तक देने को तैयार हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार अपने ही लोगों के विरुद्ध इस जंग में जीत पाएगी या फिर उसे अपने फ़ैसलों पर पुनर्विचार करना होगा।