बक्सर जिले के अनोखे मेले में देश भर से जुटी भीड़, लिट्टी-चोखा लवर के लिए जन्नत, जानें इसके पीछे की मुख्य वजह
पंचकोसी मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह मेले न केवल पौराणिक परंपराओं को जीवित रखते हैं, बल्कि क्षेत्रीय खान-पान और सांस्कृतिक मूल्यों को भी नई पहचान देते हैं।
Buxar litti chokha mela news: बिहार के बक्सर जिले के चरित्रवन में हर साल पंचकोसी मेला का आयोजन होता है। यह मेला धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले में श्रद्धालु पांच स्थलों की परिक्रमा करते हैं और भगवान श्रीराम से जुड़ी परंपराओं का पालन करते हैं।
पांच दिनों की यात्रा और धार्मिक भोग
पांच कोस की यात्रा:
मेले में शामिल श्रद्धालु पांच स्थानों - अहिरौली, नदांव, भभुअर, बड़का नुआंव, और चरित्रवन की परिक्रमा करते हैं।
पांच भोग की परंपरा:
प्रत्येक स्थान पर भगवान श्रीराम को विशिष्ट प्रकार का भोग अर्पित किया जाता है:
अहिरौली: पुआ-पकवान।
नदांव: सत्तू और मूली।
भभुअर: चूड़ा-दही।
बड़का नुआंव: खिचड़ी।
चरित्रवन: लिट्टी-चोखा।
पंचम दिन का महत्व:
चरित्रवन में मेले के अंतिम दिन भगवान श्रीराम को लिट्टी-चोखा का भोग लगाया जाता है। इस परंपरा को निभाने के लिए हजारों श्रद्धालु यहां इकट्ठा होते हैं।
पौराणिक मान्यता: भगवान श्रीराम का जुड़ाव
पंचकोसी मेला त्रेता युग की घटनाओं से जुड़ा है।
भगवान श्रीराम का आगमन:
कहा जाता है कि भगवान राम अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आए थे।
राक्षसों का अंत:
उन्होंने ताड़का, सुबाहू, और मारीच जैसे राक्षसों का वध कर यहां धर्म और शांति की स्थापना की।
पांच ऋषियों के आश्रम:
प्रायश्चित स्वरूप भगवान राम ने पांच ऋषियों - गौतम, नारद, भार्गव, उद्दालक और विश्वामित्र के आश्रमों का दौरा किया।
अहिल्या उद्धार:
गौतम ऋषि के आश्रम में राम ने अहिल्या का उद्धार किया।
लिट्टी-चोखा और बिहार की पहचान
लिट्टी-चोखा का महत्व:
मेले के अंतिम दिन लिट्टी-चोखा का भोग लगाया जाता है और इसे पूरे बक्सर में बनाना शुभ माना जाता है।
सांस्कृतिक पहचान:
यह भोजन अब केवल बक्सर या बिहार तक सीमित नहीं रहा। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और अन्य राज्यों में भी इसे लोकप्रियता मिली है। लिट्टी-चोखा ने बिहार और पूर्वांचल के पारंपरिक खान-पान को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई है।