Bihar voting pattern: क्या है लालू यादव का 60 प्रतिशत से ऊपर वाला इतिहास! जानें मौजूदा वोटिंग आंकड़े से कैसे जुड़े हैं तार

Bihar voting pattern: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में रिकॉर्ड 64.69% मतदान हुआ है। जानिए क्यों कहा जा रहा है कि 60% से अधिक वोटिंग बिहार की सत्ता बदलने का संकेत है, और इसका नीतीश कुमार व लालू यादव पर क्या असर पड़ेगा।

लालू यादव पर मतदान का क्या पड़ सकता है असर?- फोटो : social media

Bihar voting pattern: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में जब मतदान खत्म हुआ तो नतीजों से पहले ही इतिहास बन गया। इस बार 18 जिलों की 121 सीटों पर कुल 64.69 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई, जो अब तक का सबसे अधिक है। यह 2020 के मुकाबले लगभग साढ़े आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी है। पिछले चुनाव में पहले चरण में केवल 56.1 प्रतिशत मतदाता ही वोट डालने पहुंचे थे, लेकिन इस बार जनता ने रिकॉर्ड तोड़ भागीदारी दिखाई।

CIR के बाद पहली बार हुए चुनाव में नई ऊर्जा

इस बार का विधानसभा चुनाव इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि यह CIR (Comprehensive Electoral Roll Revision) प्रक्रिया के बाद पहली बार आयोजित हुआ है। इस प्रक्रिया के तहत चुनाव आयोग ने राज्यभर में पुराने, फर्जी और डुप्लिकेट वोटरों को हटाया तथा नए पात्र नाम जोड़े। इससे मतदाता सूची अधिक सटीक और अद्यतन हो गई। माना जा रहा है कि इसी वजह से मतदाताओं में जागरूकता बढ़ी और मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

बढ़ता मतदान और बिहार की सियासत का समीकरण

बिहार का चुनावी इतिहास बार-बार यह दिखाता रहा है कि मत प्रतिशत और सत्ता परिवर्तन का रिश्ता गहराई से जुड़ा हुआ है। यहां यह कहावत प्रसिद्ध है कि जब वोटिंग 60 प्रतिशत से कम रहती है, तो नीतीश कुमार की वापसी होती है, लेकिन जब मतदान 60 प्रतिशत से ऊपर चला जाता है, तो फायदा लालू यादव और उनकी पार्टी आरजेडी को मिलता है। पिछले दो दशकों के आंकड़े इस धारणा को और मजबूत करते हैं।

नीतीश कुमार के लिए ‘कम वोटिंग’ का फॉर्मूला

अगर पिछले चुनावों पर नज़र डालें तो स्पष्ट होता है कि जब-जब मतदान 60 प्रतिशत से नीचे रहा, तब-तब नीतीश कुमार ने सरकार बनाई। 2005 के अक्टूबर चुनाव में केवल 45.85 प्रतिशत मतदान हुआ था, और तब उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री पद संभाला। 2010 में 52.73 प्रतिशत वोटिंग के साथ एनडीए की दोबारा जीत हुई। 2015 में उन्होंने महागठबंधन के साथ रहकर 56.91 प्रतिशत वोटिंग के बीच जीत हासिल की, और 2020 में भी 57.29 प्रतिशत मतदान के साथ एनडीए सत्ता में लौटा।

लालू यादव का ‘60 प्रतिशत से ऊपर’ वाला इतिहास

इसके उलट, जब बिहार में मतदान का प्रतिशत 60 से ऊपर गया, तब सत्ता की चाबी लालू यादव के हाथों में आई। 1990 में 62 प्रतिशत मतदान हुआ और जनता दल ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। 1995 में लगभग 61.8 प्रतिशत वोटिंग के साथ आरजेडी ने दोबारा सरकार बनाई। 2000 के चुनाव में 62 प्रतिशत से अधिक मतदान के साथ लालू यादव ने अपनी पकड़ और मजबूत की। इन उदाहरणों से साफ है कि बिहार में बढ़ता हुआ मतदान अक्सर राजनीतिक बदलाव की दिशा दिखाता है।

2005 में सत्ता समीकरण का बड़ा पलटाव

फरवरी 2005 का चुनाव बिहार की राजनीति का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। उस समय मात्र 46 प्रतिशत वोटिंग हुई थी और यही वह चुनाव था जिसमें आरजेडी का 15 वर्षों का शासन समाप्त हो गया। नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सत्ता में आया और तब से अब तक आरजेडी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी। इस बदलाव ने राज्य की राजनीतिक दिशा को पूरी तरह बदल दिया और नई गठबंधन राजनीति की शुरुआत की।

2025 का रिकॉर्ड मतदान और नए संकेत

इस बार पहले चरण में 64.69 प्रतिशत वोटिंग ने सियासी हलचल को बढ़ा दिया है। विश्लेषक मानते हैं कि यह संख्या केवल मतदाताओं की भागीदारी का रिकॉर्ड नहीं है, बल्कि संभावित सत्ता परिवर्तन का संकेत भी हो सकती है। इतिहास बताता है कि जब मतदान 60 प्रतिशत से ऊपर जाता है, तो जनता बदलाव चाहती है। हालांकि, CIR के बाद मतदाता सूची में हुए संशोधन और नए नाम जुड़ने की वजह से यह भी संभव है कि बढ़ा हुआ प्रतिशत सिर्फ बेहतर प्रबंधन का परिणाम हो, न कि सत्ता विरोधी लहर का।

क्या दो दशक बाद बदलेगा राजनीतिक संतुलन?

अब सबकी नजरें 11 नवंबर 2025 को होने वाले दूसरे चरण के मतदान पर हैं। अगर वहाँ भी यही उत्साह देखने को मिला, तो बिहार के राजनीतिक इतिहास में यह चुनाव सबसे निर्णायक साबित हो सकता है। यह चुनाव सिर्फ उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि बिहार की जनता के आत्मविश्वास की परीक्षा भी है