Rahul Gandhi in patna : बिहार की जाति गणना में 'गड़बड़ी', राहुल गांधी ने उठाया बड़ा सवाल, कांग्रेस ने लालू-तेजस्वी को डाला मुश्किल में
Rahul Gandhi in Patna : कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने बुधवार को एक बार फिर से बिहार में हुई जाति गणना रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए. उन्होंने पटना में आयोजित जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती को संबोधित करते हुए देश स्तर पर जाति जनगणना कराने की जरूरत पर बल दिया. वहीं बिहार में हुई जाति गणना पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिहार की जाति गणना नहीं देखें बल्कि जातीय भागीदारी का सच अगर जानना है तो तेलंगाना में हुई जाति गणना को देखें.
राहुल गाँधी का यह बयान बिहार में कांग्रेस की साझीदार राजद के लिए टेंशन बढ़ाने वाली है. लालू यादव और तेजस्वी यादव अक्सर ही बिहार में हुई जाति गणना को अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हैं. लेकिन अब राहुल गाँधी ने इस पर उंगली उठाकर राजद के दावों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है.
आबादी के अनुपात में कम भागीदारी
जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती पर राहुल ने केंद्र सरकर पर बड़ा हमला बोला. साथ ही देश में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की सभी संस्थानों में आबादी के अनुपात में कम भागीदारी होने का दावा किया. उन्होंने कहा कि हम अंबेडकर जी और जगलाल चौधरी जी के विचार और उसूलों की बात करते हैं. लेकिन सवाल है कि अंबेडकर और जगलाल चौधरी के जो विचार थे, वे कहां से आते थे? सच्चाई ये है कि.. दलितों के दिल में जो दुख और दर्द था, अंबेडकर और जगलाल चौधरी ने उस आवाज को उठाया था.
दलित वर्ग की कितनी भागीदारी
उन्होंने कहा कि सवाल है कि आज भारत के पॉवर स्ट्रक्चर- शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्पोरेट या ज्यूडिशरी में दलित वर्ग की कितनी भागीदारी है? BJP रिप्रेजेंटेशन की बात करती है, लेकिन भागीदारी के बिना रिप्रेजेंटेशन का कोई मतलब नहीं है। ये बिलकुल ऐसा ही है- जैसे मैंने आपके बीच में से पांच लोगों को स्टेज पर बैठा दिया, लेकिन उनके फैसले कहीं और से लिए जा रहे हैं। ऐसे में उन्हें स्टेज पर बैठाने का कोई मतलब नहीं है। मोदी सरकार में भी यही हो रहा है- आप लोगों को मंत्री बना देते हैं, लेकिन OSD तो RSS का होता है।
लीडरशिप के लेवल पर भागीदारी
उन्होंने कहा कि 200 बड़ी कम्पनियों में एक भी दलित-ओबीसी, आदिवासी नहीं है. 90 लोग हिंदुस्तान का बजट निर्धारण करते हैं. इन लोगों में सिर्फ 3 दलित है. जो तीन अफसर हैं उनको छोटे छोटे विभाग दे रखे हैं. अगर 100 रूपये खर्च करती है सरकार तो उसमे एक रूपये का निर्णय ही दलित अफसर लेते हैं. इसी तरह 50 फीसदी आबादी पिछड़े वर्ग की है उनके भी मात्र 3 अफसर हैं. दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 100 रूपये में सिर्फ छह रूपये के बराबर है. उन्होंने कहा कि आबादी के अनुरूप सभी सेक्टरों में प्रतिनिधित्व के लिए सबसे जरूरी है कि जाति गणना कराई जाए. उन्होंने कहा कि हमारा मकसद है कि लीडरशिप के लेवल पर दलित, आदिवासी और पिछड़े को देखना.